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अव्यवहार्य १८५
प्रशन अव्यवहार्य-वि० (सं० ) जो व्यवहार में अव्युत्पन्न-वि० (सं० ) अनभिज्ञ, अनारी, न लाया जा सके, व्यवहार या प्रयोग वह शब्द जिसकी व्युत्पत्ति या सिद्धि न हो के जो अनुपयुक्त, या अयोग्य हो, पतित, सके ( व्याकरण)। जाति-भ्रष्ट ।
अव्यूढ-वि० (सं० ) अविपुल, अविशाल । संज्ञा, पु० (सं०) अव्यवहार-दुर्व्यवहार । अव्वल-वि० (०) पहिला, आदि, अव्यवहित-० (सं० ) व्यवधान-रहित, : प्रथम, उत्तम. श्रेष्ठ । संस्कृत, सन्निकट, समीप, पास।
संज्ञा, पु० आदि, प्रारम्भ । संज्ञा, पु० (सं०) अव्यवधान, व्यवधाना- अशंक-वि० (सं० ) बेडर, निडर, निर्भय, भाव, दो वस्तुओं को न मिलने देने वाला निश्शंक। या पृथक करने वाले वाधक के बिना। अशंकर--वि० (सं०) अमंगलकारी, अव्याकृत-वि० (सं० ) जिसमें किसी अकल्याणकारक । प्रकार का विकार न हो, अप्रकट, गुप्त, प्रशंका-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) शंका का कारण-रूप, प्रकृति ( सांख्य शास्त्र) न होना, संदेह-विहीनता। छिपा हुअा, निर्विकार ।
। अशोकत-वि० (सं० ) निर्भीक, शंकाअव्याज-वि० (सं० ) व्याज या बहाना से रहित । रहित, सूद से रहित, बेसूद, बिना स्त्री० प्रशंकिता। व्याज के।
प्रशंभु-वि० (सं० ) अमंगल, अशिव, अव्यापार-वि० ( सं० ) बिना व्यापार या अहित । काम के, व्यापाराभाव, बिना काम के. पशकुन-संज्ञा, पु० (सं० ) बुरा शकुन, कार्याभाव, बेकाम।
बुरा लक्षण, अपशकुन । संज्ञा, पु० बुरा व्यापार या बुरा काम । असगुन ( दे० ) बुरे चिन्ह, अशुभ-सूचक अव्यापक-वि० (सं० ) जो व्यापक न बातें। हो, अविभु।
अशक्त–वि० (सं० ) निर्बल, असमर्थ, अव्याप्त--वि० ( सं० ) जो व्याप्त या कमज़ोर। ध्यापक न हो।
असत (दे० ) शक्ति-रहित । अव्याप्ति--वि० संज्ञा, स्त्री० (सं.) किसी अशक्तता-संज्ञा, भा० स्त्री० (सं० ) परिभाषा के सर्वत्र घटित न होने का अक्षमता, योग्यता, असमर्थता, निर्बलता। दोष ( न्याय० ) किसी एक पदार्थ में दूपरे | प्रशक्ति-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) निर्बलता, पदार्थ का मिला हुआ न होना, अनुमान । इन्द्रियों और बुद्धि का बेकाम होना का कारण न होना ( न्याय०) अविस्तार, । (सांख्य ) क्षीणता, शक्ति-हीनता। सम्पूर्ण लक्ष्य पर लक्षण का न घटित अशक्य-वि० (सं० ) असाध्य, न होने होना ।
योग्य, असम्भव, शक्ति से परे । अव्यावृत--वि० (सं०) निरंतर, लगातार, | अशक्यता-संज्ञा, भा० स्त्री० (सं० ) अटूट, ज्यों का त्यों, यथास्यात् तथा, असाध्य, साध्यातिरिक्त, असम्भवता। बराबर, अविरल, अविरत ।
प्रशन-संज्ञा, पु. (सं० ) भोजन, प्रहार, अव्याहत-वि० (सं० ) अप्रतिरुद्ध, बेरोक, अन्न, खाना, चिनक भिलावाँ । सत्य, ठीक, युक्ति-युक्त, अवरोध-रहित । असन--(दे०)। "अव्याहतैः स्वैरगतैःस तस्या"-रघु०। “असन कंद-फल मूल"-रामा । मा० श० को०-२४
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