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प्रागामि-श्रागामी
मागे पड़ना श्रागा-पीछा विचारना (सोचना, प्रागे-क्रि० वि० दे० (सं० अग्र ) दूर पर, देखना)-कार्य के कारण और फल का सामने, सम्मुख, पहिले, प्रथम, तब, फिर, निश्चित करना, अनागत परिणाम का और बढ़कर, पीछे का उलटा, समक्ष, जीवनअनुमान करना, भूत-भविष्य का सोच- काल में, भावी जीवन में, जीते जी, इसके विचार करना।
पीछे या बाद, आगे को, अनंतर, बाद, आगा-पीछा होना--दुविधा, शंका, पूर्व, अतिरिक्त, अधिक, गोद में, लालनसंदेह होना, कारण और फल का न होना। पालन में, जैसे उसके आगे एक बच्चा है। श्रागामि-आगामी-वि० ( सं० आगामिन् ) मु०-आगे आना-सामने अाना, संमुख भावी, आने वाला, होनहार, भविष्यगत । पड़ना, मिलना, सामना या विरोध करना, स्त्री० श्रागामिनी।
रोकना, भिड़ना, घटित होना, घटना। आगार-संज्ञा, पु० (सं० ) घर, मकान,
आगे आना-( लेने के लिये )स्थान, स्थल, जगह. ख़जाना, धाम ।
स्वागत करना, अगवानी करना ।
" आगे श्रायउ लेन"-रामा० । प्रागाह-वि० (फा० ) जानकार, वाकिफ ।
आगे की भविष्य की, भूत की, (पु. संज्ञा, पु. (हि० आगा -- आह-प्रत्य० )
आगे का)। पागम, होनहार, भावी।। प्रागाही-संज्ञा, स्त्री. (फा० ) जानकारी,
धागे को-पागे, भविष्य में, आगे के
लिये। सूचना।
आगे चलना-पथ दिखाना, नेता बनना, अागि *---संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. प्राग)
सबसे प्रथम करना, मुखिया होना। अग्नि, (सं.)।
आगे चलकर-( आगे जाकर)प्रागी (दे०)।
भविष्य में, इसके बाद, पश्चात्, भावी प्रागिल वि० दे० (सं० अग्रिम ) अगला,
जीवन में। अगली ( विलोम-पाछिल )।
आगे गिना जाना—सर्व श्रेष्ठ होना, " भागिल चरित सुनहु जस भयऊ।
प्रमुख होना, (अग्रगण्य होना )। " श्रागिल बात समुझि डर मोही
आगे करना-किसी को अपनी पाड़ या रामा० ।
अगुवा, या प्रोट बनाना, बढ़ाना, उन्नत भागि वर्त-संज्ञा, पु. (सं० ) मेध का
करना। एक भेद।
श्रागे खड़ा करना-(होना)-अपना आगीळ-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० अग्नि ) प्रति निधि या मुखिया बनाना (होना)। भाग।
आगे देखना (दिखाना)-भविष्य का प्रागुल्फ-वि० ( सं० ) गुल्फ-पर्यन्त,
अनुमान या विचार करना, (कराना)। टिहुना तक।
आगे देखकर चलना-सावधानी या श्राग-कि० वि० दे० ( हि० आगे ) धागे, सतर्कता से. ( सचेत होकर ) चलना, अनुसार, सामने ।
भविष्य या परिणाम का विचार करके कार्य "बासर चौथे जाय, सतानंद पागू दिये"- करना। रामा०।
प्रागे निकलना-बढ़ जाना, सर्व श्रेष्ठ " तें रिसि भरी न देखसि भागू -प० । हो जाना, उन्नति कर जाना। अगाऊ (प्रान्ती०) संज्ञा, पु०-परिणाम । श्रागे पड़ना-आगे आना, रोकना ।
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