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सदमा
सदाशिव सदमा-संज्ञा, पु० दे० ( अ० सदमः ) चोट, सदहा-वि• (फ़ा०) सैकड़ों। धक्का, आघात, दुःख, रंज । “सदमों में सदा -अन्य० (सं०) सदैव, सर्वदा, निरतर, इलाजे दिले मजरूह यही है "---अनी।। सतत, हमेशा, नित्य, अनुदिन, लगातार, सदय-वि० (सं०) दयावान, दयालु, दयायुक्त संतत । “सदा काशिनी वासिनं गंगतीरे" संज्ञा, स्त्री० (सं०) सदयता।
...- स्फु०। संज्ञा, स्त्री० (अ.) गँज, प्रतिध्वनि, सदर --- वि० (अ.) मुरय, प्रधान । संज्ञा, पु० शब्द, आवाज पुकार । " सदा सुनके फकीरों केन्द्र स्थान, शाशक स्थान । यौ० ... मदर- की तुझे लाज़िम रहम करना"..-स्फु० । मुकाम, सदर-दरवाज़ा।
सदाई --अव्य ० दे० (सं० सद!) हमेशा, नित्य । सदर पाला-संज्ञा, पु. (अ.) छोटा जज । "रहित सदाई हरियाई हिये घायनि मैं ''सदरी- एंज्ञा, स्त्री. (प्र०) एक प्रकार की ऊ. श०। बंडी या कुरती, बिना बाहों की कुरती सदाचरणा, सदाचार --संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सदर्थ--संज्ञा, पु० (सं०) सत्यार्थ, सदुद्देश्य । अच्छा व्यवहार, शुद्ध या शुभ श्राचरण, संज्ञा, स्त्रो० (सं०) सदर्थता ।
भलमनसाहत । "श्रुतिस्मृति सदाचार सदर्थना*-स० क्रि० दे० (सं० सदर्थ, स्वस्य च प्रियमात्मनः"-- मनु । समर्थन ) पुष्ट या समर्थन करना पक्का या सदाचारी---संज्ञा, पु. ( सं० सदाचारिन् ) दृढ़ करना ।
धर्मात्मा, अच्छे व्यवहार या आचरण वाला। सदसत्-सदसद- वि० यौ० ( सं. सत् ।। स्त्री० --सदाचारिणी। असत् ) सत्यासत्य, सच-झूठ । “सदसद सदादश--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्रेष्ठ आज्ञा । ज्ञान होय तब ही जब सद्गुरु भले सदाफल..... वि. यो० (सं०) सदैव फलने लखा--मन्ना ! “सदसदव्यक्ति-हतवः" । वाला पेड़ । संज्ञा, पु. (सं०) ऊमर, गूलर, -~-रघु० ।
श्रीफल, बेल, एक प्रकार का नींबू, नारियल । सदसद्विचार -संज्ञा, पु. यौ० (सं०) सत्या. सदाबरत--- संज्ञा, पु० दे० ( सं० सदाव्रत ) सत्य-निर्णय, सत्य-झूठ का विचार। प्रतिदिन दीन-दुखियों को भोजन बाँटना, सदसद्विवेक-सज्ञा, पु० यौ० (सं०) भले- भूखों कंगालों को बाँटा जाने वाला भोजन बुरे या सत्यासत्य का ज्ञान, अच्छे बुरे की खैरात, दान, सदावर्त (दे०) । पहिचान । वि० सदसद्विवेको।" होवै जब सदावर्त्त-संज्ञा, पु० दे० (सं० सदावत ) सदसद्विवेक तब संग्रह त्यागब होई " ----- दीनों को नित्य भोजन देना, सदाबरत, मन्ना ।
दुखियों को दिया गया भोजन । सदसद्विवेचन-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सदाबहार-वि० दे० यौ० (हि० सदा-+
सत्यासत्य की विवेचना। वि० सदसद्विवेचक । फ़ा० बहार ) वह पौधा जो सदैव फूलता रहे, सदसि-सदस--संज्ञा, पु० (सं०) गृह, सभा। जो सदा हरा-भरा रहे (पेड़)। "सदस परिक्षोभित भूमि-भागम्'--भट्टी। सदाशय-वि० यौ० (सं०) उदार और श्रेष्ठ " सदसि वाक-पटुता युधि विक्रमः".-- भाव वाला व्यक्ति, सज्जन, भलामनुस, भत ।
महाशय । संज्ञा, स्त्री० (स.) सदाशयता। सदस्य-संज्ञा, पु० (सं० सदसिभवः) सभा- सदाशिव--संज्ञा, पु० यौ० ( सं०) नित्य सद, मेम्बर अ०), सभा या समाज का | कल्याणकारी, महादेव जी, सदासिव मनुष्य, यज्ञ करने वाला । संज्ञा, स्त्री० (सं०) (दे०) । "शंभु सदा शिव औघढ़ दानी"सदस्यता।
रामा० ।
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