________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रागम-जानी
२२६
श्रागा-पीछा वि० (सं०) आने वाला, अनागत, " संवत सत्रह से लिखे, आठ आगरे भागामी।
बीस"-छत्र। प्रागम-जानी-वि० दे० (आगम ज्ञानी) स्त्री० श्रागरी-कुशला, दक्षा। होनहार या भावी का जानने वाला। आगरी-संज्ञा, पु० दे० (हि. आगर) श्रागम-ज्ञानी-वि. (सं० ) भविष्य का नमक बनाने वाला व्यक्ति, लोनिया। जानने वाला।
वि० स्त्री० कुशला, चतुरा। वि० प्रागम-ज्ञाता-दैवज्ञ, ज्योतिषो। । श्रागल-संज्ञा, पु० दे० (सं० अर्गल) संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) आगम-ज्ञान- धागर, व्योंडा, बेवड़ा। भविष्य-ज्ञान ।
वि० श्रागे का, अगला, भागिल । वि० श्रागमज्ञ-भावी का जानने वाला। प्रागलि-क्रि० वि० दे० (हि. अगला ) वि० श्रागमवेत्ता-भविष्य का ज्ञाता। सामने, भागे। श्रागमन-संज्ञा, पु. (सं०) प्रवाई, पाना, श्रागला--क्रि० वि० (दे०) अगला, श्रामद, प्राप्ति, पाय, लाभ ।
सामने, आगे। श्रागमवक्ता-वि० यौ० (सं0) भविष्य- अागलान्त-वि० (सं०) गले तक, कंठवक्ता, भावी कहने वाला।
पर्यन्त ।
प्रागवन --संज्ञा, पु० दे० (सं० आगमन ) प्रागम-वाणी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० )
श्राना। भविष्य-वाणी।
" मुनि श्रागवन सुना जब राजा"श्रागम-विद्या-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०)
रामा०। वेद या ज्योतिष-विद्या।
श्रागा-संज्ञा, पु० दे० (सं० अग्र ) किसी प्रागम-सोची-वि० ( सं० आगम+ चीज़ के आगे का हिस्सा, अगाड़ी, देह सोचना-हि.) दूरदर्शी, अग्रसोची, दूरं- का अगला भाग, छाती, वक्षस्थल, मुख, देश (फ्रा.)।
मुंह,ललाट, माथा, लिंगेंद्रिय, अँगरखे या प्रागमोक्त-वि० (सं० ) तंत्र-शास्त्र-विहित । कुरते श्रादि की काट में आगे का टुकड़ा, कर्म, वैदिक रीति के अनुसार कार्य, सेना या फ़ौज का अगला भाग, हरावल, शास्त्रोक्त, तांत्रिक उपासना।
घर के सामने का मैदान, पेश-खेमा, श्रागमी-संज्ञा, पु. (सं०) ज्योतिषी, आगड़ा, भविष्य, श्राने वाला समय, भविष्य का विचारने वाला।
भावी । अंचल, परिणाम, फल । प्रागर-संज्ञा, पु० दे० (सं० आकर ) खान, संज्ञा, पु० दे० (तु. आगा ) मालिक,
आकर, समूह, ढेर, कोष, निधि, खजाना, सरदार, काबुली, अफ़ग़ानी। नमक जमाने का गड्ढा।।
प्रागान--संज्ञा, पु. (सं० आ-। गान ) "पानिप के आगर सराहैं सब नागर" | बात, प्रसंग, हाल, पाख्यान, वृत्तांत, वर्णन । -दास।
प्रागा-पीछा-संज्ञा, पु० यौ० दे० (हि. संज्ञा, पु० दे० (सं० आगार) घर, गृह, आगा + पीछा ) हिचक, सोच-विचार, छाजन, छप्पर, स्थान, व्योंड़ा।
दुविधा, परिणाम, नतीजा, फल, शरीर या वि० दे० (सं० अग्र) श्रेष्ठ, कुशल, पटु, वस्तु के आगे-पीछे का भाग। उत्तम, बढ़ कर, अधिक दक्ष, चतुर । मु०.प्रागा-पीछा करना-दुविधा में " हमतें कोउ नागरि रूपा'-५०। ! पड़ना, हिचकिचाना, संदेह में रहना।
For Private and Personal Use Only