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सिराजी
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सिलपोहनी सिराजी-संज्ञा, पु० दे० ( फा० शीराज = तक पहनावा जो किसी राजा के यहाँ से नगर ) शीराज का घोड़ा, कबूतर या शराब, किसी को दिया जावे, खिलग्रत, सिरोपाँव। शीराज का निवापी । “अगर आँ तुर्क सिरोमनि--- संज्ञा, पु.० दे० यौ० (सं० शीराज़ी बदस्त भारद दिले माग"-हाफि० : शिरोमणि ) शिरोमणि, चूड़ामणि, मिरात-अ० कि० दे० (हि० सोराना) शिरोभूषण, सिरताज, सिरमौर, सर्वश्रेष्ठ ।
शीतल ठंढा, शीत, जूड, बीतना । "प्रिय- सिरोह--संज्ञा, ६० पु. ( सं० शिरोरुह ) वियोग में वावरी कैसे रैन सिरात"-स्फु० । शिरोरुह, बाल। सिराना*-अ० क्रि० दे० ( हि० सोरा+सिराहो-सज्ञा, स्त्री. (दे०) एक काली ना) शीतल. शीत या टढा होना, जुड़ाना ।
चिड़िया या पत्नी विशेष । संज्ञा, पु० - सेराना (ग्रा०), सुस्त या मंद पड़ना, राजपूताने का एक नार जहाँ की तलवार निराश या हतोत्याह होना, समाप्त या अच्छी होती है, तलवार, लाठी (ग्रा०) । ख़तम होना, नाश होना या मिटना, बीत "हाथ सिराही लीन्हे श्रावे लटकत पावै या गुज़र जाना. काम से छुट्टी मिलना, दूर गैंड़ की ढाल '-प्रा० ख० । होना । स० क्रि० (दे०).. शीतल या ठंढा बि -क्रि. वि. (अ.) केवल, मात्र करना, बिताना या समाप्त करना, मय- सिरि: (दे०) । वि. ...- एक ही, अकेला, राना (व०) । "जनम सिरानो जात है जैसे एक मात्र शुद्ध । लोहे तावरे"-स्फु० । " स व सुख सुकृत सिल----पज्ञा, स्त्रो. दे. (सं० शिला) शिला, सिरान हमारा". रामा० । चरचहि सिगरी पत्थर की चान, मसाला श्रादि पीसने की रैनि सिरानी"-प्रागन।
पत्थर की पटिया, जिलाटी (द०)। संज्ञा, सिरावना*----स० क्रि० द० (हि. सिराना) पु० दे० ( सं० शिल ) सीला, शिलोंछ । सिराना, शीतल्ल या ठंढा करना, सेराला, सज्ञा, पु० (अ.) क्षय रोग, राजयधमा । सेरवाना ग्रा०), बिताना. गुजारना, समाप्त सिलक--संज्ञा, स्त्री. (दे०) पंक्ति, पाँति, करना, बहा या फंक देना. दुबो देना। पंगति, कतार, लड़ी। संज्ञा, पु०-धागा । “तुलसी भाँवर के परे. नदो रािवत मौर" संज्ञा, पु. (अ. सिलक) रेशम, रेशमी --तुल० ।
। वन, सिलिक (दे०)। सिरिश्ता-संज्ञा, पु० दे० (फा० सरिश्तः ) सिलकी-संज्ञा, पु० (दे०) बेल । महकमा, विभाग।
सिलबड़ी-सिलवरी-- संज्ञा स्त्री० दे० (हि. सिरिश्तेदार-संज्ञा, पु० दे० (फा०) मुकदमें सिल - खड़िया ) एक नरम चिकना पत्थर के कागज़ श्रादि का रखने वाला कचहरी का खड़िया मिट्टी, दुद्धी, सेलवरी (ग्रा.) : कर्मचारी, सरिश्तेदार (दे०)। संज्ञा, स्त्री० रिलगना---अ० क्रि० द० हि० सुलगना निरिश्तेदारी।
श्राग का सुलगना, प्रज्वलित होना। सिरी*-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० श्री ; मिलन --- संज्ञा, पु० द० (सं० शिल्प)
लक्ष्मी, शोभा, श्राभा, कांति, श्री. रोना शिल्प, कारीगरी। “पिलप-कला, व्यापार रोली, मस्तक या गले का एक गहना, कंठ- __ और विद्या को बेगि बढ़ाओ"..- स्फु० । सिरी । वि० (दे०) खिड़ी (हे.) पागल।मिलपट-- वि० दे० (सं० शिलापट्ट ) सिरीपाउ-सिरोपाव-संज्ञा, पु. द० यौ० चौरम, समतल, साफ़, बराबर, हमवार, (हि. सिर-पांव ) सिर से लेकर पाँव तक सत्यानाश, चौपट । के पहनने का सामान, पगड़ी से लेकर जूता सिलपोहनी-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (हि.
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