SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अल्पशः अवकलना अल्पशः-क्रि० वि० (सं० ) थोड़ा-थोड़ा | अल्हड़पन-संज्ञा, पु० (हि. अल्हड़ + करके, धीरे-धीरे, क्रमशः, शनैः शनैः।। पन = प्रत्य० ) बेपरवाही, मनमौजीपन, अल्पायु-वि० यौ० (सं० ) थोड़ी श्रायु- भोलापन, अक्खड़ता, उद्दडता, उद्धतपन, वाला, जो छोटी अवस्था में मर जाये, उजड्डता, व्यवहार-ज्ञान-शून्यता । अल्पावस्था वाला। " क्या खूब तेरी साक़ी अल्हड़पने की अल्पात्यल्य-वि० यौ० (सं० अल्प-+-अति । चाल"-। +अल्प ) बहुत थोड़ा. बहुत कम, अति । अवंती-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) उज्जैन, उज्ज छोटा, अत्यन्त न्यून । यिनी, ( यह सात प्रधान पुरियों में से अल्पांश-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) थोड़ा एक है)। या छोटा टुकड़ा, अति लघु अंश या अवंतिका --- स्त्री० प्राचीन उज्जयिनी । भाग । अवंश-संज्ञा, पु. ( सं० ) वंश-हीन, अल्ल-संज्ञा, पु० दे० (सं० पाल ) वंश | निस्संतान, बाँस-विहीन, जिसके वंश का का नाम, उपगोत्र का नाम, जैसे. पांडे, . ठीक पता न हो। शुक्ल, दुबे, (द्विवेदी) त्रिपाठी।। अव-उप० (सं० ) एक उपसर्ग, जिस शब्द अल्ल-बल्ल-संज्ञा, पु० दे० ( अनु०) के पूर्व यह लगता है उसके अर्थ में यह इस अटाँय-सटाँय, अंडबंड। प्रकार के अन्यार्थो की योजना कर देता है-। अल्लम-गल्लम-संज्ञा, पु० दे० ( अनु०) १-निश्चय-जैसे अवधारण, २अनाप-शनाप, व्यर्थ का बकवाद, प्रलाप, अंडबंड ( भोजन ) अंट-संट । अगड़म-बगड़म् नादान--जैसे--प्रावळा, ३-न्यूनता या कमी-जैसे--अवघात, ४--निचाई (दे०)। या गहराई- जैसे- प्रावतार, श्रवक्षेप, अल्ला-अल्लाह-संज्ञा, पु० ( अ० ) ईश्वर, ५ - व्याप्ति- जैसे - अवकाश, अवखुदा, भगवान । गाहन। अल्लाना-प्रललाना *S-अ० क्रि० (दे०) इसका प्रयोग उक्त तथा इन अर्थो में ज़ोर से चिल्लाना, गला फाड़कर बोलना । विशेष होता है --- पालम्बन विशेष, अल्लामाई-वि० स्त्री० (अ. अल्लामा ) विज्ञान, शुद्धि, अल्प, परिभव, नियोग, लड़की, कर्कशा स्त्री। पालन, भेद, अभाव । अल्हजा*-संज्ञा, पु० दे० (अ० अलहज़ल ) अव्य० (दे०) उ, आउर, और श्रो, इधर-उधर की बात-चीत, गप्प, उटपटांग अपर (प्रान्ती० )। की बातें। अवकथन- संज्ञा, पु० (सं० ) अव+ अल्हड़-वि० दे० (सं० प्रल == बहुत + कथ् । अनट ) स्तुति, उपासना, प्रसादक लल =चाह ) मनमौजी, लापरवाह, अनुभव- वाक्य, प्रसन्न करने वाला कथन । रहित, उजड्ड, असावधान, व्यवहार-ज्ञान- वि० --अधकथित, अवकथनीय । शून्य, उद्धत, अनारी, गवार, रीति-नीति न | अवकलन-संज्ञा, पु. ( सं० ) इकट्ठा जानने वाला, तौर-तरीका न जानने वाला, कर के मिलाना, देखना, जानना, ज्ञान, भोला भाला। ग्रहण । संज्ञा, पु० नया बैल या बछड़ा जो हल में अवकलनास अ० क्रि० (सं० अवकलन ) निकाला न गया हो, अल्हण (सं.)।। ज्ञान होना, समझ पड़ना, सूझना । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy