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सतर
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(अ० )
सतर -- संज्ञा, स्त्री० ( ० ) पंक्ति, अवली, क़तार, पाँति, रेखा, लकीर | वि० - वक्र, टेदा, क्रुद्ध, रुष्ट, कुपित | संज्ञा, स्त्री० मनुष्य की मूनेंद्रिय, घोट, परदा था । यौ० क्रि० वि० (दे० ) सतर-बतर - तितरबितर |
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भौहें
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सतराना - अ० क्रि० दे० (सं० सतर्जन ) क्रोध या कोप करना, रुष्ट होना, अप्रसन्न या नाराज़ होना, चिढ़ना । " कहौ ग्रंघको श्रधरों, बुरो मानि सतरात -चंद | बोली न बोल कछू सतराय के चाय तकी तिरछोही - रस० । संज्ञा, पु० (वा० ) सनराइवो, सनबो । सतगैंहा- वि० दे० (हि० सतराना ) रोष - पूर्ण, रुष्ट, क्रोधित, प्रसन्न कुपित क्रोधया कोप सूचक । " छोटे बड़े न सतरौ हैं
चैन "---नीति |
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मति ।
भनि नहीं, दुरै दुराये नेह सतर्क - वि० (सं०) सजग, सावधान, सचेत. युक्ति या तर्क से पुष्ट, तर्क- युक्त । (संज्ञा, स्त्री० सतर्कता ) ।
हुइ सकें, कहि सतरौहीं
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सतना -- स० क्रि० दे० (सं० संतर्पणा ) भली
भाँति तृप्त या संतुष्ट करना, प्रसन्न करना । सतलज - संज्ञा, खो० दे० ( सं० शतद्रु ) पंजाब की नदियों में से एक बड़ी नदी । सतलड़ी-सतलरी- संज्ञा, स्त्रो० (दे०) सात लड़ियों की माला | पु० सतलड़ा | सतवंती - वि० स्त्री० दे० (हि० सत्य + बंती
- प्रत्य० ) पतिव्रता सती, सतवाली । सतवाँसा संज्ञा, पु० दे० यौ० ( सं० सप्त + मास ) गर्भिणी के ७ वें मास का एक संस्कार, ७ मास में ही उत्पन्न हुआ
बालक ।
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सतसंग-संज्ञा, पु० दे० ( सं० सत्संग ) सत्संग, अच्छा साथ, सुसंगति । सो जाने सतसंग प्रभाऊ ". --. रामा० । वि० दे० सतसंगी सुसंगति वाला, यारबाश ।
सती
सतसंगति--संज्ञा, त्रो० (दे०) सत्संगति । सतसई सज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (सं० सप्तशती) सात सौ पद्यों वाला ग्रंथ, सप्तशती, सतमैय्या (दे० ) । " सब सों उत्तम सतसई, करी विहारी दास " |
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सतह -- संज्ञा, स्त्री० (अ०) किसी पदार्थ का ऊपरी तल या भाग, धरातल, वह विस्तार जिसमें केवल लम्बाई और चौड़ाई ही हों । सताग-संक्षा, पु० दे० (सं० शतांग ) रथ, गाड़ी, यान ।
सतानन्द - संज्ञा, १० (दे०) गौतम ऋषि के पुत्र और राजा जनक के पुरोहित ।" सतानंद दीन्हा 'रामा०
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तब
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सताना - स० क्रि० दे० (सं० संतापन ) दुःख या कष्ट देना, संताप देना, हैरान परेशान या दिन करना, सतावना (दे० ) । सतालू - संज्ञा, पु० दे० (सं० सप्तालुक ) शफ़्तालू, घाड़ू नामक एक फल । सतावना -स० क्रि० दे० (सं० संतापन ) सताना, विक करना, हैरान या परेशान करना, संताप या दुःख देना । निसचर - निकर सतावहि मोहीं " रामा० । सतावर, सतावरि-संज्ञा, स्रो० दे० ( सं० शतावरी ) एक बेल जिसकी जड़ और बीज
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के कमाते हैं, शतावरी, शतमूली । सति - संधा, पु० दे० (सं० सत्य ) सत्य, सच, सती, साध्वी । सतिवन संज्ञा, पु० दे० (सं० सप्तपर्ण ) छतिवन, एक औषधि |
सतिया - संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० स्वस्तिक ) मंगल-सूचक एक चिन्ह स्वस्तिक | सती - वि० स्त्री० (सं०) प्रतिव्रता, साध्वी । संज्ञा, स्त्री० (सं०) दक्ष प्रजापति की कन्या जो शिव जी को विवाही थीं। "या तन भेंट सती सन नाहीं "- - रामा० । मृत पति के साथ जीते जी चिता में जल जाने वाली स्त्री, एक नग और गुरू एक वर्ण का एक afe छंद (पिं० ) ।
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