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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पांडित्य । प्राभासित २५३ प्राम मात्र हो जैसे रसाभास, हेत्वाभास, दीप्ति- | आभ्यंतरिक-वि० (सं० ) भीतरी, दोष, अभिप्राय, अवतरणिका। अन्दर का। प्राभासित-वि० (सं०) झलकता हुआ, | प्राभ्युदयिक-वि० ( सं० ) श्राभ्युदय, प्रतिबिंबित । मांगलिक, सम्पन्न, कल्याण-सम्बन्धी, प्राभास्वर-संज्ञा, पु. ( सं० ) चौसठ सौभाग्यवान, शुभान्वित ।। संख्यकगण, देवता विशेष । आमंत्रण-संज्ञा, पु. (सं०) बुलाना, प्राभिचारक-संज्ञा, पु. (सं० अभि+ श्राह्वान, निमंत्रण, न्योता, नेउता (दे०)। चर+णक ) अभिचार-कर्ता, हिंसाकर्म करने | आमंत्रणा-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) सलाह, वाला, हिंसक। मशविरा । आभिजात्य-संज्ञा, पु. ( सं० ) वंश- | आमंत्रित-वि० (सं० ) बुलाया हुआ, सम्बन्धी, कोलीन्य, कुलीनता, सदृश, निमंत्रित, न्योता हुआ, पाहूत । वि. प्रामंत्रणीय-निमंत्रित होने के प्राभिधानिक-वि० (सं० ) कोशवेत्ता, योग्य। अभिमुख करण, संमुखीनत्व, सन्मुखता, प्राम-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रान) भारत सामना। का एक प्रधान रसीला मीठा और परमभाभीर-संज्ञा, पु० (सं० ) अहीर, ग्वाला, स्वादिष्ट फल तथा उसका वृक्ष, रसाल, गोप, एक देश विशेष, ११ मात्राओं का अम्बा, अमवा (दे० ) श्रामाशय रोग, (अम–यौगिक में ) जैसे। एक छंद, एक प्रकार का राग। यौ० भाभीर पल्ली-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) यौ० अमचूर-आम्रचूर्ण (सं० )। गोपग्राम, गोष्ठ, घोष। अमरस-(सं० आम्र + रस ) अमहर । भाभीरी-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) एक संकर वि० (सं० ) कच्चा, अपक्व, प्रसिद्ध । संज्ञा, पु० खाये हुये अन्न के कच्चा रहने रागिनी, अबीरी, प्राकृत भाषा का एक भेद से अनपचकृत सफेद और लसीला मल, विशेष, अहीरी, ग्वालिनी। आँव, आँव गिरने का रोग। प्राभूषण-संज्ञा, पु० (सं०) गहना, जेवर, वि० (अ.) साधारण, मामूली. जनसाआभरण, अलंकार। धारण, जनता। वि० श्राभूषणीय-सजाने योग्य । यौ० ग्राम-खास (खास-श्राम ) राजा प्राभूषन-संज्ञा, पु० ( दे० ) आभूषण या बादशाह के बैठने का महलों के भीतर (सं० ) गहना। का हिस्सा, दरबार प्राम-वह राज-सभा प्राभूषित-वि० (सं०) अलंकृत, सजा जिसमें सब आदमी जा सकें ( विलोम हुआ, सुसज्जित, सँवारा हुआ, कृतभंगार। दरबार ख़ास )। प्राभोग-संज्ञा, पु. (सं० ) रूप में कोई श्राम तौर से ( पर )-साधारणतः कसर न रहना, किसी वस्तु को लक्षित साधारणतया। करने वाली सब बातों की विद्यमानता, वि० (अ० ) प्रसिद्ध, विख्यात ( वस्तु पूर्ण लक्षण, किसी पद्य के बीच में कवि के या बात। नाम का उल्लेख । लोको०-श्राम के श्राम गुठली के माभ्यंतर-वि० (सं० ) भीतरी, आन्तरिक, दाम-दो प्रकार का लाभ देने वाला अंदरूनी। कार्य। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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