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. श्रावन
आलेप यौ० आलेख्य-विद्या--चित्रकारी, चित्र- पालोड़ना-स० कि० दे० (सं० भालोडन) कला ।
मथना, हिलोरना, बिलोड़ना, सोचनावि० (सं०) लिखने या चित्रित करने योग्य । विचारना। अालेप-संज्ञा, पु. (सं० श्रा+लिप+ पालोड़ित—वि० (सं० ) मथा हुआ,
घञ् ) मलहम, लेप, लेप करने का पदार्थ । बिलोड़ा हुआ, विमंथित, सुविचारित ।। श्रालेपन-संज्ञा, पु. ( सं० ) लेपन करना, श्रालाल-वि० (सं०) चंचल, चपल, मरहम लगाना।
अस्थिर। श्रापित-वि० ( सं० ) लेप किया हुआ, | पाल्हा-संज्ञा, पु० (दे० ) ३१ मात्राओं लीपा हुआ।
का एक छंद विशेष जिसे वीर छंद भी पालोक-संज्ञा, पु. (सं०) प्रकाश, कहते हैं, महोबे के एक वीर का नाम, जो चाँदनी, उजाला, रोशनी, चमक, ज्योति, पृथ्वीराज के समय में था, बहुत लम्बाद्युति, दीप्ति, दर्शन ।
चौड़ा वर्णन, ग्रंथ विशेष जिसमें वीर छंद में पालोकन-संज्ञा, पु० (सं०) दर्शन, युद्ध का वर्णन किया गया है, सैरा (दे०) । देखना, दक्षिण ।
या पाल्हा-पधारा-अति विस्तृत वर्णन । वि० आलोकनीय-प्रकाशनीय, दर्शनीय । मु०-आल्हा गाना-किसी बात को वि. आलोकित-प्रकाशित, द्युतिमान । बहुत बढ़ा चढ़ा कर कहना, अपने हाल अालोचक-वि० (सं०) देखने वाला,
को विस्तार से सुनाना। आलोचना करने वाला, गुणागुण-निरीक्षक।
वि० पाल्हेत ( पाल्हइत )-पाल्हा पालोचन - संज्ञा, पु. ( सं० आ-+ लुच् + । ___ गाने वाला। अनट ) दर्शन, देखना, गुण-दोष-विवेचन ।। श्रावळ - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० आयु) आलोचना-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) किसी श्रायु, अवस्था, उम्र । वस्तु के गुण-दोष पर निष्पक्ष विचार कर अ० वि० ( विधि ) श्रा, पायो । उसके मूल्य. महत्वादि का निर्णय करना, आउ ( दे० )-घत० पाता है । विचार-पूर्वक उसकी विशेषताओं या रुचिर | श्रावइ प्रावति-आवै। रोचकताओं की स्पाट विवेचना तथा प्रावक-संज्ञा, पु. (सं० ) झोंकी सहना, तदाधार पर अपनी सम्मति देने का कार्य- उत्तरदायित्व। (श्रा० दर्श०)।
श्रावज ( श्रावझ) -संज्ञा, पु० ( दे०) श्रालाचित-वि० ( सं० ) आलोचना - एक प्रकार का बाजा, ताशा । किया हुआ, निरीक्षित, विवेचित, अनु- "तूर तार जनु आवज बाजें"-रामा०। शीलित।
श्रावदार-वि० (दे० ) अाबदार (फा० ) वि० अालोचनीय-अालोचना के योग्य मनोहर, चमकीला, शोभायुक्त, छविमान । विवेचनीय, विचारणीय।
श्रावटनास-संज्ञा, पु० दे० (सं० आवर्त ) पालोच्य–वि० (सं०) आलोचनीय, । हलचल, उथल पुथल, अस्थिरता, संकल्पविवेचनीय, अलोचना करने के योग्य । विकल्प, ऊहापोह । पालोडन--संज्ञा० पु. (सं० ) मथना, | श्रावन*-संज्ञा० पु० दे० (सं० आगमन ) बिलोड़ना, हिलोरना, खूब सोचना-विचारना, आगमन, श्राना। ऊहापोह करना, विमंथन ।
स्त्री० पान--प्रवाई, माना। मा० श. को०-३४
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