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स्तर
स्तर -- संज्ञा, पु० (सं० ) परत, तह, थर, तबक, तल्प, शय्या, सेज, पृथ्वो- विद्या में भिन्न भिन्न कालों में बनी तहों के श्राधार पर भूमि की बनावट और विभाग का विचार, प्रस्तर (दे०), दोहरे कपड़े की भीतरी
वस्त्र |
स्तरण – संज्ञा, पु० ( सं० ) फैलना या बखेरना, छितराना। वि० - स्तरणीय, स्तरित ।
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स्तव - संज्ञा, पु० (सं० ) स्तुति स्तोत्र, किसी देवता या महापुरुष का गुणगान, या रूपादि का पदबद्ध, वर्णन | स्तवक - संज्ञा, पु० (सं०) फूलों या फलों का गुच्छा, गुलदस्ता, समूह, राशि, ढेर, पुस्तक का परिच्छेद या श्रध्याय, स्तुति करने वाला, स्तवक (दे० ) । " निपीय मानस्तवकाः शिलीमुखैः " - किरा० । स्तवन -- संज्ञा, पु० (सं०) स्तुति, स्तव, यशोगान, कीर्ति - कीर्तन, गुण-कथन । वि० स्तवनीय |
स्तीर्ण – वि० (सं० ) फैलाया, छितराया या बिखेरा हुआ, विकीर्ण, विस्तृत । स्तुत - वि० (सं०) प्रशंसित, जिसकी स्तुति की गई हो ।
स्त्रीत
स्तुत्य - वि० (सं०) श्लाध्य, प्रशंसनीय, कीर्तिनीय, स्तुति या बड़ाई के योग्य । स्तूप - संज्ञा, पु० (सं०) ऊँचा टीला या दूह, वह ऊँचा टीला जिसके तले भगवान बुद्ध या अन्य किसी महात्मा की हड्डियाँ या केशादि स्मृति चिह्न रखे हों । स्तेय - संज्ञा, पु० (सं० ) चौरी, स्तोक - संज्ञा, पु० (सं० ) चातक, पपीहा ।
स्तोता - वि० (सं० स्तोतृ ) प्रशंसक, करने वाला ।
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चौर्य
बिंदु, बूँद,
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स्तुति
स्तोत्र - संज्ञा, पु० (सं० ) किसी देवी-देवता का पद्यबद्ध रूप, गुण, यशादि का कथन, स्तुति, स्तव, गुण या यश का कीर्त्तन, स्तवन । स्तोम - संज्ञा, पु० (सं० ) स्तवन, स्तुति, प्रार्थना, यज्ञ, राशि, समूह, एक यज्ञ विशेष । स्त्री - संज्ञा, स्रो० (सं० ) नारी, तिरिया (दे०), पत्नी, जोरू, औरत, मादा, दो गुरु वर्णों का एक वर्णिक वृत्त ( पिं० ) । संज्ञा, स्त्री० (दे०) इस्तिरी ।
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स्त्रीत्व - संज्ञा, पु० (सं० ) स्त्रीपन, स्त्री का भाव या धर्म, जनानापन, स्त्रीलिंग सूचक प्रत्यय ( व्याक० ) ।
स्त्रीधन- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) जिस धन परस्त्री का पूर्ण अधिकार हो । स्त्रीधर्म - पंज्ञा, पु० यौ० (सं०) रजोदर्शन, स्त्रियों का रजस्वला होना, मासिक-धर्म, कोर्स (०)। यौ० (सं०) स्त्रियों का कर्तव्य ।
स्तुति - संज्ञा, स्रो० (सं०) स्तवन, यशोगान, कीर्ति कीर्तन, गुण-कथन, प्रशंसा, प्रशंस्ति, बड़ाई, दुर्गा, प्रस्तुति (दे० ) । " स्तुति प्रभु तोरी मैं मतिभोरी केहि विधि करौं
अनन्ता
"रामा० ।
स्तुति - पाठ-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) स्त्री-प्रसंग - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) संभोग, प्रशस्ति-पाठ, स्तुति पढ़ना । स्तुति पाठक - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) स्तवन करने वाला, स्तुति पढ़ने वाला, भाट, मागध, चारण, सूत, बंदीजन । स्तुतिवाचक संज्ञा, पु० यौ० (सं०) स्तुति या प्रशंसा करने वाला, खुशामदी, कीर्ति कहने वाला ।
मैथुन, रति । स्त्रीलिंग - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) योनि, स्त्रियों का गुह्य स्थल, भग, स्मर- मन्दिर, जिस शब्द से स्त्री का बोध हो ( व्याक० ), जैसे- लड़की खीलिंग है । विलो०पुल्लिंग |
स्त्रीव्रत - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पत्नी व्रत,
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