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प्राधड़ना
२१८
श्राइना प्रावड़ना-म० कि० (दे० ) उमड़ना। . . . . . . . . 'श्राँस रोकि साँस रोंकि " --- विड़ा-वि० दे० ( सं० श्राकुंड ) ऊ. श०। गहरा।
श्रांसो*-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० अंश) "सोभा-रूप-सागर अपार गुन आँवडे ''- भाजी बैना, मित्रादि के यहाँ भेजी जाने रवि०।
वाली मिठाई श्रादि। श्रावल -संज्ञा, पु० दे० (सं० उल्वम् ) | असू-संज्ञा, पु० दे० (सं० अत्र शोक. गर्भ में बच्चों के लिपटे रहने की झिली, प्रेम सुख या करुणादि के कारण नेत्रों से खेंडी, जेरी, साम ।
निकलने वाला जल । प्राधार-(दे०)।
मु०-आंसू गिराना (ढालना )अधिरा-संज्ञा, पु० दे० (सं० आमलक ) । रोना, क्रंदन करना। एक वृक्ष, जिसके फल गोल और खट्टे होते | आँसू पाकर रह जाना-भीतर ही हैं, इनका अचार, मुरब्बा, चटनी श्रादि । भीतर रोकर या कुढ़ कर रह जाना । बनती है और ये दवा के काम में भी प्रांसुओं से मुह धोना- खूब रोना। पाते हैं।
आँसू पोंछना-दया करना, समवेदना या आँवला, पौरा, (दे० )।
सहानुभूति दिखाना. सान्त्वना देना दुख प्रावला-प्रामला -संज्ञा, पु० दे० (सं० दूर करना दिलासा देना. ढाढ़स बंधाना ।
आमलक) आँवरा --अवरा, भौंग (दे० । श्रासू पुछना-श्राश्वासन मिलना. दादर प्रचित्तासार-गंधक-संज्ञा, पु० दे० (हि. बँधना।
आँवला+सार गंधक - सं० ) खूब साफ़ यौ-रक्त (लाह) के आँसू किया हुआ गंधक जो पार-दर्शक हो। ( बहाना )- रक्त-शोषक दुख से रोना। प्रवा-संज्ञा, पु० दे० (सं. आपाक) अहिड़--संज्ञा, पु० दे० ( सं० भांड ) कुम्हारों के मिट्टी के बरतन पकाने का बरतन। गड्ढ़ा ।
ग्राह-प्रत्य० दे० (ह. ना - हाँ । मु०-श्रावों का प्राधा बिगड़ना- अस्वीकार या निषेध-सूचक शब्द. नहीं। किसी समाज या वंश के सभी व्यक्तियों का | प्राइंदा-वि० (फा० ) फिर कभी भविष्य खराब हो जाना।
श्राने वाला, श्रागंतुक । प्रशिक-वि० ( सं० ) अंश-सम्बन्धी, संज्ञा, पु० (फा० ) भविन्य वाल । अंश-विषयक, कुछ थोड़ी, रंचक, (आंशिक क्रि० वि०--भागे, भविष्य में, फिर कभो । पुर्त, या सफलता)।
श्राइ* -- संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० सं० आयु ) श्रांशुक जल-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्रायु, जीवन । दिन भर धूप में और रात भर चाँदनी और अव्य० दे० ( हि आह ) श्राह, हा, हाय. श्रोस में रखकर छान लिया जाने वाला अयि । जल (वैद्यक)।
पू. का. कि० दे० (७०) श्राफर, (हि. श्राम - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० काश) आना ) श्राके, श्राय । संवेदना, दर्द।
" श्राइ पाँय पुनि देखिहौं ".-रामा० । संज्ञा, स्त्री० (सं० पाश ) सुतली, डेरी, " श्राइ गये हनुमान "- रामा० । रेशा।
श्राइना-संज्ञा, पु. ( फ़ा० ) आईना. संज्ञा, पु० दे० ( सं० अश्रु ) आँसू । शीशा, दर्पण ।
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