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पाटोप
२३३
प्राड
आटोप-संज्ञा, पु. (सं०) आच्छादन, प्राड़ना- स० कि० दे० (सं० अल = करण फैलाव, श्राडंबर, विभव, दर्प, अहंकार, करना) रोकना, ठेकना, बाँधना, मना वायु-जन्य उदर-शब्द।
करना, न करने देना, ओड़ना, बचाना, वि० पाटोपित-आच्छादित ।
गिरवी या रेहन रखना, गहने रखना। पाठ-वि० दे० (सं० अष्ट ) चार का प्राडबंद-संज्ञा, पु० ( दे० ) लँगोटी। दूना, दो कम दस।
| प्राडा-संज्ञा. पु० दे० (सं० अलि ) एक यौ०-पाठ पहर- संज्ञा, यौ० (दे०) धारीदार कपड़ा, लट्टा, शहतीर । रात-दिन, पाठ याम।
वि० -- आँखों के समानान्तर दाहिनी ओर से मु०-पाठ पाठ आँसू रोना- बाई ओर को और बाई से दाहिनी को, अत्यंत रोना, बहुत विलाप करना। गया हुश्रा, वार से पार तक रक्खा हुआ, पाठो गांठ कुम्मैत-सर्व गुण-सम्पन्न बैंड़ा। चतुर, चंट, चाई, छंटा हुआ, धूर्त । मु०-पाड़े पाना-रुकावट डालना, पाठौ पहर (अाठौ याम ) रात-दिन । बाधक होना, कठिन समय में सहायक " ओछी संगत कूर की, आठौ पहर होना, शत्रुता करना, वाम होना, विरोध उपाधि"-कबीर ।
करना। " रैन-दिन पाठौ याम ....." - पद्मा० ।
पाड़ा पड़ना--विघ्न डालना, वाधा होना। श्राडंबर-संज्ञा, पु. (सं०) गंभीर शब्द.
आड़े हाथों लेना-किसी को व्यंग्योक्तियों तुरही की आवाज़, हाथी की चिग्याइ, ऊपरी
के द्वारा लज्जित करना, खरी-खोटी सुनाना, बनावट, दिखावा, तड़क-भड़क, टीम-टाम,
डाँटना, फटकारना। चटक-मटक, ढोंग, आच्छादन, तंबू . युद्ध
भाड़ा होना-बाधक होना, रुकावट होना, में बजाने का बड़ा ढोल, पटह ।
बीच-बचाव करना।
" तुरत आनि पाड़ा भयो हाड़ा श्री-छत्र. आडंबरी-वि० (सं० ) प्राडंबर करने
साल '-छत्र। वाला, ऊपरी, बनावट या दिखावा रखने
पाड़े दिन काम पाना-विपत्ति के दिनों वाला, ढोंगी।
में सहायता करना। प्राइ-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) श्रोट, परदा,
पाड़ि-संज्ञा. पु० (दे०) हठ, जिद्द, रोक, आसरा, प्रोझल, सहायता ( वह
श्राग्रह। उसकी आड़ में रह कर बच गया) सहारा,
" इनको यही सुभाव है, पूरी लागी व्याज, बहाना, लम्बी टिकली, टीका, स्त्रियों
श्राड़ि"- कबीर० । का एक भूषण।
प्राडी-संज्ञा, स्त्री० (हि. पाड़ा) तबला, (सं० प्रालि =रेखा ) आड़ा तिलक (स्त्रियों
मृदंग श्रादि के बजाने की एक रीति या के माथे का ) रक्षा, शरण, थूनी, टेक, : ढंग, चमारों की छुट्टी, भोर, तरफ । अडान ।
(दे०) श्रारी-सहायक, अपने पक्ष का, (सं० अल =रोक ) श्राश्रय, आधार। रक्षक, स्वर विशेष । संज्ञा, पु० (सं० अल = डंक ) बिच्छू या वि० - बेंडी, तिरछी। भिड़ का डंक ।
पाड़-संज्ञा, पु० दे० (सं० पालु) एक श्राइन-संज्ञा, स्त्री० (हि. आड़ना ) प्रकार का फल, जो खटमिछे स्वाद का ढाल, आढ़।
होता है। भा० १० को०-३०
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