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प्रस्तमित
२०३
अस्त्रचिकित्सक डूब जाना, ( सूर्यादि ग्रहों का ) छिपना, अस्ति-अस्ति करना--हाँ हाँ या बाह अन्तर्हित होना।
बाह करना। प्रस्तमित--वि० ( सं० ) तिरोहित, "अस्ति अस्ति बोले सब लोगू" ---प० । अन्तर्हित, छिपा हुआ, डूबा हुआ, नष्ट, वि० श्रास्तिक--वेद और ईश्वर की सत्ता मृत।
को मानने वाला। अस्तर-संज्ञा, पु० ( फा० ) नीचे की तह संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) आस्तिक-वाद । या पल्ला, भितल्ला, दोहरे कपड़े के नीचे का वि० श्रास्तिकवादी। कपड़ा, चंदन का तेल जिसे श्राधार बना संज्ञा, भा० स्त्रो० (सं०) आस्तिकता। कर इत्र बनाये जाते हैं, ज़मीन, आधार, अस्तित्व--संज्ञा, पु. (सं० ) सत्ता का स्त्रियों की बारीक साड़ी के नीचे लगा कर भाव, विद्यमानता, होना, उपस्थिति, पहना जाने वाला वस्त्र-अँतरोटा । सत्ता, भाव, मौजूदगी। (दे०) अंतरपट (सं० )।
अस्तु-अध्य० (सं० ) जो हो, चाहे जो अस्तरकारी-संज्ञा, स्त्री. (फा० ) चूने हो. खैर, भला, अच्छा, ऐसा ही हो। की लिपाई, सफ़ेदी, कलई, गचकारी, यौ० तथास्तु-ऐसा ही हो, एवमस्तुपलस्तर।
ऐसा हो। अस्तव्यस्त-वि० यौ० (सं० ) उलटा
प्रस्तुति-संज्ञा, स्त्री० ( सं० ) निंदा, बुराई, पुलटा, छिन्न-भिन्न, तितर-बितर, विक्षिप्त,
अप्रशंसा। आकुल, संकीर्ण। अस्ताचल-संज्ञा, पु० यो० (सं० ) वह
संज्ञा, स्त्री. ( दे० ) स्तुति, प्रशंसा।
(दे०) असतुति । कल्पित पर्वत जिसके पीछे सूर्य जाकर
....... प्रस्तुति तोरी केहि विधि करौं अस्त या छिप जाता है, पश्चिमाचल,
अनन्ता "--रामा०।। (विलोम ) उदयाचल । अस्ति-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) भाव, सत्ता,
संज्ञा, पु० (सं० ) स्तधन । विद्यमानता, वर्तमानता, उपस्थित रहना। प्रस्तुरा--संज्ञा, पु० ( फा० ) बाल बनाने या० अस्तिनास्ति-हाँ और नहीं। का छुरा, उस्तरा । मु०-अस्ति-नास्ति कहना-(करना) अस्तेय--संज्ञा, पु० (सं० ) चोरी का त्याग, हाँ-नहीं करना, स्पष्ट उत्तर न देना, संदिग्ध । चोरी न करना, दश धर्मों में से एक । बात कहना, अनिश्चित उत्तर देना। | अस्त्र-संज्ञा, पु० (सं० ) फेंक कर शत्रु पर अस्ति-नास्ति में डालना-संदेह में चलाया जाने वाला हथियार, जैसे-बाण, छोड़ना, द्विविधा में डालना।
शक्ति, शव के फेंके हुये हथियारों को रोकने अस्तिनास्ति में पड़ना-द्विविधा में | वाले अस्त्र, जैसे-ढाल, मंत्र-द्वारा चलाये पड़ना।
जाने वाले हथियार, चिकित्सकों के चीड़अस्ति-नास्ति दिखाना-पक्षापत फाड़ करने वाले हथियार, शस्त्र, हथियार, समझाना।
आयुध, प्रहरण । अस्ति-नास्ति न होना-सन्देह या प्रत्रचिकित्सा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) दुविधा न होना।
वैद्यक-शास्त्र या आयुर्वेद का वह अंश या अस्ति-नास्ति में कुछ कहना-हाँ या भाग जिसमें चीड़-फाड़ का विधान है। नहीं करना।
| अस्त्रचिकित्सक-संज्ञा, पु. यो. (सं०)
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