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अलसित १६१
प्रलापना स्त्री० वि०-अलसाई, अलासाया, अलाग-वि० दे० (हि० प्र+लगाव ) बिना (पु० वि०)।
लगाव के। वि० पु० अलसाने स्त्री० अलसानी। अलाज-वि० दे० (हि. म+लाज अलसित-वि० (हि. आलस्य ) आलस्य- लज्जा) बिना लज्जा के, निर्लज्ज, बेशर्म युक्त, सुस्ती से भरा हुआ, सुस्त, शिथिल, बेहया। वि० (हि. अ+लसना ) जो शोभा न दे, अलात-वि० (सं०) अधजला, जलता, अशोभित, जो न लसे या सजे।
हुआ काठ या लकड़ी। अलसी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० अतसी) संज्ञा, पु० जलता हुआ, पदार्थ । एक प्रकार का पौधा जिसके बीजों से तेल श्रलातचक्र--संज्ञा, पु० यो (सं० ) किसी निकलता है, इसी पौधे के बीज, तीसी। जलती हुई लकड़ी आदि के चारो ओर वि० स्त्री० (अ+ लसना ) जो न छजती घुमाने से बनने वाला श्राग का एक चक्र हो, अशोभित।
या चक्कर, श्राग का घेरा, या गोला अलसेट-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० अलस) या वृत। ढिलाई, व्यर्थ की विलम्ब, निरर्थक देर, टाल- अलान-संज्ञा, पु० दे० (सं० आलान ) मटूल भुलावा, चकमा, बाधा, अड़चन, हाथी के बांधने का खूटा या सिक्कड़, बंधन, झगडा, तकरार, झमेला, कठिनाई, रोक बेड़ी, हस्ति-बंधन, बैल चढ़ाने के लिये अरसेट (दे०)।
गाड़ी हुई लकड़ी। अलसेटिया-वि० पु० (हि० अलसेर ) | " नवगयन्द रघुबीर-मन, राज अलान व्यर्थ के लिये देर या विलम्ब करने वाला,
समान"-रामा०। अड़चन डालने वाला, वाधक, टाल-मटूल
संज्ञा, पु० दे० ( उ० एलान ) घोषणा, करने वाला, झगड़ालू. रारी, अरसेटिया,
मुनादी, ( दे० ) अलसेटी (वि.)।
अलानिया-कि० वि० दे० (अ० एलान) अलसेटी-बि० पु. (हि० दे०) वाधा
खुल्लम-खुल्ला, (दे० ) प्रगट में, जाहिर में उपस्थित करने वाला, रोकने वाला।
सब को जानकारी में, डंके की चोट पर स्त्री० अल सेटिन।
करना या कहना, कह कर, चिल्ला कर ।
अलाप-संज्ञा, पु० दे० (सं० पालाप ) स्वर, अलसौंहा-वि० पु० दे० (सं० अलस)
राग, तान, बातचीत, वार्तालाप । आलस्ययुक्त, क्लांत, शिथिल, श्रान्त, नींद |
संज्ञा, पु० अलापन (सं० श्रालापन )। से भरा हुआ, उनीदा, ब० ब० अलसौहैं।
अलापनहार-वि० दे० (हि. अलापन+ स्त्री० अलसौंहो, पु० अरसौंहे, स्त्री० अर
हार–प्रत्य० ) अलापने वाला, गाने वाला, सौहीं (ब्र.)।
अलापनहारो (ब्र०)। अलहदा--वि० (अ.) जुदा, पृथक, अलग " अहि कराल केकी भएं, मधुर पालापनविलग।
हार"-वृ.। अलहदी-वि० (अ.) देखो, अहदी। वि० स्त्री० अलापनहारी। प्रलाई-वि० दे० (सं० आलस ) आलसी, प्रलापना-अ० क्रि० दे० (सं० आलापन) काहिल, सुस्त।
बोलना, बातचीत करना, तान लगाना, संज्ञा, स्त्री० ---सुस्ती, आलस्य, अम्हौरी। गाना, स्वर देना या उठाना, स्वर का चढ़ाना संज्ञा, पु० घोड़े की जाति ।
(संगीत)। भा० श० को -२०
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