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सनि केतु नहिं राहू
प्रशनाच्छादन
प्रशनाच्छादन -संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अन्न-वस्त्र, रोटी कपड़ा, खाना- कपड़ा । शनि -संज्ञा, पु० (सं० ) विद्युत्, वज्र, इन्द्रास्त्र |
प्रसनि (दे० ) । लूक न
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प्रशम्बल - वि० (सं० ) अर्थ-हीन, मार्ग व्यय - शून्य, पाथेय-रहित ।
प्रशम्य - वि० (सं० ) विराम योग्य, अविश्रान्त, विश्रामाभाव ।
शयन - वि० (सं० ) बिना शयन या सोने के, न सोना, अनिद्रा । शरण - वि० सं० ) निराश्रय, रक्षाहीन, निरालंब, अनाथ, जिसे कहीं शरण न हो ।
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सरन (दे० ) ।
शरण-शरण - वि० (सं० यौ० ) निराश्रयाश्रय, अनाथ नाथ, भगवान, ईश्वर । सरन सरन (दे० ) ।
साधुः
शरण्य - वि० (सं० ) जो शरण न दे सके, शरण न दे सकने वाला, ( शरणे शरण्यः, अ + शरण्य ) । अशरफी-संज्ञा स्त्री० ( फ़ा० ) से पच्चीस रुपये तक का सोने का एक सिक्का, मोहर ।
सोलह
"
(दे० ) पीले रंग का एक फूल, स्वर्णमुद्रा - असरफी (दे० ) । अशरफ़ - वि० ब० व० ( अ० ) शरीफ़, भद्र, सज्जन, भलामानुष, अच्छा आदमी । शरीर-संज्ञा, पु० (सं०) कामदेव, नंग, कन्दर्प वि० शरीर-रहित ।
प्रशिरस्क
वि० अशरीरी - जो शरीर धारी न हो, निराकार |
अशांत - वि० (सं० ) अशिष्ट, जो शान्त न हो, अस्थिर, अधीर, दुरन्त, चंचल, संतुष्ट, भावित ।
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रामा० ।
यौ० शनि-पात -संज्ञा, पु० (सं० ) प्रशान्ति-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) अस्थिरता, वज्रपात, विद्युत्-पतन | चंचलता, क्षोभ, असंतोष, उत्पात, खलबली, गड़बड़ी |
वि० (सं० अ + शनि ) शनि-रहित । प्रशमसंज्ञा, पु० (सं० ) लुब्धता, विक्लव,
अशान्ति, शमनाभाव ।
शापित - वि० (सं० ) जिसे शाप न दिया गया हो, शाप-रहित । अशारीरिक - वि० (सं० ) जो शरीरसम्बन्धी न हो, जो देह-विषयक न हो, मानसिक ।
शालीन - वि० (सं० ) धृष्ट, ढीठ । संज्ञा स्त्री० भा० (सं० ) धृष्टता, ढिठाई । प्रशासित - वि० सं०) शासन - रहित,
संज्ञा, स्त्री० भा० (सं० ) अशांतताशिष्टता, दौरात्म्य, अधीरता ।
अकृतशासन |
शावरी -संज्ञा स्त्री० (सं० ) एक प्रकार की रागिनी का नाम !
सावरी (दे० ) |
शास्त्र - वि० (सं० ) शास्त्र - विरुद्ध, अवैध, विधि-हीन |
शास्त्रीय - वि० (सं० ) शास्त्रध-विरुद्ध, जो शास्त्र सम्बन्धी न हो, अवैज्ञानिक । प्रशिक्षित - वि० (सं० ) जिसे शिक्षा न दी गई हो, जिसने शिक्षा न पाई हो, पढ़, अनपढ़, बेपदा-लिखा, मूर्ख, पंडित, असभ्य, अनभिज्ञ ।
अशित - वि०
सं०) भुक्त, खादित ( श्
+) 1
वि० ( अ + शित ) श्याम ।
शिर-संज्ञा, पु० (सं० प्रश + इर) हीरक, हीरा, अनि, राक्षस, सूर्य । प्रशिरस्क - वि० (सं० ) मस्तक- हीन, कबंध, धड़, रुंड ।
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