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श्राजीव
२३२
A
लिका
बरहाती।
श्राजीव-संज्ञा, पु० (सं०) जीविका, श्राज्ञाप्रतिघात-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) जीवनोपाय, वृत्ति-बन्धान ।
स्वामिद्रोह, राज-शासन-त्याग । आजीवन-क्रि० वि० (सं०) जीवन- प्राज्ञापन--संज्ञा, पु. (सं० ) सूचित करना, पर्यन्त, जिंदगी भर, यावज्जीवन, तमाम जताना, आज्ञा प्रदान करना । उम्र, श्रायु भर।
वि० श्राज्ञापक, श्राज्ञापित । श्राजीविका-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) वृत्ति, प्राज्ञापालक-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) रोजी, बंधान ।
श्राज्ञा का पालन करने वाला, श्राज्ञाकारी. प्राजोपी-वि० ( सं०) उपजीवी, उप- नौकर, दास, सेवक --- टहलुवा ( दे.)। जीविक।
स्त्री० श्राज्ञा पालिका। श्राजु-क्रि० वि० (दे० ) आज, अद्य।। श्राज्ञा-पालन-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) श्राजू-क्रि० वि० (प्रान्ती. ) प्राजु, श्राज, । श्राज्ञा के अनुसार कार्य करना, फरमांअद्य।
बरदारी। "तुम पायेहु सुधि मोसन भाजू"-रामा०। प्राज्ञापित-वि० (सं०) सूचित किया संज्ञा, पु. (सं० ) बिना वेतन के काम हुआ, जताया हुआ, आदेश दिया हुआ। करने वाला, बेगारी अवैतनिक, अवेतन । श्राज्ञा-भंग-संज्ञा. पु. यौ (सं० ) श्राज्ञा आज्ञा-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) बड़ों का छोटों न मानना, प्राज्ञोल्लंघन करना, आदेको किसी काम के लिये कहना, श्रादेश, शोच्छेदन। हुक्म, अनुमति, निदेश, शासन । प्राज्ञावर्ती-वि० (सं० ) श्राज्ञा के वश. श्राज्ञाकारी-वि० ( सं० अाज्ञाकारिन् ) आज्ञावह, श्राज्ञाधीन । धाज्ञा मानने वाला, हुक्म या आदेश श्राज्य-संज्ञा, पु. ( सं०) घी. घृत, हवि । मानने वाला, सेवक, दास, प्राज्ञानुवर्ती, प्राज्यप-संज्ञा, पु. (सं०) पितृशोक विशेष, निदेश-पालक ।
घृतभोजी। स्त्री० आज्ञाकारिणी।
पाटना-स० क्रि० दे० ( सं० अट्ट ) श्राज्ञाचक्र-संज्ञा, पु. (सं० ) षट्चक्रों | तोपना, दबाना, अड़ाना। में से एक या छठवाँ चक।।
श्राटा-संज्ञा, पु० दे० (सं० अटन = घूमना) प्राज्ञातिक्रम-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) किसी अन्न का चूर्ण, पिसान, चूर्ण, प्राज्ञोल्लंघन, हुक्म अदूली, प्रादेशावहेलन, चून ( दे०)। अवज्ञा।
मु०-पाटे-दाल का भाव मालूम प्राज्ञादायक-संज्ञा, पु. ( सं० ) आज्ञा होना-संसार के व्यवहार या दुनियादारी देने वाला, राय देने वाला।
का ज्ञान होना। श्राज्ञानुवर्तन-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) श्राटे-दाल की चिन्ता (फ़िक्र) होना--
आज्ञानुसार चलना, वि० श्राज्ञानुवर्ती। जीविका की चिन्ता होना। आज्ञाएक-वि० (सं० ) आज्ञा देने वाला, पाटे-दाल भर को हाना-अति साधास्वामी, मालिक, प्रभु।
रण जीवन या जीवन की केवल अति आज्ञापत्र- संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) श्रादेश- श्रावश्यक वस्तुओं के लिये कानी होना लिपि, निदेश-पत्र, हुक्मनामा, वह लेख (प्राय के लिये )। जिसके अनुसार किसी आज्ञा का प्रचार संज्ञा, पु. ( दे०) किसी वस्तु का चूर्ण, किया नाय ।
बुकनी।
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