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अपसर्पण
अवस्थाता मु०-अवसर चूकना-मौका हाथ से | अवसेख* वि० दे० (सं० अवशेष ) शेष, जाने देना । औसर चूके बरसिबो धन को बचा हुआ। कौने काम-अवसर खोजना, हूँढना | अवसेचन-संज्ञा, पु० (सं० ) सींचना, -मौका ढूंढ़ना ।
पानी देना, पसीजना, पसीना निकलना, अवसर ताकना--मौके की इंतिजारी रोगी के शरीर से पसीना निकालने की करना।
क्रिया, देह से रक्त निकलना। संज्ञा, पु. एक प्रकार का अलंकार जिसमें वि. प्रवसेचित-अवसिचित-सींचा, किसी घटना या बात का ठीक या अपेक्षित
या पसीजा हुआ। समय पर होना या घटना दिखलाया जाय। वि० अघसेचक-सींचने वाला, पसीना अपसर्पण-संज्ञा, पु० (सं० ) अधोगमन, निकालने वाला, पसीजने वाला । अधःपतन, अवरोहण, नीचे गिरना, वि० अवसेचनीय-सींचने या पसीना उतरना।
निकालने के योग्य । अवसर्पित-वि. ( सं० ) गिरा हुआ, | अपसेर-प्रषसेरि -संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० उतरा हुश्रा पतित, अधोगामी।। अवसर ) असबेर, अटकाव, उलझन, देर, अवसर्पिणी-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) पतन का विलम्ब, चिंता, व्यग्रता, उचाट, हैरानी, वह समय जिसमें ह्रास होते होते रूपादि क्लेश, व्याकुलता। का क्रमशः पूर्ण नाश हो जाता है ( जैन- " गई रही दधि बेचन मथुरा तहाँ श्राजु शास्त्र)।
अवसेर लगाई"-सूबे० । अवसाद-संज्ञा, पु० (सं० ) नाश, क्षय, " गाइन के अवसर मिटावहु-सूर० । विषाद, दीनता, थकावट शैथिल्य, कमज़ोरी, " भये बहुत दिन प्रति अवसेरी "..-- नाश ।
रामा०। अवसादित-वि० (सं० ) शिथिल, दु.खी, ( असबेर-से उलटकर कदाचित अवसेर दीन, नष्ट, कमज़ोर, थका हुआ। अवसान-संज्ञा, पु. (सं०) विराम, संज्ञा, स्त्री० चाह, आशा। ठहराव, समाप्ति, अन्त, सीमा, सायंकाल, | अघसेरना-स० क्रि० दे० ( अवसेर ) तंग मरण, शेष।
करना, दुःख देना, हैरान करना, उलझाना, "दिवस का अवसान समीप था" प्रि०प्र० । परेशान करना। संज्ञा, पु० (दे० ) होश, हवास, संज्ञा।
अवस्थ—संज्ञा, पु० (सं०) एक प्रकार " छूटे अवसान-मान धनंजय के "
का यज्ञ। रत्नाकर ।
अवस्था-संज्ञा, स्त्री० (सं०) दशा, हालत, (दे० ) प्रौसान-चेतनता।
समय, काल, श्रायु, उम्र, स्थिति, मनुष्य मु०-अघसान छूटना-होश-हवास न की चार दशायें या अवस्थायें-जाग्रत, रहना।
स्वप्न, सुषुप्ति, तुरीय, मनुष्य-जीवन की पाठ अवसान जाना या उड़ना-होश न | अवस्थायें-कौमार, पौगंड, कैशोर, यौवन, रहना, सुधि-बुधि न रहना।
बाल, वृद्ध, वर्षीयान् , गति । अवसि-क्रि० वि० दे० (सं० अवश्य ) | अवस्थाता- संज्ञा, पु० (सं० ) अवस्थानअवश्य , ज़रूर।
कारी, अधिष्ठाता, प्रधान । भा० श० को०-२३
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