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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रारामगाह २६० आरोपण ( सं० आरव ) प्रारामगाह -संज्ञा, पु० ( फा० ) आराम करने का स्थान, शयनागार, सोने की आरोळ - संज्ञा, पु० दे० ( शब्द, आवाज़ | आरोग - वि० दे० (सं० आरोग्य ) स्वास्थ्य, निरोग | आरोगना * - स० क्रि० दे० (सं० आ रोगना - रुज - हिंसा ) भोजन करना, जगह । आरामतलब - वि० ( फा० ) सुख चाहने वाला, सुकुमार, सुस्त, श्रालसी । श्रारास्ता- वि० ( फा० ) सजा हुआ, श्रलंकृत | खाना । प्रारिक - संज्ञा, स्त्री० दे० (हि- ग्रड़ ) ज़िद, हठ, मर्यादा, सीमा । “नीके पुल श्रारोगे रघुपति पूरन भक्ति प्रकासी " - सूर० । "( कान्ह बलि जाऊँ ऐसी श्ररि न कीजै " - सू० । आरोग्य - वि० (सं० ) रोग-रहित, स्वस्थ, रोगाभाव, अनामय, धाराम, तंदुरुस्त । उनइ श्राये साँवरे तेज सनी देखि रूप की आरोग्यता - संज्ञा स्त्री० (सं० ) निरोगता, चारि ". - सू० 1 स्वास्थ्य | संज्ञा, पु० (सं० ) प्ररोधन - रोक, बाधा, थाइ । प्रारिया - संज्ञा, स्त्री० (दे० ) बर्सात में प्रारोधना - स० क्रि० दे० (सं० आ + होने वाली एक प्रकार की ककड़ी । धन ) रोकना, छेकना, आड़ना । वि० जिद्दी, हठी, हठ करने वाला । प्रारी - संज्ञा स्त्री० दे० ( हि० धारा का अल्प० 1) लकड़ी चीरने का एक औज़ार, छोटा, धारा, बैलों के हाँकने के पैने की नोक पर लगाई जाने वाली लोहे पतली नुकीली कील, जूता सुतारी । वि०. प्रारोधित -- रुँधा हुआ, घेरा हुआ, रोका हुआ । की एक वि० [प्रारोधक — रोकने वाला, घेरने सीने की संज्ञा, स्त्री० (दे० ) ओर ( सं० श्रार = किनारा ) तरफ, कोर, छोर, श्रवँठ । वि० ( मरि - हि० ) हठी, ज़िद्दी | प्रारंधन -संज्ञा, पु० (सं०) रुंधना, दबाना, स्वासावरोध, बेड़ा, घेरा । वि० आरुंधित – रूंधा या घेरा हुआ, कंठावरोध | वि० [प्रासंधक, प्रारंधनीय | श्रारूढ़ - वि० (सं० ) चढ़ा हुआ, सवार, हद, स्थिर, किसी बात पर जमा हुआ, सन्नद्ध, तत्पर, उतारू, कटिबद्ध, तैयार । प्रारूद यौवना – संज्ञा स्त्री० यौ० (सं० ) मध्या नायिका के चार भेदों में से एक । आरेस संज्ञा, पु० (दे० ) ईर्ष्या, डाह | 66 "" कबहुँ न करेहु सवति श्ररेलू रामा० । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाला । वि० [प्रारोधनीय - श्रारोधन - योग्य, घेरने लायक । आरोप - संज्ञा, पु० (सं० ) स्थापित करना, लगाना, मदना, (जैसे, दोषारोप ) किसी वृक्ष को एक स्थान से उखाड़ कर दूसरे स्थान पर लगाना या जमाना, रोपना, बैठाना, झूठी कल्पना, एक पदार्थ में दूसरे के धर्मादि की कल्पना करना, एक वस्तु में दूसरी वस्तु के लक्षणों या गुणों का मदना ( काव्य ) मिथ्या रचना, बनावट, कल्पना, भ्रम । आरोपण - संज्ञा, पु० (सं० ) लगाना, स्थापित करना, मदना, पौधे को एक स्थान से उखाड़ कर दूसरे स्थान पर बैठाना, या लगाना, रोपना, जमाना, किसी वस्तु में दूसरी वस्तु के गुणों की कल्पना करना, मिथ्या ज्ञान स्थापन । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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