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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुकावना १७७८ सुकेशी समय जब खुब अन्न उपजा हो और भाव बदन । “सुनहु तात सिय अति सुकुमारी" सस्ता हो। विलो०-अकाल, दुकाल । -रामा० । संज्ञा, स्त्री० (सं०) सुन्दर कुमारी। सुकावना*-२० क्रि० दे० ( हि० सुखाना) | सुकुरना* - अ० क्रि० दे० ( हि० सिकुड़ना) सुखाना, सूखा कराना, सुखवाना। सिकुड़ना, सिमिटना । स० रूप-मकुराना, सुकिज, सुकित* ---संज्ञा, पु० दे० (सुकृति) | प्रे० रूप-सकुरवाना। शुभकर्म, अच्छा काम, सुकाज, सुकार्य । सुकुल -संज्ञा, पु० (सं०) उत्तम या श्रेष्ठ वंश, सुकिया, सुकीया*-संज्ञा, स्त्री० दे० श्रेष्ठ कुलोत्पन्न व्यक्ति, कुलीन, ब्राह्मणों का (सं० स्वकीया ) स्वकीया, अपनी स्त्री! एक वंश । स्त्री०- मुकुलाइन । संज्ञा, पु०"सुकिया परकीया कही औ गाणिका दे० ( सं० शुक्ल ) उज्वल, स्वच्छ, निर्मल, सुकुमारि"-पद्मा० । “कहत सुकीया ताहि को निर्दोष, निष्कलंक, शुद्ध, साफ़ । लज्जा शील सुभाव"-पद्मा। सुकुवार-सुकुवार - वि० दे० (सं० सुकुमार) सुकिरति-संज्ञा, स्त्री. (दे०) सकृति सुकुमार, कोमल । सुति, सुकीरति (दे०) । “साहस, सुकि लुकृत् -- वि० (सं०) शुभ या उत्तम कर्म करने रति सत्यवत"-तु०॥ वाला, धार्मिक, शुभ कर्म । सुकी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( स० शुक ) तोते सुकृत-संज्ञा, पु. (सं०) शुभ कर्म, पुण्य, की मादा, तोती, सुम्गी, शुकी। दान, धर्म-कर्म । वि०-धर्मशील, भाग्यवान। सुकीउ, सुकीव*- संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० "सकल सुकृत कर फल सुत एहू-रामा० । स्वकीया ) स्वकीया नायिका, अपनी स्त्री। "वदि पिता सुर सुकृत संवारे"-- रामा० । सुकीरति-संज्ञा, स्त्री० (दे०) सुकीति (सं०) सुकृतात्मा-वि० यौ० ( सं० सुकृतात्मन्) धर्मात्मा, सुकम्र्मा, धर्मशील, पुण्यात्मा । सुकुमार, सुकुवार-वि० ६० (सं० सुकुमार) सुकृति-संज्ञा, सो० (सं०) पुण्य कर्म, सुकुमार, कोमल, नम्र । संज्ञा, स्त्री० (दे०), सत्कर्म, शुभकार्य, अच्छा काम । संज्ञा, पु. सकुआरी, सुकुमारता । " तू सुकुमार कि सुकृतित्व । “ सुकृति जाय जो प्रण परिमैं सुकुमार, चल सखि चलिये राज-दुपार" हरऊँ"-रामा०। सुकुति-संज्ञा,स्त्री० दे० (सं० शुक्ति ) सुकृती-वि० (सं० सुकृतिन् ) भाग्यवान, शुक्ति, सीपी, सुकती, सुकति (दे०) “परे | पुण्यशील, धम्मोन्मा, सुकर्मी, बुद्धिमान, सुकुति मुकता विमल"--स्फु०। निपुण, सुकुशल, दक्ष । “सुकृती तुम समान सुकुमार-वि० (सं०) कोमलांग, मृदुल, जग माहीं" - रामा० । नाजुक, नम्र । स्रो०-सुकुमारी। संज्ञा, सुकृत्य-संज्ञा, पु० (सं०) पुण्य, धर्मकार्य, पु० (सं०) सौकुमार्य । स्त्री०-सुकुमारता। सत्कर्म, सत्कार्य। संज्ञा, पु०-कोमलांग बालक, काव्य में कोमल सुकेषि-संज्ञा, पु. (सं०) विद्युत्केश का पुत्र वर्णों या शब्दों का प्रयोग, सुन्दर-कुमार। और माल्यवान, माली और सुमाली नाम सुकुमारता-संज्ञा, स्त्री० (सं०) सौकुमार्य, के राक्षसों का पिता एक राक्षस ।। मृदुलता, सुकुमार का धर्म या भाव, मार्दव सुकेशी-संज्ञा, स्त्री. (सं०) सुन्दर और उत्तम कोमलता, नज़ाकत । “या दरसत अति सुकु- वालों वाली स्त्री। संज्ञा, पु. (सं० सुकेशिन) मारना, परसत मन न पत्यात"-वि.। अति सुन्दर केशों या बालों वाला व्यक्ति। सुकुमारी-वि० (सं०) कोमलांगी, नाजुक । स्त्री०-सुकेशिनी। सुयश । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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