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सगुण
१६८५
सचाना
अपनपन या प्रात्मीयता, सगा होने का कुटुंब की स्त्री । " असपिंडा तु या मातुरसभावा
गोत्रा तु या पितुः"-मनु० । मगुगा----संज्ञा, पु० सं०) गुण-सहित. सगौती-संज्ञा, स्त्री० (दे०) मांस, मांस का साकार ब्रह्म, सत्व, रज और तम तीनों बचा भोजन । गुणों से युक्त ब्रह्म का रूप, वह संप्रदाय । सधन ---वि० (सं०) घना, गंजान, अबिरल, जिसमें परमेश्वर को पगुण मान कर उसके उभ, ठोस, निबिड़। संज्ञा, स्त्री०-सघनता। अवतारों की पूजा होती है, सगुन (दे०)। वि० (सं०) घन या बादल के साथ । “सधन"निर्गुण ब्रह्म सगुण भये जैसे "--रामा। सवन था गगन"-रस । यौ०-- सगुणा-वाद-ईश्वर के सगुण-साकार सच वि० दे० ( सं० सत्य ) सत्य, सही, मानने का सिद्धान्त । यौ०-सगुणोपासना ! ठीक, दुरस्त, वास्तविक, यथार्थ, तथ्य, सच्च सगुण ब्रह्म की भक्ति ।
(दे०)। सगुन --- संज्ञा, पु० दे० (सं० शकुन ) किमी सचना* --स० क्रि० दे० (सं० संचयन ) कार्य के होने की सूचना-सूचक चिह्न, . जोड़ना, एकत्र या संचय करना. इकट्ठा शकुन । विलो०- प्रसगुन) ! संज्ञा, पु० करना, पूर्ण या पूरा करना । अ० क्रि० स० दे० (सं. सगुण ) ईश्वर का सगुण रूप, । (दे०) सजना, रचना। गुण-सहित । सगुन उपासक मुक्ति न लेही" सचमुच-- अव्य० दे० (हि. सच--सुच-~~-रामा० ।
अनु० ) वस्तुतः, वास्तव में, यथार्थतः, सगुनाना--.स. कि. द. ( सं० शकुन - ठीक ठीक, श्रवश्य, निश्चय, मच्च-पच्च श्राना-प्रत्य०) शकुन बताना, शकुन (ग्रा०)। सी० --- सच मुची। देखना या निकालना।
सचरना*--- अ० कि० दे० (सं. संचरण ) सगुनिया --- संज्ञा, पु० दे० (सं० शकुन +
संचलित रा संचरित होना, फैलना, अति इया---प्रत्य० ) शकुन विचारने और बताने
प्रचलित होना, संचार या प्रवेश करना । वाला । "बड़े सगुनिया महुबे वाले कारज
" सब विधि अगम अगाध अगोचर कोटिक सिद्धी लेहिं विचारि--प्रा. खं।
विधि मन सचरै” विन० ख० रूप--- मगुनौली-- संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० सगुन -- मचारना। अौती--- प्रत्य० ) शकुन विचारने की क्रिया, खचराचर---संज्ञा, पु० यौ० (२०) संसार के मगनउनी 'ग्रा०)। मुहा-सगुनौती
चलने वाले और न चलने वाले, स्थावरउटाना-शकुन देखना या निकालना। जगम । "यापि रह्यो सचराचर माही"-- सगोत, सगाती--पंज्ञा, पु० दे० (सं० -~-वासु सगोत्र ) समगोत्री, एक गोत्र के लोग, सचाई --संक्षा, स्त्री० दे० (सं० सत्य, प्रा. जगोत्र, भाई-बंधु, भैयाचार, भाई-विरा- सच + बाई ---प्रत्य०) सच्चापन, सत्यता,
यथार्थता, वास्तविकता। सगोत्र-संज्ञा, पु० (सं०) एक गोत्र के लोग, सचान संज्ञा, पु० दे० (सं० संचान - श्येन) सजातीय, समगोत्रीय, एक ही कुल या श्येन पक्षी, बाज पत्नी। “मन-मतंग गैयर वंश के लोग। बी.-.-सगोत्रा। हने, मनपा भई सचान "--कवो० । सगोत्रा--संज्ञा, स्त्री. (सं० ) सजातीया, सचाना--- १२० कि. (दे०) सत्य या सच अपने गोत्र की, अपने कुल, वंश या करना, सिन्द्र करना।
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