________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सतीत्व
सत्पथ, सत्पंथ सतीत्व-संज्ञा, पु० (सं०) पातिव्रत्य, सती. सत्कर्म-संज्ञा, पु० (सं० सत्कर्मन् ) सुकर्म, पन, सती होने का भाव ।
धर्म या पुण्य का कार्य, अच्छा कार्य । सतीत्वहरण सतीत्वापहरण- संज्ञा, पु० वि०-सत्कर्मी। यौ० (सं०) दूसरे की पत्नी की इज्ज़त ज़बर- सत्कार-संज्ञा, पु. (सं०) सम्मान, पादर, दस्ती बिगाडना, सतीत्व नष्ट करना, या प्रातिथ्य, खातिरदारी, इज्जत, श्रेष्ठ कार्य । बिगाड़ना. पर-स्त्री प्रसंग बलात्कार । सत्कार्य-वि० (सं०) सत्कार करने योग्य । सतीपन-संज्ञा, पु० दे० (सं० सतीत्व ) संज्ञा, पु० (सं०)- अच्छा काम, उत्तम कर्म । सतीत्व, पातिव्रत्य ।
सक्रिया-संज्ञा, स्त्री० (सं०) सत्कार, श्रादर, सतीर्थ-वि० (सं०) सहपाठी, साथ का
| सत्कर्म, सत्य या अच्छी क्रिया । पढ़ने वाला।
सत्कीर्ति-संज्ञा, पु० (सं०) सुयश, नेकनामी, सतीता-वि० (दे०) समर्थ, पराक्रमी,
सुकीर्ति । सत्तावान, सामर्थ्यवान ।
सत्कुत-संज्ञा, पु. (सं०) उत्तम या श्रेष्ठ सतीवाड़--संज्ञा, पु० (दे०) सती का स्थान,
वंश, अच्छा या बड़ा कुटुम्ब या परिवार । सतियों का श्मशान ।
वि० सत्कुलीन। संज्ञ", स्त्री०-सत्कुलीनता। सतुआ-सतुवा-संज्ञा, पु० दे० (हि० सत्तू )
सत्त-संज्ञा, पु० दे० ( सं० सत्व ) सारांश, चने और जौ या और किसी भूने हुये
| सत, सारभाग, मुख्य तस्व, काम की वस्तु । अनाज का आटा, सेतुवा, सत्त (ग्रा० )।
* · संज्ञा, पु० दे० सं० सन्य ) सत्य, सच,
सतीत्व, पातिव्रत्य । सतुया, सक्रांति-संज्ञा, स्त्री० यौ० दे० (हि.
सत्ता--संज्ञा, स्त्री० (सं०) स्थिति, अस्तित्व, सतुपा संक्रांति सं० ) मेष की संक्रांति जब
होने का भाव, हस्ती (फ़ा०) शक्ति, अधिकार, सतुपा दान किया जाता है, सेतुवा
हुकूमत प्रभुत्व । संज्ञा, पु० दे० (हि० सात) सकराँत (ग्रा.)।
ताश श्रादि का, ७ बूटियों वाला पत्ता। सतून--संज्ञा, पु० (फ़ा०) खम्भा, स्तंभ।
"श्रात्म धारणाऽनुकुलो व्यापरस्सत्ता - सतूना-संज्ञा, पु० दे० (फा० सतून ) बाज़ सि. कौ० टी० । " लज्जा, सत्ता, स्थिति, पक्षी की एक प्रकार की झपट ।
जागरणम् "-सि. कौ० । सतोखना*-स० क्रि० दे० (सं० संतोषण)
सत्ताधारी-संज्ञा, पु. ( सं. सत्ताधारिन् ) समझाना, संतोष देना, संतुष्ट करना, दिलासा
अधिकारी, हाकिम, अफसर। या ढाढस देना, संतोखना (द०)।
सत्ता-शास्त्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वह सतोखी--वि० दे० ( सं० संतोषी ) संतुष्ट,
शास्त्र जिसमें मूल पारमार्थिक सत्ता का संतोषी, संतोखी (दे०)।
विवेचन हो, सत्ता-विज्ञान । सतोगुण-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० सत्वगुण) | सत्ती-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० सती ) सती, तीन गुणों में से प्रथम, सत्वगुण, सुकर्म में साध्वी, पतिव्रता । लगाने वाला गुण ।
सत्त-संज्ञा, पु० दे० ( सं० सक्तक ) सित्तू , सतोगुणी-संज्ञा, पु० दे० (हि. सतोगुण + सेतुश्रा, भुने हुये चने और जौ का आटा, ई-प्रत्य० ) सात्विक, सतोगुण वाला, | सतुआ (दे०)। सद्गुणी, सुकर्मी, सदाचारी, सच्चरित्र। सत्पथ, सत्पंथ-संज्ञा, पु० (सं०) सन्मार्ग, सत्-संज्ञा, पु. (सं०)-सत्य, सार, ब्रह्म। उत्तम मार्ग, सरपंथ, अच्छी चाल, सदाचार, वि०-सत्य, ठीक, भला, प्रशस्त । एक ग्रंथ विशेष । वि. सत्पथी।
For Private and Personal Use Only