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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रांतर २१७ श्रावट श्रांतों के बल खुलना-पेट भरना, भोजन सुने प्रारम्भ करना, बिना समझा-बुझा कार्य से तृप्ति होना। या आचरण, अंधेर, मन माना (बिनाश्राँते कुलकुलाना (सूखना )-बड़ी | सोचा-बिचारा ) काम ।। भूख लगना। प्रांधो-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० अंध = प्रांत बोलना-भूख से पेट कुलकुलाना, अँधेरा ) प्रखर वायु, जिससे इतनी गर्द या पेट बोलना। धूल उड़ती है कि चारो ओर अँधेरा छा प्रांत गले पाना-तंग होना, झगड़े में | जाता है, तूफान, अँधड़, अँधवायु, औंधार, पड़ना । झंझा बात। श्रांतर -संज्ञा, पु० दे० (सं० अंतर ) अंतर, | अाँधे, अँधवाघ (दे० ) " आँधी उठी बीच, भेद । प्रचंड "-गिर० । आंद-संज्ञा, पु० दे० दे० (सं० अंदू-पेड़ी) वि. आँधी की सी तेज़ हवा, प्रचंड, तेज़, लोहे का कड़ा, बेड़ी बाँधने की स कड़, । चुस्त, चालाक। बंधन । मु० आँधो ( उठना ) उठाना-अँधेर प्रांदोलन-संज्ञा, पु० (सं० ) बार-बार ( होना) मचाना, प्रबल या वेगवान हिलना, डोलना, उथल-पुथल करने वाला आन्दोलन उठाना ( होना)। प्रयत्न, हलचल, धूम-धाम । आँधी प्राना (चलना)-विपत्ति श्राना, प्रांदोलित-वि० ( सं० ) प्रकंपित, अँधेर होना, आन्दोलन होना। संचालित। यौ० अाँधी के श्राम-अकस्मात, बिना स्त्री० अांदालिता--हिलाई हुई, कंपिता । प्रयास के कभी प्राप्त होने वाला पदार्थ, वि० आन्दोलक-प्रान्दालनकारा, अनिश्चित समय में नष्ट होने वाला, जिसके आन्दोलनकारक। जीवन का निश्चय न हो, जिसके रहने का भरोसा न हो। वि० आन्दोलनाय- आन्दोलन के योग्य आंध्र--संज्ञा, पु. (सं० ) ताप्ती नदी के बात। किनारे का प्रदेश । प्राध-संज्ञा, स्त्री० दे० सं० अंध) संज्ञा दे । अव । श्राम। अंधेरा, धुंध, रतौंधी, अाफ़त, क्लेश, कष्ट, | अँबधा (दे०)। विपत्त। आंबा हलदी-संज्ञा, स्त्री. (दे० ) आमाअधिना -अ० कि० दे० (हि. आँधी) | हलदी. एक श्रौषधि । बेग के साथ धावा मारना, टूटना, ज़ार से | प्राय-बाय-संज्ञा, स्त्री० (अनु० ) अनापझपटना। शनाप, अटॉय-सटाँय, अंड-बंड, व्यर्थ की प्रांधरा-वि० दे० सं० अंध ) अंधा। बात। धुंधरा (दे०) आँधर। अाँव-संज्ञा. पु० दे० (सं० ग्राम = कच्चा ) आँधरी (दे० ब्र०)। एक प्रकार का चिकना, सफेद, लसदार, मल स्त्री. अंधरी, आँधी। जो अन्न के ठीक न पचने पर पैदा होता है । " कहै अंध को आँधरो-मानि बुरो सत- मु० अाँव पड़ना (गिरना)-पेचिश रात" वृद। होना। अाधारम्भ* -संज्ञा, पु० यौ० दे० (सं० प्रांघठ-संज्ञा, पु० दे० (सं० ओष्ट) अन्ध + प्रारम्भ ) अंधेर खाता, बिना देखे- | किनारा, धोती का छोर। भा० श० को०-२८ For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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