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प्रापाशी
प्रापाशी -संज्ञा, स्त्री० ( फ़ा० ) सिंचाई । श्रावरवाँ - संज्ञा स्त्री० ( फ़ा० ) एक प्रकार की बहुत महीन मलमल । यावरू - संज्ञा, प्रतिष्ठा, मान, बड़ाई, बड़प्पन |
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स्त्री० ( फा० )
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प्रभास
संज्ञा, स्त्री० किसी प्रकार की श्रावपाशी होने वाली खेती की भूमि । ( विलोमख़ाकी ) ।
इज्जत, प्राब्दिक - वि० (सं० ) वार्षिक, सालाना । प्राभ - संज्ञा, स्त्री० सं० ) शोभा, कांति, पानी, छवि ।
संज्ञा, पु० (सं० ) पानी, आकाश । " अति प्रिय जिसको है वस्त्र पीताभ शोभी " – प्रि० प्र० ।
श्राभरण --- संज्ञा, पु० (सं० ) गहना, आभूपण, जेवर, अलंकार, भूषण -ये मुख्यतः १२ हैं : नूपुर, किंकिणी, चूड़ी अँगूठी, कंकण, विजायठ, हार, कंठश्री, बेसर, बिरिया, टीका, सीसफूल, पोषण, परवरिश, पालन, पालन-पोषण ।
भरन - संज्ञा, पु० दे० (सं० आभरण) भूषण, ज़ेवर, गहना ।
प्राभा - संज्ञा, स्त्री० (सं०) चमक-दमक, कांति, दीप्ति, झलक, प्रतिबिम्ब, छाया, द्युति, ज्योति, प्रकाश, आलोक, प्रभा । आभार - संज्ञा, पु० (सं० ) बोझ, गृहस्थी का भार, गृह- प्रबन्ध की देख-भाल का उत्तर दायित्व या ज़िम्मेदारी, एहसान, उपकार, एक प्रकार का वर्णिक वृत्त ।
सं०) उपकार मानने
मु० - आबरू जाना- इज्जत जाना, अप्रतिष्ठा होना ।
आबरू के लिये (पीछे) मरना - मान और प्रतिष्ठा के हेतु सर्वस्व त्यागना, एवं बहुत प्रयत्न करना ।
आबरू रखना या आवरू बनानामान-प्रतिष्ठा को घटने न देना, इनका बढाना या उपार्जन करना ।
आबरू उतारना ( लेना ) -- बेइज्जती
करना ।
थाबला - संज्ञा, पु० ( फा० ) छाला, फफोला, फुटका (दे० ) ! प्राबहवा – संज्ञा, स्त्री० यौ० ( फ़ा० ) सरदी - गरमी, स्वास्थ्य यादि के विचार से किसी देश की प्राकृतिक स्थिति या दशा, जलवायु ।
प्राबाद - वि० (फ़ा० ) बसा हुआ, प्रसन्न, कुशल- पूर्वक, उपजाऊ, जोतने-बोने योग्य ( भूमि ) ।
" उनको इससे क्या ग़रज़ आबाद हूँ आभारी - वि० बरबाद हूँ " - नूह |
प्राबादकार - संज्ञा, पु० ( फ़ा० ) जंगल काट कर आबाद होने वाले काश्तकार । भावादानी -संज्ञा स्त्री० ( फ़ा० ) देखो,
" प्रावदानी" ।
आबादी - संज्ञा, स्त्री० ( फ़ा० ) बस्ती, जनसंख्या, मदुमशुमारी, खेती की भूमि, जनस्थान, कुशलता, गाँव ।
प्राबी - वि० ( फ़ा० ) पानी -सम्बन्धी, पानी का, पानी में रहने वाला, हलके रंग का, फीका, पानी के रंग का, हलका नीला या आसमानी, जलतट-वासी । संज्ञा, पु० समुद्र लवण, साँभर नमक ।
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वाला, उपकृत ।
मु० - आभारी होना - कृतज्ञ या उपकृत होना, एहसानमंद होना, ऋणी होना । श्राभाष- संज्ञा, पु० (सं०) भूमिका, धनुष्ठान, उपक्रमणिका, प्रबंध, सम्भाष । आभाषण-संज्ञा, पु० (सं० था + भाष + चनटू ) श्रालापन, कथन, सम्भाषण, बातचीत, बार्तालाप |
वि० प्रभाषित, आभाषणीय । प्रभास - संज्ञा, पु० (सं० ) प्रतिबिम्ब, छाया, झलक, पता, संकेत, मिथ्या ज्ञान, ( जैसे रस्सी में सर्प का ) जो ठीक या असल न हो, जिसमें सत्य की कुछ झलक
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