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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रास्त्र २७५ श्राहरणीय प्रास्रष-संज्ञा, पु. (सं० ) उबलते हुये । "बलहद भीम-कद काहू के न पाह के " चावलों का फेन, माँड़, पनाला, इंद्रिय- -भू०, क्रोध--ललकार, प्राहु (दे० ) " गह्यो राहु अति प्राहुकरि वि० । प्रास्वाद-संज्ञा, पु० (सं० प्रा०+स्वद् + आहट-संज्ञा, स्त्री० (हि. आ = आना+ घञ् ) स्वाद, जायका, मज़ा, सवाद । हट-प्रत्य० ) पैर तथा अन्यांगों से चलते (दे०) रस, रुचि, चस्का, रसानुभव । समय होने वाला शब्द, थाने का शब्द, प्रास्वादन-संज्ञा, पु० (सं० श्रा- स्वद् । पाँव की चाप, खटका, वह शब्द, जिससे अनट ) स्वाद लेना, चखना, रसानुभव, किसी के किसी जगह पर रहने का अनुमान करना, ज़ायका लेना। हो, पता, सुराग, टोह ।। प्रास्वादनीय-वि० (सं० ) स्वाद लेने म०-श्राहट लेना-पता या टोह लेना, या चखने योग्य। सुराग़, ढूंढना, किसी के आने के शब्द को प्रास्वादक-वि० (सं० ) स्वाद लेने वाला, सुनना। चखने वाला, मज़ा लेने वाला, रसानुभवी, ग्राहट मिलना-किसी के आने का ज़ायका लेने वाला। शब्द सुनाई पड़ना और उसके आने का प्रास्वादित-वि० (सं० ) चखा हुआ, । अनुमान करना, पता लगना, टोह मिलना। स्वाद लिया हुश्रा, भोगा हुअा, बरता हुआ, पाहत-वि० (सं० ) चोट खाया हुआ, अनुभव किया हुआ । घायल, जखमी, जिस संख्या को गुणित स्त्री० श्रास्वादिता। किया जाये, गुण्य । प्रास्वादु-वि० (सं० ) सुरस, स्वादिष्ट, " चतुराहत वर्ग समै रूपं पक्षद्वयंच गुणयेत् " सुस्वाद, मज़ेदार, ज़ायकेदार। प्राह अव्य० दे० (सं० अहह ) पीड़ा, व्याघात-दोष-युक्त वाक्य, पुराना, कम्पित, गर्हित, ताड़ित, मारा हुआ। शोक, दुःख, खेद, और ग्लानि आदि का संज्ञा, स्त्री० श्राहति । सूचक शब्द। संज्ञा, स्त्री० (दे० ) कराहना,उसाँस भरना, यौ०-हताहत-मारे हुए और जखमी । संज्ञा, पु० घायल व्यक्ति, मारा हुआ। ठंढी सांस, दुःख-क्लेश-सूचक शब्द. शाप, हाय हाय, हा हा। पाहन-संज्ञा, पु० (फा० ) लोहा, सार। मु०-माह पड़ना-शाप पड़ना, किसी प्राहर-- संज्ञा, पु० दे० ( सं० ग्रहः ) को दुःख पहुँचाने का बुरा फल मिलना । समय, वक्त, काल, दिन । पाहभरना-ठंढी साँस खींचना या लेना, संज्ञा, पु० दे० (सं० आहव ) युद्ध, लड़ाई, पीड़ा या ग्लानि श्रादि से उसाँस भरना । रण, संग्राम । प्राह लगना-शाप का सत्य होना, श्राहर-जाहर--संज्ञा, स्त्री० (दे०) श्रानाकोसने का सार्थक होना, किसी को दुःख जाना। देने का बुरा फल मिलना। श्राहरण -संज्ञा, पु. ( सं० ) छीनना, पाह लेना-सताना, और शाप लेना, | हर लेना, किसी पदार्थ को एक स्थान से दुःख देना या कलपाना और उसका कोसना | दूसरे स्थान पर ले जाना, ग्रहण, लेना, साँस खींचना। लूटना, खसोटना। संज्ञा, पु० दे० (सं० साहस ) साहस, हियाव श्राहरणीय-वि० ( सं० ) हरण करने (दे० ) बल, जोर। योग्य । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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