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अघलेहन
. अवसर लापक चटनी, माजूम, चाटी जाने वाली अवाम, अवस ( दे०)। औषधियों की चटनी, किवाम, जैसे--- "अवसि देखिये देखन जोगू"-- रामा० । वासाघलेह।
अवशिष्ट -- वि० ( सं० ) शेष, बाकी, बचा अवलेहन-संज्ञा, पु. ( सं० ) चाटना, हुश्रा, उच्छिष्ट, उद्वत, अवशेष। चीखना, प्रास्वादन करना, स्वाद लेना। अवशेष -संज्ञा, पु० (सं० ) अन्त, शेष अवलाकन--संज्ञा, पु. ( सं० ) देखना, बाकी समाप्ति । वि० बचा हुआ। देख-रेख, देख-भाल. जाँच-पड़ताल, दर्शन, वि० अवशेषित-- बचा हुदा, बाक़ी। दष्टि-पात, ष्टि देना, विचारना, पढ़ना। अवश्यंभावी- वि० (सं० अवश्यंभाविन् ) अवासना*---स० कि० दे० (सं० अवलो-: जो अवश्य हो, अटल, जो टल न सके, कन ) देखना, जाँचना, अनुसंधान करना, ध्रुव, ज़रूर होने वाला। खोजना, विचारना।
अवश्य --- कि० वि० (सं० ) निश्चय-पूर्वक, अवलोनि-संज्ञा. स्त्री० दे० ( सं० । निस्सन्देह, निश्चित, निश्चय रूप से, ज़रूर. अवलोकन ) चितवन, दृष्टि , आँख, देखना, उचित कर्तव्य, सर्वथा सम्भव । नज़र।
वि० जो वश में न किया जा सके । प्राबलोकनीय-वि० ( सं० ) देखने के वि० श्रावश्यक। योग्य, दर्शनीय, विचारणीय. पठनीय, अवश्या-वि० (सं० ) जो वश में न श्रा खोजने के योग्य ।
सके, जो वश में न हो। अवलोकित--वि० (सं० ) देखा हुआ, ' अवश्यमेव --- कि० वि० (सं० ) अवश्य ही. विचारा हुथा, खोजा हुआ. पढ़ा हुआ। निस्सन्देह, ज़रूर, निश्चय ही। शवलाकय- वि० क्रि० (सं० ) देख देखा, है भारत धन्य अवश्यमेव "-मै० देखिये, दृष्टि दीजिये, विचारिये, ( यद्यपि श० गु०। यह शुद्ध तत्सम या संस्कृत-रूप है तथा । अघस-क्रि० वि० दे० । सं० अवश्य, हिन्दी में प्रायः प्रयुक्त हुआ है)। माश ) अवश्य, जो वश में न हो। अवलोकिय, अवलोकिये, अवलोकहु अवसि ( दे० ० ) ज़रूर । ( 9. भा० ) अवलोकि पू० का० वि० लाचार विवश. जिसमें अपना वश क्रि० (ब्र.)।
न हो। .. गावहिं छबि अवलोकि सहेली " अवमन्न-वि० (सं० ) विषाद-प्राप्त, दुखी, -रामा० ।
। नष्ट होने वाला सुस्त श्राल सी. निकम्मा-- अपलोचना* ... स० कि० दे० ( सं० निकाम (दे० ) श्रान्त, क्लान्त, गिरा हुआ,
आलोचन ) दूर करना, हटाना, अलग । जड़ीभूत, उदास । करना।
ग्रघमन्नता–संज्ञा, स्त्री. ( सं० ) सुस्ती, वि० अवलोचित, अवलोचनीय, उदासी, दुख, शान्ति, थकावट । अवलोचक।
___ अधमर-संज्ञा, पु० (सं० ) समय, मौका, अघश-वि० ( ० ) विवश. लाचार, काल, अवकाश, विराम, विश्राम, प्रस्ताव, अनायत, पराधीन, श्रवाध्य, असमर्थ । मंत्र विशेष, वर्षण, वत्सर, क्षण, फुरसत, खो. अषशा ( दे० ) अबस
इत्तफ़ाक, श्रोसर ( दे० ब्र०)। अवशि-अवशकि० वि० दे० ( सं० " औसर मिले औ सिरताज कछू पूछहिं अवश्य ) अवश्य, ज़रूर ।
तौ"---ऊ० श० ।
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