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सधाना
सनसनाहट सधाना-स० कि० दे० (हि. सधना का प्र० पागल होना, सिड़ी होना । स० क्रि० (दे०) रूप ) साधने का कार्य दूसरे से कराना, पागल बनाना, सनक चढ़ाना । स० कि. किसी को कोई वस्तु या भार पकड़ाना। (दे०)-संकेत या इशारा करना, ( आँख स. रूप-सधावना, प्रे० रूप--सधवाना। से ) सैन करना। सनंदन- संज्ञा, पु० सं०) ब्रह्मा जी के चार सनत्-संज्ञा, पु. (सं०) ब्रह्मा जी। मानस-पुत्रों में से एक पुत्र ।
सनत्कुमार-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वैधात्र, सन्--पंज्ञा, पु० (अ०) वर्ष, साल, संवत्पर, ब्रह्मा जी के चार मानस पुत्रों में से एक पुत्र । संवत्, कोई वर्ष विशेष।
सनद-संज्ञा, स्त्री० (०) प्रमाण, दलोल, सन-संज्ञा, पु० दे० ( सं० शण ) एक पौधा सुबूत, प्रमाण पत्र, सार्टिफिकेट (अं०)। जिसकी छाल के रेशों से रस्सी आदि चीजें मुहा०--सनद रहना (होना)-प्रमाण बनती हैं। */-प्रत्य० (श्रव०। (सं० सग) रहना (होना)। से, साथ (करण-विभक्ति)। '. मैं पुनि निज सनदयाफ्ता-वि० (अ० सनद + याफ्तःगुरु सन सुनी"---रामा० । संज्ञा, स्त्री० फ़ा०) जिसे किसी बात की सनद मिली हो। ( अनु० ) अति वेग से निकलने का शब्द, सनदो-संशा, पु. स्त्री. (अ० सनद) जिसके वायु-प्रवाह का शब्द । वि० ( अनु० सुन ) पास सनद हो, ठीक २ हाल । वि० (दे०) सन्न, सन्नाटे में पाया हुश्रा, स्तब्ध, (सं० प्रमाण-पुष्ट । शून्य ) चुप, मौन।
सनना-अ.क्रि० दे० ( सं० संधम् ) रक में सनई - संज्ञा, दे० ( हि० सन ) छोटी जाति । मिलना, लिप्त या लीन होना, गीला होकर का सन।
किसी वस्तु में मिलना । स० रूप-सानना, सनक-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शंका ) किसी प्रे० रूप० - सनाना, सनवाना। बात की धुन, जनून, खफ्त (फ़ा० मन की सनम -- संज्ञा, पु० (अ.) प्रिय, प्यारा, मित्र, झोंक, सवेग मन की प्रवृत्ति, मौज वि०- दोस्त । " चाहने जिसको लगे उसको सनम सनकी । मुहा०---सनक अाना या कहने लगे'–स्फु०। सवार होना ( चढ़ना )--धुन होना, सनमान-सज्ञा, पु० दे० (सं० सम्मान) जुनून सवार होना । संज्ञा, पु. (सं०) ब्रह्मा सरकार, प्रादर, सन्मान, खातिर । “प्रभुजी के चार मानस-पुत्रों में से एक पुत्र। । सनमान कीन्ह सब भाँतो"-रामा । सनकना-अ० कि० दे० (हि. सनक ) | सनमानना--*-सक्रि० दे० (सं० सम्मान) पागल हो उठना, किपी धुन में हो जाना, ! सत्कार या आदर करना, खातिर करना । पगलाना, नितांत मोन या निरुत्तर रहना, । "सनमाने प्रिय वचन कहि"-रामा । शांत रहना।
सनमुख*-अव्य० दे० (सं० सम्मुख ) सनकाना-स० कि० दे० (हि. सनक ) | सम्मुख, सामने । “सनमुख होइ कर जोरि सनक चढ़ाना, इशारा करना, सैन करना। रही"- रामा० । सनकियाना (प्रान्ती.)।
सनसनाना--अ० कि० (अनु० ) हवा के सनकारना -स० के० दे० ( हि० सैन । चलने या पनी के खौलने का शब्द होना, करना) सनकाना, संकेत या इशारा करना, | सन २ शब्द होना या करना, वेग से उड़ना । सैन करना । "सनकारे सेवक सकल चले सनसनाहट--संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. सनस्वामि-रुख पाय"---रामा ।
सनाना) हवा के तेजी से चलने या पानी सनकियाना-अ० क्रि० दे० ( हि० सनक) के खौलने का शब्द । भा० श. को०-२१३
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