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लबी-तलबी
सुन्दरता, बेपरवाही |
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अनोखापन.
लबी- तलबी - संज्ञा, स्त्री० दे० (अरवी + अनु० ) अरबी, फ़ारसी या कठिन उर्दू ( उपेक्षा भाव में ) । मुहा० - लबोतलबी छाँटना कठिन और
मुहावरा (अरबी, फारसी - मिश्रित ) उर्दू बोलना, योग्यता दिखाना, रोब जमाना, क्रोध दिखाना, पक्की बूकना । ( दे० मुहा० ) । अलबी-तलबी भुलाना - रोब या आतंक का नष्ट कर देना । अलबी-तलबी भूलजाना - रोबया क्रोध का दूर हो जाना। अलवी - तलबी घरी रहना - रोब सब पड़ा रह जाना, रोष का अलग पड़ा रहना, निःफल कोप होना । अलभ्य - वि० सं० न मिलने के योग्य,
अल्हड़पन,
प्राप्य, जो कठिनता से मिल सके, दुष्प्राप्य दुर्लभ, अमूल्य, अनमोल । अलम् - अव्य० (सं०) यथेष्ट, पर्याप्त, पूर्ण,
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व्यर्थ, निरर्थक, बहुत, बस, समूह, भीड़, सामर्थ्य, निषेध | अलम् महीपाल तवश्रमेण " - रघु० 1
अलम -संज्ञा, पु० ( ० ) रंज, दु:ख, भंडा, पताका ।
अलमस्त -- वि० ( फा० ) मतवाला, प्रमत्त, मस्त, बदहोश, बेहोश, बेसुध बेफ़िक्र, बेग़म, लापरवाह |
संज्ञा स्त्री० अलमस्ती - प्रमत्तता । अलमारी - संज्ञा स्त्री० दे० (पुर्त० अलमारियो अ० अलमिरा ) चीज़ों के रखने के लिये खाने या दर बनी हुई बड़ी सन्दूक बड़ी, भँडरिया ।
तर्क -संज्ञा, पु० (सं० ) पागल कुत्ता, सफ़ेद मदार या आक, एक अंधे ब्राह्मण के माँगने पर अपनी दोनों आँखों को निकाल कर दान कर देने वाले एक प्रचीन राजा
का नाम ।
अलसाना
अललटप्पू - वि० ( दे० ) अटकलपच्चू, ठौर-ठिकाने का, बेअंदाजे का, अंड बंड, बेहिसाब | अललबोड़ा - संज्ञा, पु० दे० ( हि० ल्हड़ + बछेड़ा ) घोड़े का जवान बच्चा. आदमी |
अललानाई - अ० क्रि० दे० (सं० अरबोलना ) चिल्लाना गला फाड़ कर बोलना,
बकना ।
अलवाँती - वि० स्त्री० दे० (सं० बालवती ) स्त्री, जिस के बच्चा हुआ हो, प्रसूता,
ज़च्चा |
अलवाई - वि० जिसे बच्चा जने समय हुआ हो
का उलटा ।
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अलवान -संज्ञा, पु० ( ० ) ऊँनी चादर, जो जाड़े में श्रोढ़ा जाता है, दुशाला । अलस - वि० दे० (सं० ) आलसी सुस्त, ( हि० + लस चिपकाहट ) लस या चिपकने की शक्ति से रहित, निस्सार, असार, तत्व-रहित |
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अलसान अलसानिक - संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० बालस) आलस्य, सुस्ती, शैथिल्य शिथिलता, रसान ( ० प्रान्ती ० ) । सानि लखे इन नैननि की " 'सजनी रजनी यवसान भये चख सानपगे लसान लगे" ।
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८.
सी० दे० (सं० बालवती ) एक या दो माह या कम गाय या भैंस ) " बाखरी"
शिथिल,
अलसानी - वि० स्त्री० ( हि० ) अलसाई हुई, सुस्त, प्रालस्य-युक्त, रसाई ( ० ) ।
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अलसाना - प्र०क्रि० दे० (सं० अलस ) आलस्य करना, सुस्ती में पड़ना, शिथिलता का अनुभव करना, सुस्त होना । श्ररसाना(दे० ० ) |
are करब ब उचित लाल इत मम त्रियाँ सानी " रघु० ।