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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रसम्मत १९७ असहन असम्मन-वि० (सं.) जो राज़ी न हो, अमरार -क्रि० वि० दे० (हि० सरसर) विरुद्ध, जिस पर किसी की राय न हो, निरंतर, लगातार, बराबर।। असहमत । असगीर-वि० दे० (सं० + शरीर ) प्रसम्मति-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) सम्मति शरीर-रहित ।। का अभाव, विरुद्ध या विपरीत मत या गय।। वि० दे० असरीरी (सं० अशरीरी) प्रम्म्मान--- संज्ञा, पु० (सं० ) सम्माना- देह रहित ।। भाव, अनादर, तिरस्कार । श्रमगरिनौगिग-संज्ञा, स्त्री० यौ० दे० वि० स्त्री० अमम्मानिता। (सं० अशरीरिणी गिरा ) आकाश वाणी, वि० सम्मनित-अनाहत. तिरस्कृत। अमम्मुग्व-संज्ञा, पु. (सं०) असमक्ष, अमल-वि (अ० ) सच्चा खरा, उच्च, परोक्ष, प्रोट में। श्रेष्ठ, बिना मिलावट का, स्वाभाविक, असम्यक-वि० (सं० ) असंपूर्ण, सब शुद्ध, ख़ालिस, जो झूठ या बनावी न हो। प्रकार नहीं। संज्ञा, पु. जड़, मूल, मुनियाद, मूलधन । असमान-वि० (सं० ) जो समान या अमलियत-संज्ञा, स्त्री० (अ.) तथ्यता, तुल्य न हो, नाबराबर, असदृश, विषम, वास्तविकता, जड़, मूल, सार तत्व । समान नहीं। असलो-वि० (अ० असल ) सच्चा, खरा, संज्ञा, पु० दे० (फा० आसमान ) पासमान, मूल, प्रधान, बिना मिलावट का, अकृत्रिम, आकाश, अंतरिक्ष, नभ। शुद्ध, यथार्थ । वि० (सं० अ-- सह +मान ) जो मान-अमलील-वि० दे० (सं० अश्लील ) युक्त न हो। भद्दा, असभ्य, अशिष्ट । असमापिका ( क्रिया ) संज्ञा, स्त्री० (सं०) संज्ञा, स्त्रो० असलीलता। जिस क्रिया से वाक्य पूर्ण न हो, कालबोधक असलेउ-(असह ) वि० दे० ( सं० असह्य ) असहनीय । असमान-वि० (सं०) अपूर्ण, अधूरा।। "एक न चलै अब प्रान सूर प्रभु असलेउ संज्ञा, स्त्री० (सं०) असमाप्ति-अपूर्ति, साल सले"- शूर। अपूर्णता। अम्लेष-संज्ञा पु० दे० (सं० श्लेष ) जो असमेल-संज्ञा, पु० दे० (सं० ) अश्वमेध श्लेष न हो, श्लेष । नामक यज्ञ। असलेखा- संज्ञा, पु० दे० (सं० अश्लेषा) असयान-अपयाना -वि० दे० (हि. एक नक्षत्र । म+सयान-सं० + सज्ञान) सीधा हि० यौ० ( अस–ऐसा+ लेखा ) ऐसा सादा, अनाड़ी, मूर्ख, मूढ, भोला-भाला। स्त्री० असयानी। सोचा, हिसाब। संज्ञा, भा० पु. प्रमयानप-अमयानता। असवार *---संज्ञा, पु० दे०(फा० ) सवार, अमर-संज्ञा, पु. (अ.) प्रभाव, दबाव । चढ़ना, सवार होना। वि० दे० (सं० प्र+शर ) वाण-विहीन, असह* --- वि० दे० (सं० असह्य ) असह्य, शर-रहित । दुस्सह, न सहन किया जा सकने वाला। अमरल- वि० (सं० ) जो सरल या सीधा अमहन-संज्ञा, पु० (सं० ) शत्रु, बैरी। व हो, टेवा, वक्र, कठिन, कुटिल। वि० असाय, उग्र, अधीर, असहिष्णु । .. For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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