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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - . सुक्ख १७७६ सुखदाइनि सुक्ख-संज्ञा, पु० दे० (हि. सुख) सुख। सुखाकर, सुख-भवन, सुख-मंदिर, सुखरूप, सुक्ति-मुक्ती-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शुक्ति) सुखद, सुखालय, सुखसदन । सीप, सीपी। सुखक *--वि० दे० (हि० सूखा) सूखा, सुक्रित- संज्ञा, पु० दे० (सं० सुकृत) सुकृत, शुष्क । संज्ञा, पु० (सं० सुख-+-के ) सुखकर, सुकर्म, पुण्य, धर्म । सुख करने या देने वाला, सखकारक । सुत्तम -वि० दे० ( सं० सूक्ष्म ) अति सुखकर-वि० (सं०) सुखद, सुख देने लघु या छोटा, अति बारीक या महीन, वाला, जो सहज में किया जावे, सुकर । सूकम, सूच्छम (दे०)। संज्ञा, पु० -परमाणु, सुखकरण -वि० यौ० (सं० सुख+करण ) परब्रह्म, लिंग-शरीर, एक अलंकार जहाँ सुखद।। चित्त-वृत्ति को सूचम चेष्टा से लक्षित कराने सुखकारक-वि० (सं०) सुखद, सुखदायी। का वर्णन होता है (का०)। सुखकारी--वि० (सं०) सुखद, सुखकारक । सुखंडी---संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. सूखना) स्त्री०--सुन्यकारिणी। बच्चों का एक सूखा रोग जिसमें उनका सुखजनक-वि० पु. यौ० (सं०) सुख देने शरीर सूख जाता है। वि०-बहुत ही वाला। दुबला-पतला। सुखजननी-वि० स्त्री० यौ० (सं०) सुख सुखंद-वि० दे० (सं० सुखद) सुखदायी, देने वाली। सुखज्ञ-वि० (सं०) सुख का जानने वाला, सुखद। सुख-ज्ञाता। सुख-संज्ञा, पु. (सं.) शांति, श्राराम, सुखढरन--वि० यौ० दे० ( सुख --ढरना) सुश्व (दे०) मन की अभीष्ट, प्रिय तथा सुख देने वाला। एक अनुकूल दशा या वेदना, जिसकी सब सुखथर, सूख-थल 8-संज्ञा, पु० दे० अभिलाषा करते है । विलो०-दुख । यौ० (सुख+ स्थल) सुखदायी स्थान, सुखद मुहा०-सुख मानना-अच्छा समझना, बुरा ठौर, सुख का स्थल, सुखस्थली, सुखालय । न मानना, अप्रपन्न न होना, प्रसन्न होना, | सुखद-वि० (सं०) सुख या आनंद देने अनुकूल परिस्थिति से स्वस्थ और प्रसन्न करना। वाला, सुखदायक । स्त्री० -सुखदा । "मो "जो तुम सुख मानहु मन माही'-रामा० । कह सुखद कतहुँ कोउ नाहीं' - रामा० । सुख की नींद सोना (लेना)-बेखटके सुखद गीत-वि० यौ० (सं०) तारीफ़ के या बेफिक्र रहना, निश्चिंत रहना । श्रारोग्य, लायक, प्रशंसनीय । संज्ञा, पु० यौ० (सं०) तंदुरुस्ती,जल, स्वर्ग, ८ सगण और २ लघु सुख देने वाला गान या गायन, स्तवन, वर्णों वाला एक वणिक छंद ( पि०)।। प्रशस्ति-पाठ। क्रि० वि०-स्वभावतः, सुखपूर्वक, सुखेन । सुखदनियाँ *-वि० दे० यौ० (हि. सुख+ सुख-यासन-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पालकी, | दानी) सुखा देने वाली, सुखदानी। संज्ञा, सुखासन । " सिविका सुभग सुखासन स्त्रो०-८ सगण और अंत्य गुरु वर्ण वाला याना"--रामा०। एक वर्णिक छंद (पिं०) सुंदरी, मल्ली, मुख कंद--वि० यौ० (सं० सुख - कंद) सुख चंद्रकला छंद (पि०)। की जड़, सुख रूप, सुखदायक, सुखद। सुखदा-वि० स्त्री० (सं०) सुख देने वाली। सुख-कंदन-वि० यौ० (सं० सुख-+ कंदन)। "योगिनी सुखदा वामे"-ज्यो । संज्ञा, सुख-कंद, सुखद। स्रो० --एक छंद (पि०)। सुखकंदर-वि० यौ० (सं० सुख+कंदरा) सुखदाइनि*-वि० दे० यौ० (सं० सुखदायिनी) For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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