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परखना।
आई २१६
श्राकर्ण प्राई-संज्ञा, स्त्री. ( हि० आना ) मृत्यु, श्रार-अ० क्रि० ( हि० आना ) भाये, मौत मीच ( द०)।
आगये। संज्ञा, खी० (दे० ) आयु ।
आओ-वि० कि.( आज्ञा० हि० आना ) कि० अ० स्त्री० ( हि० पाना ) आगई। प्रायो। पाईन-संज्ञा, पु० (फा० ) नियम, कायदा, आकंपन-संज्ञा, पु. ( सं०) काँपना, जाबता, कानून ।
हिलना पाईना-संज्ञा, पु० ( फा० ) पारसी, दर्पण. वि० श्रापित- काँपता हुआ. हिलता शीशा, किवाड़ का दिलहा।।
हुआ। मु०-आईना हाना-स्पट, या स्वच्छ संज्ञा, पु० सं०) प्र.कर-कंपन, काँपना। होना, निर्मल ।
प्राक- संज्ञा, पु० दे० (सं० अर्क ) मदार, ग्राम -अपनी योग्यता अकौआ, अकवन ।
या क्षमता को जाँचना या परखना । " धीर श्राक-छोरहूँ न धारे धसकत है" प्राईनाबंदी -- सज्ञा, स्त्री० ( फा० ) झाड़- - ज. श०। फ नूप आदि की सजावट, फर्श में पत्थर या पाकड़ाई- संज्ञा, पु. । दे०) पाक । इंट की जुड़ाई।
श्रावन-संज्ञा, स्त्री. (अ.) मृत्यु के आईना साज़-संज्ञा, पु. ( फ़ा० ) आईना पश्चात् की दशा, परलोक । बनाने वाला।
प्राकबाक* - संज्ञा, पु० दे० (सं० वाक्य) प्राईना साजी-संज्ञा, स्रो० ( फा० । काँच अकबक, अंडबंड। के टुकड़े पर कलई करने का काम । प्राकर-- संज्ञा, पु. ( सं० ) खान, उत्पत्तिपाईनी - वि० ( फ़ा० कानून, राज नियम स्थान, खजाना, भंडार, भेद. मूल, समूह, के अनुकूल ।
दक्ष, किस्म, जाति, तलवार चलाने का पाउ8 संज्ञा, पु० दे० (सं० आयु) जीवन, एक गुण या ढंग श्रेष्ठ । उम्र. अवस्था ।
" श्राकर चारि लाख चौराही"- रामा० । वि० कि.० (हि० आना ) पा, पाव ।
" पाकरे पद्मरागाणाम् जन्म कांचमणिः " पाउ विभीपन तू कुल-दूपन"राम० चं०।
पू० का० क्रि० ( हि० आना ) श्राके प्राइ . कहा लहैगो स्वाद तू , एक स्वांस की श्राउ"
श्राकरकरहा-संज्ञा, पु. ( अ०) प्रकर दीन ।
करहा, अकरकरा। प्राउज*-संज्ञा, पु० दे० (सं० वाद्य )।
आकरखना- स० क्रि० दे० ( सं०
आकषण ) खींचना। ताशा, बाजा, पाउझ (दे० )।
संज्ञा, पु० दे० प्राकरखन (सं० प्राकपाउचाउ-संज्ञा, पु० दे० (सं० वायु )
पण)। आँय-बाँय. अंड-बंड।
प्राकरिक-संज्ञा, पु० दे० सं०) खान प्राउन - वि० अ० दे० (हि० आना ) खोदने वाला। श्रावेंगे, अइबै, अइहै, ऐहैं।
याकरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पाकर ) माउस-संज्ञा पु० दे० (सं० प्राशु, वा० खान खोदने का वाम । पाउश ) धान का एक भेद, भदई धान, आकर्ण-वि० (सं० ) कान तक फैला मोसहन ।
। हुश्रा, कान तक।
कुतः ।
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