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प्राश्लेष
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प्रासन प्राश्लेष—संज्ञा, पु० (सं० श्रा--- श्लिष+ "पाई बहुरि बसंत ऋतु, विमल भई दस घञ्) श्रालिंगन, मिलन, जुड़ना, लगाव । श्रास"-रघु०। प्राश्लेषण -संज्ञा, पु. (सं० ) मिलावट, संज्ञा पु० (दे०) धनुष, शरासन । आलिंगन ।
प्रासकत-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० अशक्ति) आश्लेषा-संज्ञा, पु० (सं० ) श्लेषा नक्षत्र ।
सुस्ती, आलस्य, काहिली, पालस, क्रि० आश्वास-प्राश्वासन-संज्ञा, पु० (सं०) प्रासकताना ।। दिलासा, तसल्ली, सांत्वना, ढाढ़स । श्रासकति, असकती-वि० दे० (सं० वि० आश्वासनीय-तसल्ली देने योग्य ।। आक्ति ) श्रालसी। श्राश्वासित-वि. ( सं० आ- श्वस् + संज्ञा, स्त्री. ( सं० भासक्ति ) अनुरक्ति, णिच्+क्त) अनुनीत, आश्वस्त, दिलासा प्रेम। दिया हुआ।
| श्रासक्त-वि० (सं० ) अनुरक्त, लीन, श्राश्वस्त-वि० (सं० आ + श्वस् : क्त) लिप्त, आशिक, मोहित, मग्न, प्रेम, लुब्ध सांत्वना-प्राप्त, आशायुक्त, दिलासा दिया मुग्ध, श्रासकत (दे०)। हुआ, ढाढ़स दिया हुआ।
प्रासक्ति--संज्ञा, स्त्री० (सं० श्रा+सद्-। प्राश्वास्य-वि० (सं० ) सांत्वना देने के क्ति) अनुरक्ति, लिप्तता, लगन, चाह, प्रेम, योग्य, तसल्ली देने लायक ।
मोह, इश्क, प्रासकति (दे०)। संगम, आश्विन-संज्ञा, पु. ( सं० ) अाश्विनी मिलन, लाभ, पदों का अत्यंत संनिधान नक्षत्र में पड़ने वाली पूर्णिमा का महीना, ( न्याय० ) अन्यवहित, समीपता, पदो. कार का महीना, कुआँर ( दे०) शरद
च्चारण, (शब्दार्थ बोध का एक हेतु )। ऋतु का दूसरा मास ।
प्रासति -- संज्ञा, स्त्री० (दे० ) सत्य, आषाढ़-संज्ञा, पु० (सं० ) वह चांद्रमास
प्रासत्ति, समीपता, मुक्ति । जिसकी पूर्णिमा को पूर्वाषाढ़ नक्षत्र हो,
" सूर तुरत यह जाय कहो तुम ब्रह्म बिना अषाढ़, ब्रह्मचारी का दंड।
नहिं श्रासति"।
भासते-क्रि० वि० दे० ( फा० आहिस्ता ) प्राषाढ़ा--संज्ञा, पु० (सं० श्रा---सह ।
धीरे-धीरे। क्त+आ ) पूर्वाषाढ़ और उत्तराषाढ़ नक्षत्र ।
श्रासत्ति-संश, स्त्री० (सं० ) सामीप्य, प्राषाढ़ी-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) आषाढ़
निकटता, अर्थ-बोध के लिये बिना व्यवधान मास की पूर्णिमा, गुरु-पूजा ।
के एक-दूसरे से सम्बन्ध रखने वाले दो पदों आषढ़ भू-प्राषाढ़भव ----संज्ञा, पु० (सं० ) या शब्दों का पास पास रहना और पारस्पमंगलग्रह, उत्तराषाढ़ नक्षत्र ।
रिक अर्थों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करना। श्रासंग-संज्ञा, पु. (सं० ) साथ, संग, भासतोष-वि० दे० (सं० आशुतोष) लगाव, सम्बन्ध, आसक्ति, संसर्ग, संसृष्टि, जल्द प्रसन्न होने वाला। अनुराग।
संज्ञा, पु० महादेव, शिव। प्रास-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० आशा) पासथान- संज्ञा, पु० दे० (सं० स्थान ) श्राशा, उम्मेद, लालसा, कामना, सहारा, . प्रास्थान, बैठने की जगह, सभा, समाज। भरोसा, आधार, दिशा।
श्रासन-संज्ञा, पु० (सं० ) स्थिति, बैठक, " होत उजागर बनबगर, मधुप मलिन तव बैठने की विधि, या ढब (तरीका ) श्रास"
। बैठने की वस्तु, वह वस्तु जिस पर बैठा
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