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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोंठौरा सैर १८२२ सैर---संज्ञा, स्त्री० (फ़ा०) बाहर जाना, बहार, सैव -संज्ञा, पु० दे० ( सं० शैव ) शैव, मन बहलाने को बाहर घूमना-फिरना, शिवोपासक । कौतुक, तमाशा, मौज, श्रानंद, मित्रों का सैवल-सैवाल* --संज्ञा, पु० दे० (सं० शैवाल) बगीचे श्रादि में नाच-रंग, खान पान सिवार, पानी की घास, सेवार (दे०)। करना। "सैर कर दुनिया की ग़ाफिल सैवलनी* --- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शैवलिनी) जिंदगानी फिर कहाँ"--मीर० । यौ० नदी, सरिता । -सैर-सपाटा। सैव्या - संज्ञा, पु० दे० ( सं० शैव्या ) राजा सैरा-संज्ञा, पु० (प्रान्ती०) पाल्हा। हरिश्चंद्र की रानी। सैला-संज्ञा, स्त्री० दे० ( फ़ा० सैर ) सैर, सैसव -- संज्ञा, पु० (दे०) शैशव (सं०) घूमना-फिरना । संज्ञा, स्त्री० दे० (फ़ मैलाब) शिशुता, शिशुत्व, लड़कपन, खेल। " सैसव पानी की बाढ़, बहाव, स्रोत, जल-प्लावन । खेलन मैं गयो, जुवा तरूनि-रस-राग" संज्ञा, पु० दे० ( सं० शैल ) पहाड़, पर्वत। -क० वि० । "सैल बिसाल देखि इक आगे"- रामा०। । सैसवता-संज्ञा, स्त्री० (दे०) शैशव (सं०) सैलजा*--संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० शैलजा) शिशुता । गिरिजा, पार्वती। यौ०-सैजानंदन- सैहथी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शक्ति) बरछी। गणेश। सो-सौं --प्रत्य० दे० ( प्रा० सुत्तो ) करण सैल-तनया-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० ( सं० । और अपादान कारकों की विभक्ति (३०), शैलतनया) शैलतनया, गिरजा, पार्वती। से, द्वारा । वि० (३०)-सा, समान । संज्ञा, सैलतनूजा-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (सं० स्त्री० (७०) सौंह का अल्प० रूप, शपथ, शैलतनुजा ) पार्वती, शैलतनुज', सैल- सौगंद । अध्य० (७०)--सौंह सम्मुख ! क्रि० तनुजा। वि०-संग, साथ । सर्व० (दे०) सो, वह । सैलसुता -संज्ञा, स्त्री० दे० यो० (सं० सांच-सांच-संज्ञा, पु. द० (सं० शोच ) शैलसूता ) शैल-सुता, गिरिजा, पार्वती, चिंता, फ़िक्र, शोक, दुख, पछतावा । सैलपुत्री, सैलकन्या । " सैलसुता-पति मोचर (नोन या लोन)- संज्ञा, पु० (दे०) तासुत-बाहन बोल न जात सहे.".-प्सर। काला नमक, सोचर नमक। सैनात्मजा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (दे.) शैला- मोटा-संज्ञा, पु० दे० ( सं० गुण्ड ) मोटी स्मजा (सं०). गिरिजा, पार्वती । “सैला छड़ी, लाठी, डंडा, मोटा डंडा, ( भाँग रमजा सुत बुद्धिदाता श्री गणेश मनाइये" घोंटने का ), स्वाँटा (आ.)। ---- मन्ना। | सोंटा ( सोंटे ) बरदार-संज्ञा, पु० दे० सैलानी-वि० दे० ( फ़ा० सैर ) प्रानंदी, यौ० (हि. सोंटा +-घरदार-फा० ) श्रासा. मन-माना घूमने-फिरने वाला, पैर करने बल्लम बरदार । संज्ञा, स्रो०-सोंटेबरदारी। वाला, मन मौजी, रंगी-तरंगी। सोंठ - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शुगठी ) सैलाब- संज्ञा, पु० (फा०) पानी की बाद, । सुण्ठी, सूखी अद्रक । " सोंठ मिरच पीपर जल-प्लावन । त्रिकुटा है सवै वैद्य बतलाते"-कु० वि० । सैलाबो-वि० (फ़ा०) बाढ़ वाला, वह स्थान मुहा०-मोठे करना-खूब मारना, जो बाढ़ पाने पर डूब जाता है, कहार। कुचलना । संज्ञा, स्त्री०-तरी, सीड़, सील, नमी। सोंठौरा-संज्ञा, पु. ० ( हि० सोंठ+ सैलूख-सैलूष-संज्ञा, पु० दे० ( सं . शैलूष ), औरा --- प्रत्य०), सोठौरा (दे०) सोंठ पड़े नाटक खेलने वाला नट, बहुरूपिया, छली। मेवों के लड्डू (प्रसुता सी के लिये)। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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