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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रापाशी प्रापाशी -संज्ञा, स्त्री० ( फ़ा० ) सिंचाई । श्रावरवाँ - संज्ञा स्त्री० ( फ़ा० ) एक प्रकार की बहुत महीन मलमल । यावरू - संज्ञा, प्रतिष्ठा, मान, बड़ाई, बड़प्पन | ----- स्त्री० ( फा० ) २५२ प्रभास संज्ञा, स्त्री० किसी प्रकार की श्रावपाशी होने वाली खेती की भूमि । ( विलोमख़ाकी ) । इज्जत, प्राब्दिक - वि० (सं० ) वार्षिक, सालाना । प्राभ - संज्ञा, स्त्री० सं० ) शोभा, कांति, पानी, छवि । संज्ञा, पु० (सं० ) पानी, आकाश । " अति प्रिय जिसको है वस्त्र पीताभ शोभी " – प्रि० प्र० । श्राभरण --- संज्ञा, पु० (सं० ) गहना, आभूपण, जेवर, अलंकार, भूषण -ये मुख्यतः १२ हैं : नूपुर, किंकिणी, चूड़ी अँगूठी, कंकण, विजायठ, हार, कंठश्री, बेसर, बिरिया, टीका, सीसफूल, पोषण, परवरिश, पालन, पालन-पोषण । भरन - संज्ञा, पु० दे० (सं० आभरण) भूषण, ज़ेवर, गहना । प्राभा - संज्ञा, स्त्री० (सं०) चमक-दमक, कांति, दीप्ति, झलक, प्रतिबिम्ब, छाया, द्युति, ज्योति, प्रकाश, आलोक, प्रभा । आभार - संज्ञा, पु० (सं० ) बोझ, गृहस्थी का भार, गृह- प्रबन्ध की देख-भाल का उत्तर दायित्व या ज़िम्मेदारी, एहसान, उपकार, एक प्रकार का वर्णिक वृत्त । सं०) उपकार मानने मु० - आबरू जाना- इज्जत जाना, अप्रतिष्ठा होना । आबरू के लिये (पीछे) मरना - मान और प्रतिष्ठा के हेतु सर्वस्व त्यागना, एवं बहुत प्रयत्न करना । आबरू रखना या आवरू बनानामान-प्रतिष्ठा को घटने न देना, इनका बढाना या उपार्जन करना । आबरू उतारना ( लेना ) -- बेइज्जती करना । थाबला - संज्ञा, पु० ( फा० ) छाला, फफोला, फुटका (दे० ) ! प्राबहवा – संज्ञा, स्त्री० यौ० ( फ़ा० ) सरदी - गरमी, स्वास्थ्य यादि के विचार से किसी देश की प्राकृतिक स्थिति या दशा, जलवायु । प्राबाद - वि० (फ़ा० ) बसा हुआ, प्रसन्न, कुशल- पूर्वक, उपजाऊ, जोतने-बोने योग्य ( भूमि ) । " उनको इससे क्या ग़रज़ आबाद हूँ आभारी - वि० बरबाद हूँ " - नूह | प्राबादकार - संज्ञा, पु० ( फ़ा० ) जंगल काट कर आबाद होने वाले काश्तकार । भावादानी -संज्ञा स्त्री० ( फ़ा० ) देखो, " प्रावदानी" । आबादी - संज्ञा, स्त्री० ( फ़ा० ) बस्ती, जनसंख्या, मदुमशुमारी, खेती की भूमि, जनस्थान, कुशलता, गाँव । प्राबी - वि० ( फ़ा० ) पानी -सम्बन्धी, पानी का, पानी में रहने वाला, हलके रंग का, फीका, पानी के रंग का, हलका नीला या आसमानी, जलतट-वासी । संज्ञा, पु० समुद्र लवण, साँभर नमक । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाला, उपकृत । मु० - आभारी होना - कृतज्ञ या उपकृत होना, एहसानमंद होना, ऋणी होना । श्राभाष- संज्ञा, पु० (सं०) भूमिका, धनुष्ठान, उपक्रमणिका, प्रबंध, सम्भाष । आभाषण-संज्ञा, पु० (सं० था + भाष + चनटू ) श्रालापन, कथन, सम्भाषण, बातचीत, बार्तालाप | वि० प्रभाषित, आभाषणीय । प्रभास - संज्ञा, पु० (सं० ) प्रतिबिम्ब, छाया, झलक, पता, संकेत, मिथ्या ज्ञान, ( जैसे रस्सी में सर्प का ) जो ठीक या असल न हो, जिसमें सत्य की कुछ झलक For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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