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पांडित्य ।
प्राभासित २५३
प्राम मात्र हो जैसे रसाभास, हेत्वाभास, दीप्ति- | आभ्यंतरिक-वि० (सं० ) भीतरी, दोष, अभिप्राय, अवतरणिका।
अन्दर का। प्राभासित-वि० (सं०) झलकता हुआ, | प्राभ्युदयिक-वि० ( सं० ) श्राभ्युदय, प्रतिबिंबित ।
मांगलिक, सम्पन्न, कल्याण-सम्बन्धी, प्राभास्वर-संज्ञा, पु. ( सं० ) चौसठ सौभाग्यवान, शुभान्वित ।। संख्यकगण, देवता विशेष ।
आमंत्रण-संज्ञा, पु. (सं०) बुलाना, प्राभिचारक-संज्ञा, पु. (सं० अभि+
श्राह्वान, निमंत्रण, न्योता, नेउता (दे०)। चर+णक ) अभिचार-कर्ता, हिंसाकर्म करने | आमंत्रणा-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) सलाह, वाला, हिंसक।
मशविरा । आभिजात्य-संज्ञा, पु. ( सं० ) वंश- |
आमंत्रित-वि० (सं० ) बुलाया हुआ, सम्बन्धी, कोलीन्य, कुलीनता, सदृश,
निमंत्रित, न्योता हुआ, पाहूत ।
वि. प्रामंत्रणीय-निमंत्रित होने के प्राभिधानिक-वि० (सं० ) कोशवेत्ता,
योग्य। अभिमुख करण, संमुखीनत्व, सन्मुखता,
प्राम-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रान) भारत सामना।
का एक प्रधान रसीला मीठा और परमभाभीर-संज्ञा, पु० (सं० ) अहीर, ग्वाला,
स्वादिष्ट फल तथा उसका वृक्ष, रसाल, गोप, एक देश विशेष, ११ मात्राओं का
अम्बा, अमवा (दे० ) श्रामाशय रोग,
(अम–यौगिक में ) जैसे। एक छंद, एक प्रकार का राग। यौ० भाभीर पल्ली-संज्ञा, स्त्री० (सं० )
यौ० अमचूर-आम्रचूर्ण (सं० )। गोपग्राम, गोष्ठ, घोष।
अमरस-(सं० आम्र + रस ) अमहर । भाभीरी-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) एक संकर
वि० (सं० ) कच्चा, अपक्व, प्रसिद्ध ।
संज्ञा, पु० खाये हुये अन्न के कच्चा रहने रागिनी, अबीरी, प्राकृत भाषा का एक भेद
से अनपचकृत सफेद और लसीला मल, विशेष, अहीरी, ग्वालिनी।
आँव, आँव गिरने का रोग। प्राभूषण-संज्ञा, पु० (सं०) गहना, जेवर,
वि० (अ.) साधारण, मामूली. जनसाआभरण, अलंकार।
धारण, जनता। वि० श्राभूषणीय-सजाने योग्य ।
यौ० ग्राम-खास (खास-श्राम ) राजा प्राभूषन-संज्ञा, पु० ( दे० ) आभूषण
या बादशाह के बैठने का महलों के भीतर (सं० ) गहना।
का हिस्सा, दरबार प्राम-वह राज-सभा प्राभूषित-वि० (सं०) अलंकृत, सजा
जिसमें सब आदमी जा सकें ( विलोम हुआ, सुसज्जित, सँवारा हुआ, कृतभंगार।
दरबार ख़ास )। प्राभोग-संज्ञा, पु. (सं० ) रूप में कोई
श्राम तौर से ( पर )-साधारणतः कसर न रहना, किसी वस्तु को लक्षित
साधारणतया। करने वाली सब बातों की विद्यमानता,
वि० (अ० ) प्रसिद्ध, विख्यात ( वस्तु पूर्ण लक्षण, किसी पद्य के बीच में कवि के
या बात। नाम का उल्लेख ।
लोको०-श्राम के श्राम गुठली के माभ्यंतर-वि० (सं० ) भीतरी, आन्तरिक, दाम-दो प्रकार का लाभ देने वाला अंदरूनी।
कार्य।
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