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असीब
२००
असुरसेन
संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० प्रसीत ) अस्सी, ८० "असु तियन भ्रमनि लखि सुमति धीर" की संख्या।
-के। " असी घाट के तीर"--
असुख-संज्ञा, पु० दे० (सं०) सुखा. संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० असि ) तलवार। भाव, दुख । असीख-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० प्रशिक्षा) वि० सुखी-अप्रसन्न, दुखी, खिन्न । बुरी शिक्षा, बुरा उपदेश ।
असुग-वि० दे० (सं० भाशुग) शीघ्रवि० दे० असीखा (हि. अ--सीखना) गामी, जल्द गमन करने वाला। अशिक्षित, जिसने कुछ नहीं सीखा। संज्ञा, पु० दे० (सं० प्राशुग ) वायु, बाण । असाझा-वि० दे० (हि. + सीझना) असुगम-वि० (सं०) जो सुगम न हो,
जो सीमा या रस-पूर्ण या रस-सिक्त न हो।। असरल, दुर्गम । असीत-वि० दे० (सं० अशीत) शीता. प्रसुगासन-वि० संज्ञा, पु. यो० दे० (सं०
भाव, जो ठंढा न हो, गर्म, उष्ण । प्राशुगासन ) धनुष, शरासन । असीनल-वि० दे० (सं० अशीतल) जो असुचि-वि० दे० (सं० अशुचि ) अपवित्र,
शीतल या ठंढा न हो, उष्ण, गर्म। मैला । असाम-वि० (सं० ) सीमा-रहित, बेहद, प्रसुचित - वि० दे० (सं० अ+ सुचित्त ) अपरिमित, अनंत, अपार ।
अनिश्चिंत, चिंता-युक्त, बुरे चित्त वाला। असीव (दे०७०)।
असुत- वि० (सं०) सुत या लड़के से संज्ञा, भा० स्त्री० (सं०) असीमता। रहित, निस्संतान, अपुत्र, निपूता। प्रसार-वि० (फा० ) कैदी, बंदी। स्त्री० असुता- कन्या-हीन, पुत्र रहिता। असील-वि० दे० (सं० अशील ) शील- असुनी-वि० दे० (हि. अ+ सुनना ) न रहित, असल, खरा, सच्चा।।
सुनी हुई, अन सुनो। असीप-वि० दे० (सं० असीम ) असीम, "ताको के सुनी श्री असुनी सी उत्तरेस सीमा-रहित, अपार, अनन्त ।
तौलौं "-अ० ब०। प्रसास-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० आशिष ) असुविधा-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) कठिनाई, भाशीर्वाद, आसिख ।
अड़चन, दिक्त, तकलीफ, कष्ट । " सुनु लिय सत्य असील हमारी "- असुर-संज्ञा, पु. (सं० ) दैत्य, राक्षस, रामा०।
रात्रि, नीच वृत्ति का पुरुष, पृथ्वी, सूर्य, (दे० अ०) आसिख, (सं०) प्रासिष। बादल राहु, एक प्रकार का उन्माद दानव । प्रसासना-स० कि० दे० (सं० माशिष )
संज्ञा, पु० द० (सं० अ-+- स्वर ) स्वराभाव, श्राशीवाद देना, दुश्रा देना।
बुरा स्वर।
वि० असुरी-दे० (सं० आसुरी) असुर"भूषन असीसै"- भू०।।
सम्बन्धी, बेसुर ताल । असु - संज्ञा, पु० दे० (सं० अश्व ) घोड़ा,
| असुरेस-वि० (सं० अपुरेश ) दैत्याधिचित्त ।
पति, राक्षस पति, निशाचरंश, दानवेन्द्र । संज्ञा पु० दे० (सं० अस +उ ) प्राण वायु, असुरसेन-संज्ञा, पु० (सं० ) एक राक्षस जीवन ।
( कहते हैं कि इसके शरीर पर गया नामक " मो असु दै बरु अस्व न दीजै".- के० । नगर बसा हुआ है)। कि०वि० दे० (सं० आशु ) शीघ्र, जल्दी। संज्ञा, पु० खो० यौ० असुरों की सेना।
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