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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir MIROMETROM पाशीविष २६९ पाश्लिष्ट दुश्रा, मंगल-प्रार्थना, पासीस, प्रासिर- | आश्रमधर्म-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) पाद (दे०)। आश्रम के लिये शास्त्रोक्त श्राचार या नियम। वि० ग्राशीर्वादक-मंगलप्रार्थी, श्राशीष प्राश्रमभ्रष्ट-वि० (सं० यौ० ) आश्रम से देने वाला, कल्याण-प्रार्थक । विरुद्ध श्राचार-व्यवहार करने वाला, पतित । वि० श्राशीर्वादी-- आशीर्वाद प्राप्त । श्राश्रमी-वि० (सं०) आश्रम-सम्बन्धी. श्राशीविष-~संज्ञा, पु. ( सं० आशी+ विष आश्रम में रहने वाला, ब्रह्मचर्यादि चार + अल् ) सर्प, साँप, अहि, भुजंग। आश्रमों में से किसी को धारण करने वाला । " श्राशीविष दोषन की दरी"- (के०)। " जिमि हरि-भक्तिहिं पा: जन, तजहि प्राशी:-संज्ञा, पु. (सं०) एक प्रकार श्राश्रमी चारि"-रामा। का काव्यालंकार, जिसमें किसी प्रिय व्यक्ति प्राश्रय-संज्ञा, पु० ( सं० ) आधार, सहारा, को मंगल-कामना की जाय। अवलम्ब, आधार-वस्तु वह वस्तु जिसके श्राशु-क्रि० वि० (सं० ) शीघ्र, जल्द, सहारे पर कोई वस्तु ठहरी हो, शरण, तत्काल. द्रुत, तुरन्त, झटपट, वर्णकाल में पनाह. जीवन-निर्वाह का हेतु, भरोसा, उत्पन्न होने वाला एक प्रकार का धान्य ।। सहारा, घर, रक्षा का स्थान। आशुकवि-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) तत्काल श्राश्रयभून-वि० यौ० (सं०) शरण्य, कविता रचने वाला कवि ।। भरोसागीर। पाशुग-संज्ञा, पु० (सं०) द्रुतगामी, वाण, शर, वायु, मन,। प्राश्रयस्थान-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) प्राशुगासन-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) धनुष ।। ठहरने या रक्षा का स्थान, शरण की जगह । प्राशुतोष-वि० (सं० यौ० ) शीघ्र संतुष्ट | प्राश्रयदाता-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) होने वाला, जल्द प्रसन्न होने वाला। श्राश्रय या शरण देने वाला, सहायक, संज्ञा, पु० (सं० ) शिव, महादेव, शंकर। सहारा देने वाला, जीविका देने वाला। श्राश्चर्य-संज्ञा, पु. (सं० ) किसी नई, श्राश्रयण---संज्ञा. पु० (सं० श्रा+त्रिअभूतपूर्व या असाधारण वात के देखने अनट ) श्राश्रय, शरण, अवस्थान । या सुनने या ध्यान में श्राने से उत्पन्न होने | श्राश्रयणीय-वि० ( सं० आ+ त्रि+ वाला एक प्रकार का मनोविकार, अचंभा, अनीयर् ) आश्रय देने योग्य, श्राश्रयोपयुक्त । ताअज्जुब, विस्मय, रसों के नौ स्थायी भावों प्राश्रयी-वि० (सं०) आश्रय लेने या में से एक, इस का रस अद्भुत है। पाने वाला, सहारा या शरण लेने या पाने श्राश्चर्यित-वि० (सं०) चकित, विस्मित | वाला। श्राश्रम-संज्ञा, पु० (सं० श्रा--- श्रम -- अल ) | श्राश्रित-वि० (सं० ) सहारे पर टिका ऋषियों और मुनियों का निवास स्थान, हुआ, ठहरा हुआ, भरोसे पर रहने वाला, तपोवन, साधु-संत के रहने की जगह, । अधीन, सेवक, नौकर, अवलम्बित, शरणाविश्राम-स्थान, टिकने या ठहरने की जगह, गत, वश्य, कृताश्रम । स्त्री० प्राश्रिता । हिन्दुओं के जीवन की चार अवस्थायें | यौ० आश्रितस्वत्व-संज्ञा, पु० (सं० ) ( स्मृति ) ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ, बानप्रस्थ । सेवक का अधिकार, शरणागत का हक़ । और सन्यास । मठ, स्थान, कुटी। आश्लिष्ट-वि० (सं० ) या । श्लिष् । प्राश्रम-गुरु-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) क्त) आलिंगत, लिपटा हुआ, चिपटा हुश्रा, कुलपति, कुलाचार्य । मिला हुआ। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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