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सोंठौरा
सैर
१८२२ सैर---संज्ञा, स्त्री० (फ़ा०) बाहर जाना, बहार, सैव -संज्ञा, पु० दे० ( सं० शैव ) शैव, मन बहलाने को बाहर घूमना-फिरना, शिवोपासक । कौतुक, तमाशा, मौज, श्रानंद, मित्रों का सैवल-सैवाल* --संज्ञा, पु० दे० (सं० शैवाल) बगीचे श्रादि में नाच-रंग, खान पान सिवार, पानी की घास, सेवार (दे०)। करना। "सैर कर दुनिया की ग़ाफिल सैवलनी* --- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शैवलिनी) जिंदगानी फिर कहाँ"--मीर० । यौ० नदी, सरिता । -सैर-सपाटा।
सैव्या - संज्ञा, पु० दे० ( सं० शैव्या ) राजा सैरा-संज्ञा, पु० (प्रान्ती०) पाल्हा। हरिश्चंद्र की रानी। सैला-संज्ञा, स्त्री० दे० ( फ़ा० सैर ) सैर, सैसव -- संज्ञा, पु० (दे०) शैशव (सं०) घूमना-फिरना । संज्ञा, स्त्री० दे० (फ़ मैलाब) शिशुता, शिशुत्व, लड़कपन, खेल। " सैसव पानी की बाढ़, बहाव, स्रोत, जल-प्लावन । खेलन मैं गयो, जुवा तरूनि-रस-राग" संज्ञा, पु० दे० ( सं० शैल ) पहाड़, पर्वत। -क० वि० । "सैल बिसाल देखि इक आगे"- रामा०। । सैसवता-संज्ञा, स्त्री० (दे०) शैशव (सं०) सैलजा*--संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० शैलजा) शिशुता । गिरिजा, पार्वती। यौ०-सैजानंदन- सैहथी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शक्ति) बरछी। गणेश।
सो-सौं --प्रत्य० दे० ( प्रा० सुत्तो ) करण सैल-तनया-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० ( सं० । और अपादान कारकों की विभक्ति (३०),
शैलतनया) शैलतनया, गिरजा, पार्वती। से, द्वारा । वि० (३०)-सा, समान । संज्ञा, सैलतनूजा-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (सं० स्त्री० (७०) सौंह का अल्प० रूप, शपथ,
शैलतनुजा ) पार्वती, शैलतनुज', सैल- सौगंद । अध्य० (७०)--सौंह सम्मुख ! क्रि० तनुजा।
वि०-संग, साथ । सर्व० (दे०) सो, वह । सैलसुता -संज्ञा, स्त्री० दे० यो० (सं० सांच-सांच-संज्ञा, पु. द० (सं० शोच )
शैलसूता ) शैल-सुता, गिरिजा, पार्वती, चिंता, फ़िक्र, शोक, दुख, पछतावा । सैलपुत्री, सैलकन्या । " सैलसुता-पति मोचर (नोन या लोन)- संज्ञा, पु० (दे०) तासुत-बाहन बोल न जात सहे.".-प्सर। काला नमक, सोचर नमक। सैनात्मजा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (दे.) शैला- मोटा-संज्ञा, पु० दे० ( सं० गुण्ड ) मोटी स्मजा (सं०). गिरिजा, पार्वती । “सैला छड़ी, लाठी, डंडा, मोटा डंडा, ( भाँग रमजा सुत बुद्धिदाता श्री गणेश मनाइये" घोंटने का ), स्वाँटा (आ.)। ---- मन्ना।
| सोंटा ( सोंटे ) बरदार-संज्ञा, पु० दे० सैलानी-वि० दे० ( फ़ा० सैर ) प्रानंदी, यौ० (हि. सोंटा +-घरदार-फा० ) श्रासा. मन-माना घूमने-फिरने वाला, पैर करने बल्लम बरदार । संज्ञा, स्रो०-सोंटेबरदारी। वाला, मन मौजी, रंगी-तरंगी।
सोंठ - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शुगठी ) सैलाब- संज्ञा, पु० (फा०) पानी की बाद, । सुण्ठी, सूखी अद्रक । " सोंठ मिरच पीपर जल-प्लावन ।
त्रिकुटा है सवै वैद्य बतलाते"-कु० वि० । सैलाबो-वि० (फ़ा०) बाढ़ वाला, वह स्थान मुहा०-मोठे करना-खूब मारना, जो बाढ़ पाने पर डूब जाता है, कहार। कुचलना । संज्ञा, स्त्री०-तरी, सीड़, सील, नमी। सोंठौरा-संज्ञा, पु. ० ( हि० सोंठ+ सैलूख-सैलूष-संज्ञा, पु० दे० ( सं . शैलूष ), औरा --- प्रत्य०), सोठौरा (दे०) सोंठ पड़े नाटक खेलने वाला नट, बहुरूपिया, छली। मेवों के लड्डू (प्रसुता सी के लिये)।
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