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सदासुहागिन १६६६
सधवाना सदासुहागिन-सदासुहागिनी-संज्ञा, स्त्री० सद्ग्रंथ-संज्ञा, पु० (सं०) श्रेष्ठ ग्रंथ, अच्छी दे० यौ० (हि०) वेश्या, पतुरिया, रंडी, पुस्तक, सन्मार्ग-प्रदर्शक ग्रंथ । “ जिमि ( व्यंग्य ) फूलों का एक पौधा । पाखंड-विवाद ते लुप्त होंहि सद्ग्रंथ"-रामा०। सदिया - संज्ञा, स्त्री० दे० ( फ़ा० सादः ) भूरे सह -संज्ञा, पु. दे० (सं० शब्द ) शब्द, रंग का लाल पक्षी, लाल की मादा। ध्वनि । “ हटकंत हुल करि हूह सद्देसदी-संज्ञा, स्त्री० [अ०) शताब्दी, सैकड़ा सुजा० । अव्य० दे० (सं० सघः ) तत्काल, सौ का समूह, सौ वर्षों का समूह, | तुरंत, शीघ्र, सत्वर । सही (दे०)।
सदल--- संज्ञा, पु० (सं०) समूह, वृन्द । सदुपदेश-संज्ञा, पु. यौ० सं०) उत्तम सद्भाव--संज्ञा, पु. (सं०) सच्चा और उत्तम शिक्षा, अच्छी सिखावन, या सलाह, सुन्दर भाव, सदाशय, प्रेमी, प्रीति और हित का उपदेश । वि० सदुपदेशक, सदुपदेष्टा ।। भाव, मैत्री, मेलजोल, अच्छी नियत, सदूर* ---संज्ञा, पु० दे० (सं० शार्दूल) व्याघ्र, . सद्विचार । सिंह, चीता, शरभजंतु, एक राक्षस, दोहे का सद्भावना-संज्ञा, स्रो० (सं०) सुन्दर और एक भेद (पि.) एक पक्षी, सारदूल(दे०)। श्रेष्ठ भावना । सदश---वि० (सं० ) समान, तुल्य, सम स--संज्ञा, पु. ( सं० समन् ) सदन, गृह, बराबर, अनुरूप। संज्ञा, पु० (सं०) सादृश्य। घर, मकान, संग्राम, युद्ध, भुमि और प्राकाश। संज्ञा, स्त्री० (सं०) सदृशता।
सद्य-अव्य० दे० (सं०. अभी. सत्वर, तुरंत, सदेश-अव्य० (सं०, समीप, पास. निकट। शीघ्र, इसी वक्त या समय, प्राज ही। सदेह-क्रि० वि० (सं०) विना शरीर छोड़े, | सद्यः---अत्र्य० (सं०) अभी, तुरंत, शीघ्र ।
इसी शरीर से, शरीरी, मूनिमान, सशरीर । "सद्यः बलकरः पयः" सदैव-अव्य. यौ० (सं० सदा+एव) सर्वदा, | सद्यः प्रसूता- वि० स्त्री० यौ० (सं०) वह स्त्री सदा।
जिसने तत्काल प्रसव किया हो। सदोष वि० (सं०) दोष या अपराध-युक्त.
सद्य स्नात--वि० यौ० (सं०) तत्काल या दोषी, अपराधी । (विलो०-निर्दोष, श्रभा नहाया हुआ। अदोष )। संज्ञा, स्रो० (सं.) सदोषता । सपना-अ० क्रि० (हि. साधना ) पूरा या सद्गंधि-संज्ञा, स्त्री० (सं०) सुगंधि, अच्छी सिद्ध होना, काम होना, या चलना, मत. महक, सुवास।
लब निकलना, अभ्यस्त होना, हाथ बैठना, सद्गति-संज्ञा, स्त्री० (सं० मरने पर उत्तम
( सधना ) प्रयोजन की सिद्धि के अनुकूल लोक का निवास, मरणोपरान्त उत्तम दशा
होना, गौं पर चढ़ना, भार सँभलना, निशाना की प्राप्ति, सुगति, परमगति ।
ठीक बैठना। स० रूप०-सधाना, सधासद्गुण-संज्ञा, पु. (सं०) अच्छा और उत्तम वना, प्रे० रूप०--सधवाना । गुण या लक्षण, अच्छी सिफत या तारीफ़। सधर-- संज्ञा, पु० (सं०) ऊपर का ओंठ। वि० --- सद्गुणी।
सधवा-संज्ञा, स्त्री. (सं०) वह स्त्री जिसका सद्गुरु-संज्ञा, पु. (सं०) उत्तम या अच्छा स्वामी बीता हो, सुहागिन (दे०) सौभाग्यगुरु. श्रेष्ठ शिक्षक, परमात्मा। " सद्गुरु
वती। मिले तें जाहि जिमि, संशय-भ्रम-समुदाय' सधवाना-स० क्रि० (हि. सधना का प्रे. -रामा० ।
रूप ) पूरा करवाना, सधाना ।
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