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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपना A noonam १७२ अवमानना अपना--प्र. क्रि० दे० (हि. आना ) अपनेजन-संज्ञा, पु० (सं० ) धौत करण, आना-भावना । ( दे० ) प्राधनो मार्जन, धवली करण, परिमार्जन । (व.)। | अवंध-वि० (सं० ) अवंदनीय, अपूज्य, अवनि--संज्ञा, स्त्री० (सं० ) पृथ्वी, भूमि, वंदना के अयोग्य, असेवनीय । धरा, जमीन, रक्षण, पालन । श्रवंध्य-वि० (सं०) सुकुल, कुलवान । अवनि-कुमारी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) अवपात-संज्ञा, पु. ( सं० ) गिराव, पतन, सीता, जानकी। गडढा, कुंड. हाथियों के फंसाने का गडढा, अवनिजा-संज्ञा, स्त्री० ( सं० ) पृथ्वी से खाँडा, माला, नाटक में भयादि से भागना, उत्पन्न होने वाली, भूमि-सुता, सीता, व्याकुल होना आदि दिखा कर अंक को जानकी। समाप्त करना। अवनिजेण-संज्ञा, पु. ( सं० ) यो. अधभाम-संज्ञा, पु० सं० ) प्रकाश करण, सीता-पति, रामचन्द्र, जानकी-जीवन, । माया प्रपञ्च, प्रकाशन । सीतानाथ । प्रवासित - वि० ( सं० ) प्रकाशित, अान-दान-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) प्रकटित, प्रपञ्च-पूर्ण, मायामय । भूमि-दान। अवभृथ-संज्ञा, पु० (सं०) मुख्य यज्ञ के अवनि-नाथ- संज्ञा, पु० यौ० (सं.)। समाप्त होने पर वह शेष कर्म जिसके करने पृथ्वी-पति, राजा भूपाल । का विधान किया गया है, यज्ञान्त स्नान, अनिप-संज्ञा, पु. (सं०) राजा, नृप, । यज्ञ-शेष औषधि प्रादि से लिप्त होकर भूपति। कुटुम्बादि के साथ स्नान । अनिपाल-संज्ञा, पु. यौ० ( सं०) अवम-संज्ञा, पु० (सं०) पितरों का एक राजा, भुपाल --भुषाल ( दे०)। गण, मलमास, अधिमा प, तिथि-क्षय, नीच, अवानभू-संज्ञा, पु. (सं० ) मङ्गलग्रह, जिस दिन तीन तिथियाँ हों। भौम, मंगल तारा, कुज, भौम ।। अधमत-वि० (सं०) अवज्ञात, अपमानित, तिरस्कृत। अवनी-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) पृथ्वी, भेदनी, अधर्मातथि–संज्ञा, स्त्री. यो० (सं० ) वसुन्धरा। जिस तिथि का क्षय हो गया हो, जिस दिन अवनीपति-संज्ञा. पु० यौ० (सं०) तीन तिथियाँ हों। राजा, भूपति । अवमर्श मन्धि-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) प्रधनी परधनी-संज्ञा, स्त्री० यौ० ( सं० ) पाँच प्रकार की सन्धियों में से एक रानी, रामपत्नी। (नाट्य शास्त्र )। अवनीश-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) राजा, अघमर्षण-संज्ञा, पु० सं० अव + मृष+ अपनोस, (दे०) अवनीश्वर। अनट् ) अवमर्ष-अपक्षय, परिक्षय, लोप । अवनी-देव-अवनि देव-संज्ञा, पु. यौ० वि० अवमषित-लुप्त. परिक्षय प्राप्त । (सं० ) भूदेव, भूसुर, ब्राह्मण । वि० अवमर्षणीय-लोप करने योग्य । अवनोतल- संझा, पु० यौ० (सं० ) धरा अधमान-संज्ञा, पु० (सं० ) तिरस्कार, तल, पृथ्वीमंडल अपमान, अपयश, दुर्नाम, अमर्यादा । " कौन वली अवनीतल मैं, हमसों करि अवमानना-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) अनादर, द्रोह सबै कुल बोरो"। अपमान । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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