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सत्यानृत १६६४
सदम बरबादी करने वाला । वि० यौ० (सं०सत्य --- मियों में उठना-बैठना। " सत्संगति-महिमा अनाश+ ई-प्रस्य०) सत्य और अनाश, वाला नहिं गोई"--रामा० । “ सत्संगतिः कथय ब्रह्म। “सत्यानाशी कलेश-कुल-संजातः'। किं न करोति पुंसाम् -भ । संज्ञा, स्त्री०-एक कटीला पौधा, भडभाड, सत्संगी - वि० ( सं० सत्संगिन ) मेल-मिलाप घमोय (प्रान्ती० ।
रखने वाला, अच्छे संग में रहने वाला, सत्यानत - संज्ञा, पुल्यौ० (सं० सत्य + अमृत)। मिलन-सार । “ मूरख ज्ञानी होत है, जो वाणिज्य, व्यापार, सौदागरो । वि. यौ० सरसंगी होय" क. वि०। (सं०) सत्य और झूठ।
सथर* --- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० सथल) स्थल, सत्र--संज्ञा, पु. (सं.) एक सोमयाग, यज्ञ, भूमि, पृथ्वी । गृह, धन, सदावर्त्त, छेत्र दीन-असहायों सथरी-माथरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० को जहाँ भोजनादि बँटे ।
सस्थली ) पुपाल श्रादि तृण की शव्या। मत्र -- संज्ञा, पु० दे० (सं० शत्रू ) रिपु परि । सथशव ... संज्ञा, पु० (दे०) रण-भूमि में मरे शत्रु, बैरी, दुश्मन । संज्ञा, स्त्री० (दे०) वीरों की लोथें ।। सत्रुता।
मथिया मनिया---पंज्ञा, पु० दे० (सं० सत्रुधन-सत्रुहन*... संज्ञा, पु० दे० (सं० स्वस्तिक) मङ्गल-सूचक या ऋद्धि-सिद्ध-दायक
शत्रुघ्न ) राम जी के छोटे भाई, शत्रुघ्न । चिह्न, स्वस्तिक चिह्न (म, फोडों या सत्व - संज्ञा, पु. (सं०) सत्ता, हस्ती, (फ़ा०) आँख के रोगों की चिकित्सा करने वाला, अस्तित्व, मूल, तत्व, सारांश, सार, चित जर्राह । की प्रवृत्ति, श्रात्म-तत्व. मनोवृत्ति, चित्तत्व, सद वि० दे० (सं० सद् या सत् ) नवीन, चैतन्य. जीव, तत्व, प्राण, तीन गुणों में से ताज़ा। “सद मा वन साजो दधिमीठो मधु. प्रथम गुण, सतोगुण । संज्ञा, स्त्री० (सं०) | मेवा पकवान".--सूबे० । क्रि० वि० दे० सं० शक्ति, बल, पौरुष, पवित्रता, शुद्धता सद्य तुरन्त, शीत्र, सत्वर, मद्यः त्वरित | विलो०-निसा तत्व।
" सूरदास सुर जाँचत तव पद करहु कृण सत्वगुगा --संज्ञा, पु. यौ० (सं०) प्रकृति के अपने जन पर मद" । संज्ञा, स्त्री० दे० तीन गुणों में से प्रथम गुण, जो जीव को (सं० सत्व) स्वभाव, पादत, प्रकृति । सुकर्मों की ओर प्रवृत्त करने वाला, प्रकाशक मदई *-अव्य० दे० ( सं० सदैव ) हमेशा, और इष्ट है, सतोगुण वि० (सं०) सत्व- सदा, सर्वदा, सदैव, मदाई (दे०) ! गुणी।
सदका– संज्ञा, पु. ( अ० सदकः ) दान, सत्वर --श्रव्य० (सं०) शीघ्र, जल्द, तुरंत, खैरात, निछावर, उतार (दे०)। “सदकः स्वरित । संज्ञा, स्त्री० (सं०) सत्वरता। तुझपै से निछावर जान है "~-हाली। सत्संग -संज्ञा, पु० (सं०) 'प्रच्छा संग या मदन-संज्ञा, पु० (सं०) सद्म, गृह, मकान, साथ, सज्जनों या साधु पुरुषों की संगति, __घर, मन्दिर, स्थिरता विराम, एक राम-भक्त भले मनुष्यों का साथ, सत्पुरुषों के साथ क़साई, सदना (दे०) । "मिद्धि-सदन गज बैठना उठना और रहना । " तुलै न ताहि बदन विनायक ''..- विनय० । जो सुख लह सत्संग" रामा० । मदबरग-सदबर्ग--संज्ञा, पु० (फ़ा०) गेंदा सत्संगति-संज्ञा, स्त्री० (सं०) अच्छा साथ, का फूल । मज्जनों या साधु पुरुषों का साथ, भले श्राद- सदम-संज्ञा, पु० (दे०) सद्म (सं०) घर ।
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