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सठेरा १६१०
सतरंजी सठेरा-संज्ञा, पु० (दे०) सन निकाला हुआ सतकार- संज्ञा, पु० दे० ( सं० सत्कार) डंठल ।
सम्मान, आदर, इज्जत, खातिरदारी। सठोरा-सठोड़ा-संज्ञा, पु०६० (सं० शंठी) सतकारना*-स० कि० दे० (सं० सत्कार+
शंठीपाक, सोंठ के लडडू , सोंठौरा (ग्रा०)। ना-हि० प्रत्य० ) सम्मान या आदर करना, सड़क-संज्ञा, पु०, स्त्री० दे० ( अ० शरक ) सत्कार करना।
चौड़ा रास्ता, चौड़ी राह, राज मार्ग या पथ। सतगुरु---संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० सद्गुरु ) सडना-अ० क्रि० दे० ( सरण' ) किसी वस्तु सच्चा या अच्छा गुरु, परमात्मा । “सतगुरु का कोई विकार पाकर विदीर्ण हो कर मिले तें जाहि निमि, संसय-भ्रम-समुदाय" दुर्गधि देना, खमीर उठना, दुर्दशा में पड़ा ___रामा। रहना । स० रूप० –सड़ाना, प्रे० रूप०-- सतजुग संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० सत्ययुग) सड़वाना।
चार युगों में से पहला युग, सत्युग, कृतयुग। सड़ाना-स० क्रि० (हि. राड़ना) किसी सतत-अव्य० (सं०) संतत, सदा, निरंतर, वस्तु को पानी आदि में इस प्रकार से रखना | हमेशा, सदैव। कि वह सड़ जावे, किसी को सड़ने में सतदल... संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० शतदल) लगाना । प्रे० रूपड़वाना
सौ पंखड़ियों का कमल । " सतदल श्वेत सड़ाइंध-सड़ायँध-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. कमल पर राजहु"--हरि०। सड़ाना+गंध ) सड़ी हुई वस्तु की महक, | सतनजा--संज्ञा, पु० दे० यौ० (हि. सात+ दुगंधि।
अनाज) भिन्न प्रकार के सात अन्नों का सडाव-संज्ञा, पु० दे० (हि० सड़ना ) सड़ने | समूह या मेल । का भाव या कार्य।
सतपुतिया--संज्ञा, स्त्रो० दे० ( सं० सप्त सड़ासड़--अव्य० दे० (अनु० सड़ से ) सड़ पुत्रिका ) एक प्रकार की तरोई।
सड़ शब्द के साथ, जिसमें सड़ सड़ शब्द हो । सतफेरा -- संज्ञा, पु० दे० यौ० ( हि० ) व्याह सड़ियल-वि० दे० ( हि० साड़ना - इयल- के समय का सप्तपदी-कर्म, भाँवर, व्याह, प्रत्य०) सड़ा-गला हुघा, ख़राब, रद्दी, तुच्छ, सात परिक्रमा या प्रदक्षिणा। बुरा, नीच, बेकाम, निस्सार, व्यर्थ। सतमासा, सतवांसा-- संज्ञा, पु० द. यौ० सत्-संज्ञा, पु० (सं०) परमेश्वर, ब्रह्म । वि०
( हि० सात - मास ; वह बच्चा जो सातवें सत्य, नित्य, स्थायी, शुद्ध, श्रेष्ठ, पवित्र,
महीने उत्पन्न हो, प्रथम गर्भिणी के सातवें विद्वान, ज्ञानी, पंडित, साधु, पिज्जन, धोर ।
मास का एक संस्कार, सप्तमासिक(सं०) । सत-वि० दे० (सं० सत् ) सत्य, सार, मूल,
सतयुग--- संज्ञा, पु० दे० (सं० सत्य युग ) तत्व । संज्ञा, पु० दे० (सं० सत् ) सभ्यता
सत्युग। पूर्ण धर्म । मुहा०-सत पर चढ़ना-- सतरंगी--संज्ञा, स्त्री. द. (सं० सप्त+रंग पति की मृतक देह के साथ जलना या सती | + ई--- प्रत्य०) सातरंगों वाली रंगीन होना । सत पर रहना--पतिव्रता रहना। जाजिम, चाँदनी। वि० दे० ( सं० शत) शत, मौ । संज्ञा, पु. सतरंज- संज्ञा, स्त्री० दे० ( फा० शतरंज ) दे० (सं० सत्त्व )--सार, मूल तत्त्व, सारांश, शतरंज नामी खेल । सारभाग, जीवन-शक्ति, बल, पौरुष । वि०- सतरंजी-संज्ञा, स्त्री० दे० (फा० शतरंजी) सात (संख्या) का संक्षेप रूप यौगि० में)। दरी, रंगीन बिछौना, जाज़िम ।
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