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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - असुरारि २०१ असेद असुरारि-संज्ञा, पु. यो० (सं० ) देवता, वि० दे० (सं० असूत्र ) बे सूत का, जिसविष्णु, हरि। का सूत्र-पात न हुआ हो, जिसका रंच (दे०) असुरारी। मात्र भी ज्ञान न हो, न सोया (सूतनाअसुराई-संज्ञा, स्त्री० (दे०) नीच कर्म, सोना ) हुआ। खोटापन, असुर-कर्म । असूद्र-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रशूद्र ) जो संज्ञा, स्त्री० (दे० ) (हि.-अ+सुराई = | शूद्ध न हो। शूरता-सं०) अशूरता। असूधा-वि० पु० दे० ( वि० अ+सीधा) असुरालय-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) असुरों न सीधा, असरल, टेंदा, वक्र, दुष्ट । का स्थान, दैत्यों का धर या नगर। स्त्री० असूधी। असुस्थ-वि० (सं० ) सुख-स्थिति-रहित, असूना-वि० पु० दे० (सं० अशून्य ) जो अस्वस्थ, रोगी। सूना न हो, अकेला नहीं, शून्यता-रहित । संज्ञा, स्त्री० असुस्थता। स्त्री० असूनी। प्रसुहाग-संज्ञा, पु० दे० (सं० असौभाग्य ) | असूया-संज्ञा, स्त्री० (सं०) दूसरे के गुण अभाग्य, असौभाग्य, विधवापन, वैधव्य ।। में दोष लगाना, ईर्ष्या, डाह, परिवाद, वि० असुहागिन, असुहागिनी। निन्दावाद, द्वेष । एक प्रकार का संचारीअसुहाता-वि० दे० ( हि० अ+सुहाना ) भाव (रसान्तर्गत)। जो न अच्छा लगे. अशोभित. बुरा. अप्रिय, असूर्यग-वि० (सं०) बिना सूर्य के, कुण्डली भरोचक। के घरों में ग्रहों की बिना सूर्य के स्थिति । "नागरिदास बिसारिय नाहीं. यह गति प्रहस्ततः पंचभिरुच्चसंस्थितैरसूर्यगैः "अति असुहाती"-। स्त्री० असुहाती, असुहाई। असूर्यपश्या-वि० स्त्री. (सं० ) जिसे असुहाना--अ० क्रि० दे० (सं० अशोभन ) सूर्य भी न देखे , परदे में रहने वाली, पर्देन अच्छा लगना, अप्रिय. और अरोचक ! नशीन । होना। प्रसूरता-संज्ञा. भा. स्त्री० दे० (सं० प्रसूच्य–वि० (सं० ) जो सूचित करने योग्य न हो, अप्रकाशनीय, अकथनीय।। प्रशूरता ) कायरता, अवीरता, अशौर्य । प्रसूचित --वि० (सं० ) जिसकी सूचना असूल-वि० दे० ( सं० अ-+शूल ) शूल या दर्द-रहित पीड़ा-विहीन, दुःख-हीन, न दो गई हो। क्लेशाभाव, व्यथा-विहीन, अकष्ट । वि० असूचक-सूचना न देने वाला। असूझ-वि० दे० (हि० प्र+सूझना ) संज्ञा, पु० दे० ( उ० ) वसूल. उसूल, उगाअँधेरा, अंधकारमय. जिसका वारापार न । हना एकत्रित करना। दिखाई दे. अपार, विस्तृत, जिसके करने का : असूलना--स० क्रि० (दे०) वसूल करना। उपाय म सूझ पड़े विकट, कठिन. अदृश्य. भूल, ग़लती, जिसमें सूझ या दूरदर्शिता सहने योग्य, असह्य, कठिन । न हो। असेचन-संज्ञा. पु० दे० (सं०) न सींचना, वि० खी० असूझी-नसूझी हुई। असिंचन । प्रस्त*-वि० दे० (सं० प्रस्यूत) विरुद्ध. असेद-वि० दे० (सं० प्रस्वेद ) अस्वेद, असंबद्ध । पसीना-रहित। मा. श० को०- २६ For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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