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सनसनी
सन्न सनसनी-संज्ञा, स्त्री० (अनु० सन २) झुन- रक्षक या स्वामी हो, सनाथा (दे०) । "जो मुनी, घबराहट, उद्वेग, सन्नाटा, खलभली, कदापि मोहिं मारि हैं, तो मैं होब सनाथ" संवेदन-सूत्रों में एक विशेष स्पंदन, भयादि -रामा० । स्त्री०--सनाथा । से उत्पन्न स्तब्धता ।
सनाय-संज्ञा, स्त्री० दे० ( अ० सनाs ) एक सनहकी-संज्ञा, स्त्री० दे० । अ० सनहक)
पौधा जिसकी पत्तियाँ रेचक होती है, सोनारकाबी, सनहक, मिट्टी का एक बरतन मुखी ( प्रान्ती०)। (मुसलमान०)।
सनाह-संज्ञा, पु० ( सं० सन्नाह ) बकतर, सनाका--क्रि० वि० (दे०) 'पाश्चर्यादि से
कवच, जिरह-बख़्तर, लोहे का अँगरखा । स्तब्ध, मौन । मुहा०-सनाका खाना
__ "जहँ तहँ पहिरि सनाह प्रभागे"-रामा० । सन्न या स्तब्ध होना । संज्ञा, पु. (दे०)
वि० (दे० स-+नाह = नाथ) सनाथ । सवेग वायु-प्रवाह का शब्द । मुहा० ---
सनि संज्ञा, पु. दे. (सं० शनि.) शनिश्चर, सनाका मरना (भरना )- सवेग वायु
शनैश्चर, एक ग्रह और दिन । चलना। सनाढ्य-संज्ञा, पु. (सं०) ब्राह्मणों की दश
सनिया-रंज्ञा, पु. (दे०) एक सन या मुख्य जातियों में से गौड़ों के अंतर्गत एक
टसरी का वस्त्र । जाति । " सनाढ्य जाति गुणाढ्य है जग
सनीचर-संज्ञा, पु० दे० (सं० शनैश्चर ) सिद्ध शुद्ध स्वभाव'-- राम ।
एक ग्रह, रविवार से पूर्व का एक दिन।
सनीचरा--वि० दे० (हि० सनीचर) अभागा, सनातन-संज्ञा, पु० (सं०) प्राचीन काल.
अभागी, कमबख्त, सनिचरहा (ग्रा.)। या पुराना समय, प्राचीन परम्परा, बहुत
सनोचरी--संज्ञा, स्त्री. (हि. सनीचर ) समय से चला आया कारय-क्रम, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, ब्रह्म, परमात्मा । वि० बहुत
शनि ग्रह, शनि की दुखद दशा । "सनीचरी पुराना, अत्यंत प्राचीन, जो बहुत समय से
है मीन की"-कवि० । चला पाता हो, शाश्वत, परम्परागत, नित्य,
सनोड-वि० (सं०) निकटवर्ती, समीपी या सदा। वि० (सं०) सनातनी। यौ० (हि.
पास का । क्रि० वि० (सं०) पास या समीप सना+तन ) किसी वस्तु से लिप्त देह। में । वि० (सं०) नीड़ या घोसले वाला। सनातनधर्म-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) अति | सनेह -संज्ञा, पु० दे० ( सं० स्नेह ) प्रेम, प्राचीन या परम्परागत धर्म, पौराणिक नेह, प्यार, तेल । “सहित सनेह देह भई धर्म, वेद, पुराण, तंत्र, प्रतिमा-पूजन, तीर्थ- | भोरी"--रामा० । महात्म्यादि को मानने वाला वर्तमान हिन्द- सनेहिया--- *- पंज्ञा, पु० दे० (हि० सनेही) धर्म का एक रूप विशेष । वि०, संज्ञा, पु०
प्रेमी, स्नेह करने वाला, नेही।। (सं.) सनातनी, सनातनधर्मी। सनेही-वि० दे० ( सं० स्नेही=स्नेहिन् ) सनातन पुरुष-संज्ञा, पु० यो० (सं०) विष्णु नेही, स्नेह या प्रेम करने वाला, प्रेमी। जी, परमेश्वर, ब्रह्म, पुराण पुरुष ।
"कहाँ लखन कहँ राम सनेही" - रामा० । सनातनी-संज्ञा, पु० (सं० सनातन + ई- सने सन-क्रि० वि० दे० (सं० शनैः शनैः ) प्रत्य ) जो अत्यन्त प्राचीन काल से चला | धारे २, क्रमशः, रसे रसे। श्राता हो, ईश्वर, सनातन-धर्मावलम्बी, सनोवर --संज्ञा, पु० (अ०) चीड़ का पेड़। सनातनधर्मी।
सन्न-वि० दे० ( सं० शून्य ) जड़, भयादि सनाथ-वि० (सं०) वह पुरुष जिसके कोई से, स्तब्ध, संज्ञा-शून्य, भौचक, चुप ।
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