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श्रारब्ध
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श्रारामकुरसी श्रारब्ध-वि० (सं० ) उपक्रान्त, प्रारंभ धाराति-संज्ञा, पु. (सं०) शत्रु, बैरी, किया हुअा।
बिपक्षी, रिपु, दुश्मन, विरोधी-पाराती। धारभटी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) क्रोधादिक उग्र " सुधि नहिं तव सिर पर पाराती"भावों की चेष्टा, नाटक में एक वृत्ति का नाम, रामा। जिसमें यमक का प्रयोग अधिक होता है, श्रारात्-प्रव्य० (सं०) दूर, निकट,
और जिसका प्रयोग इन्द्रजाल, संग्राम, समीप । क्रोध, प्राघात, प्रतिघात, रौद्र, भयानक श्रारात्रिक-संज्ञा, पु० (सं० ) आरती, और वीभत्स आदि रसों में किया जाता है। नीराजन, नीराजन-पात्र, आरति-प्रदीप । " झूठो मन झूठी यह काया झूठी प्रार- श्रागधक-वि० (सं० ) उपासक, पूजा भटी"-सूर०।
करने वाला सेवक, पुजारी, अर्चक । पारव-संज्ञा, पु० (सं० ) शब्द, आवाज़, __ स्त्री. प्रागधिका। श्राहट ।
अाराधन-संज्ञा, पु. (सं० ) सेवा, पूजा, " घुरघुरात हय आरव पाये"-रामा० ।
उपासना, तोषण, प्रसन्न करना। श्रारषी-वि० स्त्री० (सं० आर्ष) आर्ष, अाराधना—संज्ञा, स्त्री. (सं० ) पूजा, ऋषियों की।
उपासना, सेवा,। पारस-संज्ञा, पु. ( दे.) आलस्य स० क्रि० (सं० अाराधन ) उपासना (सं० )।
करना, पूजना, संतुष्ट करना, प्रसन्न करना। "श्रति ही नींदर नैन उनीदे पारस रंग वि० श्राराधनीय-आराधना के योग्य ।। भयो है "-श्र० अ०।
प्रागधित-वि० ( सं० ) उपासित, आरसी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० आदर्श) सेवित, पूजित । शीशा, दर्पण, आईना, शीशा जड़ा हुआ श्राराध्य--वि० (सं० आ+राध्+य ) कटोरी के आकार का एक प्राभूषण जो उपास्य, सेवनीय, सेव्य, पूज्य, आराधना अँगूठे में पहना जाता है (दाहिने हाथ में)। के योग्य । वि० दे० ( पारस ) आलसी, काहिल, श्राराम-संज्ञा, पु० (सं० ) बाग़, उपवन, अरसीला।
बाटिका “परम रम्य पाराम यह, जो रामहिं पारा-संज्ञा, पु. ( सं० ) लोहे की दाँतो. सुख देत"-रामा। दार पटरी जिससे लकड़ी ( रेतकर ) चीरी संज्ञा, पु० ( फ० ) चैन, सुख, चंगापन, जाती है, चमड़ा सीने का टेकुमा सुतारी, सेहत, स्वास्थ्य, विश्राम, थकावट मिटाना, सूजा, कराँत, दरांच, क्रकच।
दम लेना, सुविधा, शान्ति । संज्ञा. पु० दे० (सं० ग्रार ) लकड़ी की
मु०-माराम करना-सोना, अच्छा चौड़ी पटरी, जो पहिये की गड़ारी और करना। पुट्टी के बीच में जड़ी रहती है, पाला, श्राराम में होना-सुख में होना, सोना । ताक, अरवा (दे०)।
श्राराम लेना-विश्राम करना। "थारे मनि खचित खरे "-के। पाराम से--फुरसत में, धीरे धीरे । पाराकस-संज्ञा, पु० (फा० ) पारा पाराम होना-चंगा या भला होना ।
चलाने वाला, लकड़ी चीरने वाला, बढ़ई। श्रागमकुरमी-'ज्ञा, स्त्री० यो० (फा० प्रागज'-संहा, स्त्री. (अ.) भूमि, +4. ) एक प्रकार की लम्बी कुरसी ज़मीन, खेत ।
जिस पर लेट भी सकते हैं।
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