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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - स्थापत्यवेद १८३७ स्थिर स्थापत्यवेद-संज्ञा, पु. यौ० ( सं०) चार | स्थाली-पुत्लाक-न्याय-संज्ञा, पु० यौ० उपवेदों में से एक, शिल्पवेद, वास्तु-शिल्प- (सं०) एक बात को जानकर उसके संबंध की शास्त्र, कारीगरी की विद्या। । अन्य सब बातें जान लेना। स्थापन-संज्ञा, पु. (सं०) रखना, उठाना, स्थावर --- वि० (सं०) अचल, अटल. स्थिर, खड़ा करना, जमाना, किपी विषय को गैरमनकूला (फ़ा०), जो एक जगह से दूसरी प्रमाणों से सिद्ध करना, प्रतिपादन या ! पर न लाया जा सके। संज्ञा, स्त्रीसाबित करना, निरूपण, नया काम जारी स्थावन्ता। विलो. ---जंगम | संज्ञा, पु. करना, थापन (दे०)। वि०--स्थापनीय, -पहाड़, पेड़, अचल धन या संपत्ति । स्थापित। स्थावरविष-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वृक्षादि स्थापना-संज्ञा, स्त्रो० (सं०) थापना (दे०), स्थावर पदार्थों में होने वाला विष । बैठाना, जमाना, रखना, स्थित या प्रतिष्ठित स्थाविर-संज्ञा, पु. (सं०) बुढ़ापा, बुढ़ाई । करना, सिद्ध या प्रतिपादन करना, साबित स्थित--वि० (सं०) अपने स्थान पर स्थित करना। या ठहरा हुआ, अवलंबित, आसीन, बैठा स्थापित-वि० सं०) प्रतिष्ठित, व्यवस्थित, हुआ, स्वप्रण पर जमा हुआ, उपस्थित, निश्चित, निर्दिष्ट, जिसकी स्थापना की गई। विद्यमान, ऊर्ध्व, निवासी, अवस्थित, खड़ा हो, थापित (दे.)। "प्रभु स्थापित मूनि हुश्रा, रहने वाला। शंभु रामेश्वर जानो"- स्फु० । स्थितता -- संज्ञा, स्त्री० (सं०) स्थिति, ठहराव । स्थायित्व-संज्ञा. पु. (सं०) स्थिरता, स्थितप्रज्ञ-वि० (सं०) सब मनोविकारों सुदृढ़ता, स्थायी होने का भाव। से रहित, स्थिर विचार-शक्ति या विवेकस्थायी-वि० ( सं० स्थायिन् ) स्थिर रहने बुद्धि वाला, श्रात्मसंतोषी । " स्थितया टिकने वाला, टिकाऊ, ठहरने वाला, प्रज्ञस्य का भाषा"-भ० गी। दृढ़, बहुत दिनों तक रहने या चलने वाला, स्थिति--संज्ञा, स्रो० (सं०) परिस्थिति, थाई (दे०)। ठहराव, टिकाव, रहना, ठहरना, निवास, स्थायीभाष-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) विभा- दशा, अवस्था, अवस्थान, दर्जा, पद, एक वादि में अभिव्यक्त हो रसत्व को प्राप्त होने दशा या स्थान में रहना, सदा बना रहना, वाले तथा रस में सदा स्थित रहने वाले अस्तित्व, स्थिरता, पालन । तीन प्रकार के भावों में से एक, इसके नौ स्थितिस्थापक-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) भेद हैं:--हास्य. शोक, भय, जुगुप्सा या वह शक्ति या गुण जिसके कारण कोई वस्तु घृणा, रति, क्रोध, उत्साह, विस्मय, और, । नई स्थिति में पाकर भी फिर अपनी पूर्व दशा निर्वेद ( साहि.)। को प्राप्त हो जाये । वि.--किसी पदार्थ को स्थायी समिति --संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) ! उसकी पूर्व दशा में प्राप्त कराने वाली किसी सभा या सम्मेलन के दो अधिवेशनों शक्ति, लचीला। के बीच के समय में उसका कार्य संचालन स्थिति-स्थापकता (स्त्रो०) स्थिति स्थापकरने वाली समिति है। कत्व-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) लचीलापन, स्थाल-- संज्ञा, पु० (सं० स्थल ) बड़ी थाली, | स्थिति-स्थापक का भाव । बड़ी हाँड़ी, रकाबी, थाल (दे०)। | स्थिर----वि० (सं०) अचल, निश्चल, शाश्वत, स्थाली-- संज्ञा, स्त्री. ( हि० स्थाल ) थाली | अटल, ठहरा हुआ, शांत, स्थायी, दृढ़, (दे०), तश्तरी, रकाबी, हाँड़ी। | मुकर्रर, नियत, निश्चित। संज्ञा, पु०-शिव, For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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