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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रामड़ा २५४ प्रामादगी प्रामखाना है या पेड़ गिनना-अपने श्रामरस-संज्ञा, पु० दे० (सं० आम्र + रस) मुख्य उद्देश्य की सिद्धि से अभिप्राय है, । अमरस, अमावट । या व्यर्थ का काम करने से। संज्ञा, पु० दे० (सं० श्रामर्ष) क्रोध । आमड़ा-संज्ञा, पु० दे० (सं० आम्रात) आमर्दन-संज्ञा, पु० (सं० ) ज़ोर से मलना, बड़े बेर के समान श्राम के से खट्टे फलों पीसना, रगड़ना। वाला एक वृक्ष विशेष, पामरा (दे०)। वि० श्रामर्दनीय । श्रामद-संज्ञा, स्त्री. (फा० ) प्रवाई, वि० श्रामर्दित-कुचला हुआ, मला हुआ आना, श्रागमन, पाय, आमदनी। पीसा हुआ । स्त्री० श्रादिता। यौ०-आमद-रा-पाना-जाना, श्रावा- प्रामषे-संज्ञा पु. (सं० ) क्रोध, गुस्सा, गमन । रोष, राग, असहनशीलता, एक प्रकार का प्रामदनी-संज्ञा, स्त्री. ( फा० ) श्राय, संचारी भाव। प्राप्ति, आने वाला धन, अन्य देशों से वि० श्रामर्षित---क्रोधित । अपने देश में आने वाली व्यापार की प्रामलक-संज्ञा, पु० (सं०) आमला, वस्तुयें, ( विलोम रतनी) आयात ।। आँवला-ौरा (दे०) अमरा (दे०) प्रामनाय-संज्ञा०० दे० (सं० श्राम्नाय ) अँवरा ( दे० ) धात्री फल । अभ्यास, परम्परा । स्त्री० अल्प०--श्रामलकी। श्रामना-सामना-क्रि० वि० दे० (हि. यो०-हस्तामलक-हाथ में आँवले के सामना ) मुकाबला, भेंट, समक्ष, सामने, समान । मुलाकात । श्रामलकी-संज्ञा, स्त्री. ( सं० ) छोटी प्रामने-सामने-क्रि० वि० दे० (हि. जाति का आँवला, आँवली। सामने ) एक दूसरे के समक्ष, या मुकाबिले | श्रामला-संज्ञा, पु० दे० ( सं० आमलक) में, सामने, सम्मुख । आँवला, कार्तिक मास में इस वृक्ष की श्रामय-संज्ञा, पु० (सं०) रोग, बीमारी, पूजा होती है और लोग इसके नीचे भोजन पीड़ा, व्याधि। करते हैं। श्रामयाबी-वि० (सं० ) रोगी, पीड़ित । | आमवात-संज्ञा, पु. ( सं० ) अाँव गिरने प्रामरक्त-संज्ञा, पु० (सं०) उदर-रोग, ___ का एक रोग, इसमें कभी कभी शरीर सूजकर लाल मल निकलना और पीड़ा होना, पीला भी हो जाता है, पित्त से उत्पन्न अतिसार। चर्म-रोग। श्रामरक्तातिसार-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्रामशूल-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) आँव आँव और रक्त के साथ दस्त होने का रोग। के कारण पेट में मरोड़ होने का रोग। प्रामरख -संज्ञा, पुं० दे० (सं० आमर्ष) वायु गोला, वायुशूल, उदर-पीड़ा। क्रोध । प्रामातिसार-संज्ञा, पु. यौ० (सं.) श्राव श्रामरखना -अ० कि० दे० (सं० आमर्ष) के कारण अधिक दस्तों के होने का रोग क्रुद्ध होना, दुःख-पूर्वक रोष करना। विशेष । वि० श्रामरखी-क्रोध करने वाला। प्रामात्य-संज्ञा, पु. (सं० ) अमात्य, प्रधान श्रामरण-क्रि० वि० (सं० ) मरण काल, मंत्री, पात्र। पर्यंत, जिंदगी या जीवन-पर्यंत, आमरन श्रामादगी-संज्ञा, स्त्री. (फा० ) तैयारी, (दे०)। । मुस्तैदी, तत्परता, सन्नद्धता। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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