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साया
१७४८
सार
करने वाला, प्रश्नकर्ता, भितुक, फकीर, में सारंग चली, सारंग लीन्हें हाथ"। प्रार्थना करने वाला, प्रार्थी प्राकांक्षी, उम्मीद- "पारंग झीनो जानि के, सारंग कीन्ही वार । " सायल खुदा का शाह से बढ़कर है। घात" । " सारंग ने सारंग गह्यो, सारंग जहाँ में"-स्फु०।
बोले प्राय । जो सारंग सारंग कहै, साया-संज्ञा, पु० दे० ( फ़ा. सायः ) छाया, सारंग मुँह ते जाय"-स्फु० । " सारंग छाँह, छाँही ( प्रा० )। वि०-सायादार । नैन बैन पुनि साग, सारंग तमु समधाने" मुहा०-साये में रहना-शरण में रहना । -विद्या० । “सारंग दुखी होत प्रतिबिंब, परछाहीं, प्रेत, भूत, जिन, शैतान : मारंग बिनु तोहि दया नहि श्रावत। सारंगआदि, प्रभाव, असर, । संज्ञा, पु० दे० ( अ० रिपु को नैकु प्रोट कहि ज्यों सारंग सुख शेमीज़ ) घाँघरे का सा स्त्रयों का एक पावत"। " स'रंग केहि कारण सारंगवस्त्र एक जनाना पहनावा ।
कुलहिं लजावत" -सूर० । सायान-संज्ञा, पु. (सं०) संध्या, साँझ सारंगपाणि-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) विष्णु, शाम, सायंकाल ।
सारंगधर । सायुज्य-संज्ञा, पु. (सं०) अभेद के साथ सारंगिक संज्ञा, पु. (सं०) चिड़ीमार, मिल कर एक हो जाना, मुक्ति के ४ भेदों किरात, बहेलिया, न, य सगण) वाला एक में से वह भेद जब जीव य” आमा ब्रह्म या वर्णिक छंद (पि.)।। परमात्मा से मिल कर एक हो हो जाता है। सारंगिया--- संज्ञा, पु० दे० ( हि० सरंगी संज्ञा, स्त्रो०-सायुज्यता।
इया-प्रत्य० ) सारंगी बजाने वाला, सारंग-संज्ञा, पु. (सं०) 'अनेकार्थक शब्द साजिदा। है, बाज़, श्येन, कोयल, को कल, हंस मोर, सारंगी--संज्ञा, बी० ( सं० सारंग ) अति मयूर, चातक, पपीहा, भ्रमर, भौंरा, खंजन, : अतिमधुर और प्रिय स्वर वाला तार का एक खंजरीट, एक मधुमक्खी, सोनचिड़ी, पत्नी. बाजा, सरंगी (दे०)। चिड़िया, सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र, परमे- सार-संज्ञा, पु० (सं.) पत्त, तत्व, मूल, श्वर, श्रीकृष्ण, विष्णु, शिवजी, कामदेव, ! मुख्याभिप्राय, निकप, किसी वस्तु का हाथी, घोड़ा, मृग, हिरन, मेंढक, साँप, सर्प, अमली भाग, निर्यास, अर्क, रस गूदा. मगज़ सिंह, छत्र, छाता, शंख, कमल, चंदन, पुष्प, दूध की मलाई था सादी, हीर (काष्टादि का), फूल, सोना, स्वर्ण, गहना, ज़ेवर, जमीन फल, नतीना, परिणाम, धन-संपति, मक्खन, भूमि, पृथ्वी, केश, बाल. अलक, कपूर, नवनीत, अमृत, शक्ति, बल, पौरुष, कर्पूर, विष्णु का धनुष, समुद, सागर, वायु, सामर्थ्य, मज्जा, जुना खेलने का पासा. तालाब, सर, पानी, वस्त्र, दीपक, वाण, तलवार, खड्ग, पानी, जल, २८ मात्राओं शर, छवि, कांति, सुन्दरता, शोभा, छटा, वाला एक मानि छद (पि.), एक स्त्री, रात, रात्रि, दिन, तलवार, खड्ग, बादल, वर्णिक छंद (पिं०), एक अर्थालंकार जिसमें मेघ, हाथ, कर, आकाश, नभ, सारंगी बाजा, . वस्तुओं का उत्तरोत्तर उत्कर्ष या अपकर्ष बिजली, सब रागों का एक साग, चार तगण कहा गया हो (अ० पी०), उदार, लोहा। का एक वर्णिक छंद मैनावली (पि.)। "मरे चाम की साँस सों, सार भसम होइ छप्पय का २६वाँ भेद, काजल, मोर की जाय"-कबी० । वि.-~श्रेष्ठ, उत्तम, सुदृढ़, बोली। वि० (सं०)-रंगीन, रँगा हुआ, मजबूत । *-लंका, पु० दे० (सं० सारिका) सुन्दर, सुहावना मनोरम, सरस । " सारंग मैना, सारिका । संज्ञा, पु. द० (हि० सारना)
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