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अधकलित
अवगतना "मोहि अवकलत उपाउ न एकू"---रामा भ्रष्ट हो गया हो, अयोग्य वस्तु-सेवी प्रवकलित-वि० (सं० ) समझा या सूझा मनुष्य । हुआ, ज्ञात ।
अधकुंचन-संज्ञा, पु. ( सं० श्रव--- अधकर्तन-संज्ञा, पु. ( सं० ) सूत बनाने कुच्+ अनट् ) वक्री करण, टेढ़ा करना, का एक यंत्र, चरखा।
मोड़ना, मरोड़ना। अपकर्षण-संज्ञा, पु. ( सं० अब -- वि०-अधकुचित--मोड़ा हुआ। कृष् + अनट ) उद्वार, निष्कर्षण, बाहर अवकुंठन - संज्ञा, पु० (सं० अव+कुठ+ खींचना।
अनट ) साहस-परित्याग, भीरु होना, असाअवकाश-संज्ञा, पु. ( सं० अव+ हसी होना। काश+ अल् ) अवसर, समय, विश्राम-काल, अवकुंठित- वि० (सं०) असाहसी, का. सुभीता, छुट्टी का समय, रिक्त स्थान, पुरुष, कायर, भीरु । आकाश, अंतरिक्ष, शून्य-स्थान, अंतर, अपकृष्ट--वि० ( सं० अव+कृष् ) फ़ासिला, दूरी, फुर्सत का वक्त, ख़ाली वक्त । खींचा हुआ। अवकास -(दे०)।
अवकेशी-वि० (सं०) बाँझ, बन्ध्या, मु०-अघकाश ग्रहण करना-छुट्टी पुत्र-हीन, निस्संतान, निष्पुत्र । लेना, विश्राम करना, या लेना।
अधक्रंदन- संज्ञा, पु० (सं० अव+द+ अवकाश होना (या चहोना) समय अनट ) ज़ोर से क्रंदन करना या चिल्लाना, का खाली होना, सिंत रहना।
चिल्ला कर रोना। अवकाश सिलना--छुट्टी मिलना, वक्त वि० अपक्रदक-क्रंदन करने वाला। का खाली बचना, समय रहना।। अवकप- वि० (सं० अव+कुश+क्त) अवकाश रहना ---- छुट्टी रहना, खाली भसित, निंदित, मंदध्वनित, कुशब्द-युक्त, वक्त रहना, फुर्सत होना।
गाली दिया हुश्रा। " कोउ अवकास कि नभ बिनु पावै"-- अधक्रोष-संज्ञा, पु. ( सं० ) भर्त्सना, रामा० ।
निंदा, गाली, आक्रोशन । सावकाश-वि० ( सं० सह - सहित+ वि० अवक्रोषित। अवकाश ) अवकाश-युक्त।
अवकावन-संज्ञा, पु० दे० ( सं० संज्ञा, पु० (दे० ) साधकास-सामर्थ्य, अवेक्षण ) देखना। शक्ति, योग्यता, क्षमता, समाई । श्रवक्तव्य -वि० (सं० अ+वच्-+-तव्य ) स्त्री० सावकसी।
अकथ्य, न कहने योग्य, जो वक्तव्य या अपकिरण- संज्ञा, पु० (सं० ) बखेरना, कथनीय न हो। विखराना, फैलाना, छितराना, बिखेरना। अवखंडन-संज्ञा, पु. ( सं० ) खनना, अवकोर्ण-वि० ( सं० अव-+--क्त) खोदना। फैलाया या बखेरा हुआ, छितराया हुआ, अधगत--वि० ( सं० ) विदित, ज्ञात, जाना नाश किया हुआ, नष्ट, चूर-चूर किया । हुश्रा, मालूम, नीचे गया हुआ, गिरा हुआ, हुआ, विक्षिप्त, अनाहत।
परिचित, जाना-बूझा। अवकीर्णी- वि० ( सं० अव-+-+ अवगतना*--स० कि० दे० ( सं० क्त -। इन् ) क्षतव्रत, नियम-भ्रष्ट व्रत, | अवगत--ना--हि० प्रत्य० ) समझना, निषिद्ध वस्तुओं के संसर्ग से जिसका व्रत | विचारना, सोचना।
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