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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोंध १८२३ सोख्ता सोध-प्रव्य दे० (व० सौंह ) सौगंद, सोश्रा--संज्ञा, पु० दे० (सं० मिश्रेया ) एक शपथ । वि० दे० ( सं० सुगंध ) सुगंधित, तरह की भाजी या साग, सोया स्वावा, खुशबुदार, महकदार, सोंधा, सौंधा(ग्रा.)। सोवा (दे०)। "सोश्रा जो साथ होता सोंधा-वि० दे० ( सं० सुगंध ) महकदार, ! जो चाहतो सो लेती' - स्फु० । खुशबूदार, सुगंधिता, भुने चने या मिट्टी सोइ, सोई-सर्व० ० ( हि० सों) वही। के नये बर्तन में पानी पड़ने की सी महक 'सोइ पुरारि को दण्ड कठोरा''- रामा०। या वैसा स्वाद, सौधा (ग्रा.)। स्त्री०- "तात जनक-तनया यह सोई"- रामा० । सोधी । संज्ञा, पु० दे० सं० सुगंधि) सिर प्रव्य-पो, सा, तुल्य, समान । अ० कि० मलने का सुगंधित मसाला ( स्त्रियों के ), (हि. सोन) सोकर, सो गई। गरी के तेल को सुगधित करने का एक | सोक - संज्ञा, पु० दे० (सं० शोक ) शोक मसाला । संज्ञा, पु०-सुगंधि । संज्ञा, स्त्री० दुख, पछितावा, खेद। -सोधाई। सोकन-सज्ञा, पु० (दे०) सोखना, अनेक सांधाना-अ० क्रि० (दे०) सोधी सुगंधि या शोक । यो० (हि.) वेकण, शोक रहित । सोंधा स्वाद देना। सांकना*--स० कि० दे० (सं० शोक) शोक, सांध-वि० दे० ( हि० सोंधा ) सोंधा | या दुख काना, रंज करना, खिन या दुखित सुगंधित । होना, सोखना। सोपना-स० क्रि० (दे०) सौंपना। सोकित* --वि० दे० (सं० शोक) खिन्न, शोकसावनिया-सज्ञा, पु० ० एस० सुवण) नाक युक्त, दुखित, संतप्त । का एक गहना। सांकन- संज्ञा, पु० दे० ( हि० सोखन ) साह सोह - म० दे० (हि. सौह ) सोखना, गज़ब कर लेना। सम्मुख, सामने, श्रागे । संज्ञा, स्त्री० (व०) सारख-वि० दे० ( फा० शोख ) धृष्ट, ढीठ, सौगंध, शपथ । गादा, गहर' . संज्ञा, स्त्री०--सोखी, शोखी। सोही--अव्य० (दे०) सौंह। सोखक*---वि० दे० ( सं० शोषक ) सोखने सो-सर्व० दे० ( सं० सः ) वह । * वि. या शोषण करने वाला, नष्ट करने वाला। सा, समान, तुल्य, ऐसा, सौं, लों (व.)। "ससि सोखक-पोखक समुझि, जग जसअव्य० (दे०) निदान, इस हेतु, अतः इसलिये। अपजस दीन्ह "- रामा० । सोऽहम-पर्व. यौ० (सं० सः- अहम् )। सोखता- संज्ञा, पु० दे० ( फा० सोनः ) वही मैं हूँ, मैं वही ब्रह्म हूँ, (जीव और स्याही सुखाने वाला एक खुरदरा कागज़, ब्रह्म का एकत्वसूचक वेदान्तीय सिद्धान्त ताटिग पेपर (यं०)। वि०-जला हुआ। का प्रतिपादक पद), तत्वमसि, अहं ब्रह्मास्मि | सांखन --- संज्ञा, पु० (दे०) एक जंगली धान, ( उपनिषद ) साह (द०)। " सोऽहमाजन्म फ़सई (ग्रा.), शोषण, शोखना । वि०शुद्धानाम-रघु। सोखनीय, सोखित। सोऽहमस्मि-वाक्य. (सं० सः + अहम् सोखना-८० कि० दे० (सं० शोषण) शोषण + अस्मि ) मैं वही ब्रह्म हूँ, सोऽहम् ।। करना, सुखा डालना, चूस लेना । स० रूप“सोऽहमस्मि इति वृत्त अखंडा"-रामा०। सोखाना, ० रूप-सोखवाना । "सोखिय सोयना --अ० क्रि० दे० (हि० सोना )। सिंधु करिय मन रोखा"- रामा० । सोना, नींद लेना, शयन करना, सावना। सोरता-संज्ञा, पु० दे० (फ़ा० सोख्तः) स्याही स० रूप-सांयाना, सोवाना। । सोखाने वाला एक खुरदरा काग़ज, ब्लाटिंग For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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