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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शौकीन । सामुद्रिक सायल (सं० ) समुद्रोस्पन्न, समुद्र-संबंधी, समुद्र सायं-वि० (सं०) संध्या-संबंधी । संज्ञा, पु. का। (सं०)-संध्या, शाम साँझ । यौ० (सं०) सामुद्रिक --- वि० (सं०) सागरीय, सागर मागीय सागर- सायंप्रातः। संबंधी। संज्ञा, पु. (सं.)-फलित ज्योतिष सायंकाल ... संज्ञा, पु० यो० (सं०) (वि. शास्त्र का एक अंग या भेद जिसके द्वारा सायंकालीन ) शाम का वक्त, संध्या का समय मनुष्यों के शुभाशुभ फल, गुण-दोष या दिवसावमान, संध्या, दिनात्यय ।। भली-बुरी घटनायें या बातें हस्त रेखा या सायंसंध्या--संज्ञा, स्रो० यौ० (सं०) वह शरीर के तिलादि और चिन्हों को देख - विनों को देख संध्योपासन कर्म जो संध्या समय किया कर कहे जाते हैं,सामुद्रिक विद्या का ज्ञाता।। जाता है। " सायं संपामुपास्यते "यौ०-समुद्रिक शास्त्र या विज्ञान, स्फु० । सामुद्रिक विद्या। सायक-संक्षा, पु० (सं०) खड्ग, तीर, शर, बाण। स, भ, त (गण) और एक लघुतथा सामुहाँ सामुहे-सामुंह-श्रव्य० दे० (सं० । एक दीर्घ वर्ग वाला एक वर्णिक छंद पिं०), सम्मुख ) सामने, सम्मुख, श्रागे, समक्ष ।। पाँच की संख्या। "पावक सायक सपदि "धरै पौन के सामुहैं, दिया भौन को बारि" चलावा"-रामा० । वि० दे० (फा० शायक) -मतिः । साम्य-संज्ञा, पु. (स.) सम या समान सायण-संज्ञा, पु. (सं०) वेदों का भाष्य होने का भाव, समानता, तुल्यता, समता, | करने वाले एक प्रसिद्ध श्राचार्य, सायणाबराबरी सादृश्य । विलो. वैषम्य । चाय । श्रयण युक्त, घर-सहित । साम्यता----संज्ञा, स्त्री० दे० (सं०) लाम्य, । सायत, साइत, साइति-संज्ञा, स्त्री० दे० समता तुल्यता, समानता । (अ० साप्रत ) शुभ घड़ी, मुहूर्त, शुभमुहूर्त सास्यवाद --संज्ञा, पु० (सं०) समाजवाद का अच्छा समय, लग्न, ढाई घड़ी या एक घंटे वह सिद्धान्त जिसमें सबको समान या तुल्य का समय। समझने और समाज में समता स्थापित सायन-संज्ञा, पु० दे० (सं० सायण ) करने तथा समाज से विषमता के हटाने के सायणाचार्य, सायण । वि० (सं०) अयमभाव का प्राधान्य है (पाश्चात्य)। वि. युक्त, जिसमें अयन हो ( ग्रहादि ) । संज्ञा, सास्यवादी। पु० (सं०)-सूर्य की एक गति । साम्यावस्था--- संज्ञा, स्त्री. यो० (सं०) वह सायवान-ज्ञा, पु० दे० ( फा० सायःअवस्था या दशा जब सत्व, रज और तम बान-हि. प्रत्य० ) घर के आगे का वह तीनों गुण समान रहते हैं, प्रकृति-दशा। छःपर श्रादि जो छाया के हेतु बनता है। साम्राज्य-संज्ञा, पु० (सं०) वह विशाल | सायरी-संज्ञा, पु० दे० (सं० सागर ) समुद्र राज्य जिममें बहुत से तदाधीन देश हों। सागर, शीर्ष, ऊपरीभाग । “ मन सायर और जिसमें एक ही सम्राट या महाराजा- मनसा लहरि बुड़े, बहे अनेक "-कवी । धिराज का शामन हो, सार्वभौम राज्य, संज्ञा, पु० (अ.) बिना कर के मानी ज़मीन, पूर्णाधिकार, आधिपत्य । फुटकल, स्फुटिक । संज्ञा, पु० दे० (अ० शायर) साम्राज्यवाद-संज्ञा, पु. यौ० ( सं०) कबि । " लीक छाड़ि तीनै चलें, सावर, साम्राज्य की लगातार उन्नति या वृद्धि करने । सिंह, सपूत ''। का सिद्धांत । वि० (सं०)-साम्राज्यवादी। सायल-संज्ञा, पु. (अ.) माँगने या सवाल For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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