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श्रासन कसना
प्रासमान
जाय, बिछावन, बिछौना, पीठ, पीढ़ा, | आसन देना-सम्मानार्थ बैठने के लिये चौकी, टिकाना, निवास, डेरा, चूतड़. | कोई वस्तु रख कर या बता कर बैठने की हाथी का कंधा, जिस पर महावत बैठता है, प्रार्थना करना। सेना का शत्रु के सम्मुख डटा रहना, जिगीषु- श्रासन मारना-जम कर या स्थिर भाव का अवसर प्रतीक्षार्थ अवस्थान, कुश या उन
से बैठना। का बना हुआ बैठक जिस पर बैठ कर पूजा "बैठो हुतासन आसन मारे "-देव० । की जाती है, यौगियों के बैठने की ८४ श्रासन लगाना-स्थिर भाव से प्रासन भिन्न भिन्न विधियाँ या रीतियाँ, यथा- जमा कर बैठना, संध्योपासना करना, पद्मासन, स्वस्तिकासान, वद्धपद्मासन, मयू- योग करना, योग के श्रासनों का अभ्यास रासन, शीर्षासन, श्रादि (यो०) सुरति करना, (पालन करना) पद्मासनादि ( संभोग ) की विविध रीतियाँ (कोक० )। का अभ्यास करना। "छोड़ि दे आसन बासन को "- राम० ।। श्रासना --अ० कि० दे० ( सं० अस = मु. श्रासन उखड़ना-अपने स्थान से होना) होना, बैठना। हिल जाना, घोड़े की पीठ पर रान न श्रासनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० श्रासन ) जमना.।
छोटा श्रासन. छोटा बिछौना, कुश या ऊन श्रासन कसना-अंगों को तोड़-मरोड़ का छोटा श्रासन जिस पर बैठ कर पूजा की कर बैठना।
जाती है। श्रासन गाँठना-श्रासन बनाना, संभोग प्रासन्दी-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) चारपाई, में प्रासन कसना।
कुर्सी, मचिया । प्रासन छोडना-उठ जाना ( श्रादरार्थ ) अासन्न - वि० ( सं० भासद् + क्त ) प्रामन जमाना -- जिस स्थान पर जिस | निकट श्राया हुआ, समीपस्थ, निकटवर्ती, रीति से बैठे उसी स्थान पर उसी रीति से समीपवर्ती, उपस्थित, प्राप्त, पास बैठा बराबर स्थिर रहना, स्थिर भाव से बैठना।। हुश्रा, शेष, श्रवप्तान । अड्डा जमाना, डेरा जमाना, स्थायी रूप । प्रासनकाल--संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) से रहना, श्रासन जमना-बैठने में स्थिर अन्तिमकाल, मृत्यु का समय, अवसान । भाव पाना।
प्रामन्नभूत-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) श्रासन डिगना (डोलना)-बैठने में स्थिर भूतकालिक क्रिया का वह रूप जिससे भाव न रहना, चित्त चलायमान होना, क्रिया की पूर्णता और वर्तमान काल से मन डोलना. करुणा या दया पाना ( देव- समीपता प्रगट हो, जैसे, मैं जा रहा है। ताओं आदि का) घबड़ाना, भयभीत | | प्रास-पास-क्रि० वि० दे० ( अनु० आस होना। जैसे-कौशिक का तप देख इंद्र का +पार्श्व = सं० ) चारो ओर, निकट, श्रासन डोल उठा।
समीप, पास, इधर-उधर। प्रासन डिगाना-स्थान से विचलित आसमान-संज्ञा, पु. (फ़ा०) आकाश, करना, चित्त को चलायमान करना, लोभ गगन, स्वर्ग, देवलोक, नभ, व्योम । या इच्छा उत्पन्न करना, सचेत या सावधान मु०-प्रासमान के तारे तोड़नाकरना, घबरा देना, भयभीत कर देना। कठिन या असम्भव कार्य करना । प्रासन तले श्राना-प्राधीन होना, आसमान में छेद करना- पाश्चर्यअनुगत होना।
जनक काम करना, अति करना।
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