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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रारोपना २६१ प्रार्दा प्रारोपनास-स० कि० दे० (सं० भारोपण ) खाया हुआ, दुखी, कातर, अस्वस्थ्य, लगाना, जमाना, बैठाना, स्थापित करना, भारत (दे०)। रोपना ( दे०)। | श्रार्तता-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) पीड़ा, दर्द, प्रारोपित-वि० ( सं० ) स्थापित किया दुख, क्लेश, व्यथा, विकलता, कातरता । हुआ, बैठाया हुआ, लगाया हुआ, रोपा आर्तनाद-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) दःखहुअा, जमाया हुआ, मढ़ा हुआ। सूचक शब्द, पीड़ा से निकली हुई ध्वनि, वि० श्रारोपक। आह, कराह, चीत्कार, कातर स्वर । प्रारोपणीय-धारोपनीय (दे० )-वि० श्रार्तव-वि० (सं० ) ऋतु से उत्पन्न, (सं० ) आरोपित करने के योग्य, स्थापित मासिमी, सामयिक। करने योग्य। संज्ञा, पु० (सं० ) स्त्री का रज, स्त्रियों का प्रारोह–संज्ञा, पु० (सं० ) ऊपर की ओर | ऋतु-काल, मासिक पुष्प। गमन, चढ़ाव, थाक्रमण, चढ़ाई, घोड़े-हाथी | प्रार्तस्वर-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) दुःखश्रादि पर चढ़ना, सवारी, जीवात्मा की सूचक ध्वनि, आर्तनाद, कातर गिरा, कराह, ऊर्ध्वगति (क्रमानुसार ) या जीव का चीत्कार। क्रमशः उत्तमोत्तम योनियों का प्राप्त करना | प्राधिज्य-संज्ञा, पु० ( सं० ) ऋत्विज का ( वेदा० ) कारण से कार्य का प्रादर्भाव, कर्म, पौरोहित्य, पुरोहिती, पुरोहित-कर्म । या पदार्थों की एक अवस्था से दसरी की | आर्थिक-वि० (सं० ) धन सम्बन्धी, द्रव्यप्राप्ति, जैसे बीज से अंकुर होना, जुद्र, और सम्बन्धी, रुपये पैसे का, माली । अल्पचेतना वाले जीवों से क्रमानुसार उन्नत यौ० अार्थिक कष्ट ( कठिनाई )--धना प्राणियों की उत्पत्ति, आविर्भाव, विकास, भाव से कष्ट, दैन्य-दुख, ग़रीबी के क्लेश । उत्थान, (अाधुनिक ) नितंब, स्वरों का अार्थिक चिंता- धन की फ़िक्र, धनचढ़ाव या नीचे स्वर के पश्चात् क्रमश: चिंता। ऊँचे स्वर निकालना ( संगीत)। श्रार्थिक दशा-माली हालत, धन-धान्य की अवस्था। प्रारोहण-संज्ञा, पु. ( सं० ) चढ़ना, प्रार्थिक प्रश्न-धन या रुपये-पैसे का सवार होना, चढ़ाव, सीढ़ी, सोपान, अंकुर सवाल या बात। का प्रादुर्भाव । प्रार्थिक-संकट-धन-सम्बन्धी कठिनाई या आरोहित-वि० (सं० ) चढ़ा हुआ, सवार, संकट, दीनता के दुख या कष्ट । उन्नत । प्रार्थिक-समस्या-धन सम्बन्धी बातें । प्रारोही-वि० (सं० प्रारोहिन् ) चढ़ाने प्रार्थी-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) अर्थ से सम्बन्ध वाला, ऊपर जाने वाला, सवार । रखने वाली उपमा-भेद, एवं अन्य कतिपय संज्ञा, पु. (सं० ) षड़ज से निपाध तक ! अलंकारों के भेद। क्रमशः या उत्तरोत्तर चढ़ने वाला, | वि० (सं० ) प्रार्थना करने वाला, प्रार्थी । स्वरसाधन । आर्द्र-वि० ( सं० ) गीला, भीगा हुआ, प्रार्जव--संज्ञा, पु. ( सं० ) सीधापन, सरस, सजल । ऋजुता. सरलता सुगमता, व्यवहार का प्राक-संज्ञा, पु० (सं० ) अदरक, श्रादी। सारल्य, नम्रता, विनय, सिधाई (दे०)। आा-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) सत्ताईस नक्षत्रों मार्त-वि० ( सं० ) पीड़ित, व्यथित, चोट | में से छठवाँ नक्षत्र, वह समय जब सूर्य For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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