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सामान्य १७४६
सामुद्र सामग्री, असबाब, मालटाल, प्रबंध, बंदोबस्त, | प्रकार या जाति को और सब वस्तुओं का इंतिज़ाम, किसी कार्य के साधन की भाव- बोध करावे । श्यक चीजें । यो०-साज-सामान। सामान्य वर्तमान-संज्ञा, पु० यो० (सं०) सामान्य-वि० (सं०) साधारण, मामूली, ।
वर्तमान काल की क्रिया का वह रूप जिससे श्राम । विलो०-विशेष । ज्ञा, पु० (सं०)
वर्तमान काल के निश्चित समय का बोध किसी जाति की सब चीज़ों में समानता से
न हो किन्तु कर्ता का उस समय कोई कार्य पाया जाने वाला गुण या लक्षण, तुल्यता,
करते रहने का ज्ञान हो । जैसे-पाता है समानता, बराबरी, एक गुण (न्या.) एक
(व्याक०)। काव्यालंकार, जिसमें एक ही आकार-प्रकार
सामान्यविधि-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) की ऐसी वस्तुओं का वर्णन हो जिनमें देखने । साधारण विधान या रीति, साधारण आज्ञा में कोई अन्तर या भेद न ज्ञात हो। या व्यवस्था, श्राम हुक्म (फा०), जैसे - सामन्यतः सामान्यतया--डाव्य. (सं.) सत्य बोलो, साधारण आदेश-सूचक क्रिया साधारणतः, साधारणतया, साधारण रीति
का रूप ( व्याक० )। से, सामान्य रूप से।
सामान्या- संज्ञा, स्त्री० (सं०) गणिका, रंडी, सामान्यतोदृष्ट--संज्ञा, पु. यौ० (सं०) अनु.
वेश्या, पतुरिया, धन लेकर प्रेम करने वाली मान के तीन भेदों में से तसीरा भेद, एक
नायिका (साहि०) अनुमान-दोष (न्या०) कार्य और कारण से
सामासिक-वि० (सं०) समस्त, समास भिन्न किसी अन्य वस्तु से 'अनुमान करने
का, समास-संबंधी, समामाश्रित । की भूल, जैसे - देशी गाय के समान सुरा
सामिग्री-संज्ञा, स्वी० दे० ( सं० सामग्री) गाय होती है, दो या अधिक वस्तुओं या
सामग्री, उपकरण, सामान । बातों में ऐसा साधर्म्य-संबंध जो कार्य
सामिप-वि० (सं०) मांस-सहित । पिलो०कारण से भिन्न हो।
निरामिष) । संज्ञा, स्त्री. (सं.)
सामिषता। सामान्य भविष्यत्-संज्ञा, ९० यौ० (सं०)
सामी*- संज्ञा, 'पु० दे० ( सं० स्वामी ) क्रिया का ऐसा भविष्यत् काल जिससे भविष्य
स्वामी, पति. नाथ। संज्ञा, स्त्री० (दे०) लाठी के निश्चित समय का बोध न हो। जैसे
आदि के सिरे पर लगाने का धातु का आवेगा, साधारण भविष्य-रूप (व्याक०)।
प.प (व्याक०)। छल्ला । वि० (दे०) श्याम-देश-निवासी। सामान्यभूत-संज्ञा, पु. यौ० (सं०)
सामीप्य-संज्ञा, पु. ( सं० ) समीपता, का क्रिया का वह रूप जिससे निकटता, मुक्ति के चार भेदों में से एक भूत काल का निश्चित समय और उसकी जिसमें मुक्त जीव परमेश्वर के निकट पहुँच कुछ विशेषता तो न समझी जावे ; किन्तु जाता है। क्रिया की पूर्णता ज्ञात हो (व्याक०), सामभि -संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० समझ) जैसे-पाया (गुण )।
समझ, बूझ, बुद्धि, ज्ञान, अकल । “अक्रय सामान्य लक्षण-संज्ञा, पु० यौ० (सं.) वह अनादि सुमामुझि साधी-रामा० । गुण जो किसी जाति की लव वस्तुओं में सामुदायिक-वि० (सं०) समूह, समुदाय समान रूप से पाया जावे।
का, सामूहिक, समुदाय-सम्बंधी। सामान्य लक्षणा–संज्ञा, सो. यौ० (सं०) सामुद्र- संज्ञा, पु. (सं०) गामुद्रिक शास्त्र, वह शक्ति जो एक वस्तु को देखकर उसी समुद्र से निकला नमक, समुद्र-फेन । वि०
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